नई दिल्ली: जमीअतुल उलेमा की अचानक चिशतियत नवाजी पर सवाल खड़ा करते हुए मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव इंजीनियर शुजाअत अली कादरी ने कहा है कि जमीअतुल उलेमा अगर अपने इरादे में साफ है तो पहले खुले आम वहाबियत से तौबा करे और अपने बुजरुगों की उन किताबों को जला कर राख करे जिनमें कहा गया है कि हम वहाबी हैं और जिन किताबों में सरकार ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह तआला अलैह की गुस्ताखी की गई है और अपने बुजुर्गों के उन किताबों पर शरई कानून लागू करे।
इंजीनियर शुजाअत अली कादरी ने महमूद मदनी से सवाल किया है कि आखिर क्या वजह है कि कल तक तो दरगाह ख्वाजा गरीब नवाज जाने वालों को मुशरिक और न जाने किन-किन नामों से नवाजते थे और आज क्या कारण है कि वहाबियत से परहेज करते हुये चिशतियत नवाज़ हो गए हैं?
उन्होंने कहा कि क्या आप की तंजीम इब्ने तैमिया इब्ने अब्दुल वहाब नजदी इस्माइल देहलवी खारजी समझने लगी है? और क्या उनकी आपत्तिजनक इबारतों पर आप की तंजीम शरई कानून लागू करेगी?
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि आखिर आज आप को अजमेर शरीफ में जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या आज तक जिस तरह से चोला बदल कर वहाबी सुन्नी सूफी मुसलमानों को धोखा देते चले आ रहे हैं उसी की कड़ी नहीं है?
कादरी ने कहा कि जमीअतुल उलेमा अपना सम्मेलन कायड़ स्थान पर करने जा रही है वह जमीन दरगाह कमेटी की है। इसलिए उन्होंने सरकार से मांग की है कि वहाबी ख्वाजा गरीब नवाज को नहीं मानते हैं इसलिए सरकार उन्हें सम्मेलन के लिए दरगाह की जमीन किसी भी हालत में न दे।
इंजीनियर शुजाअत अली क़ादरी ने सभी मुसलमानों से अपील की है कि वहाबियत के इस भ्रामक इरादों को किसी भी हालत में पूरा ना होने दें वरना सुनी सूफी मुसलमानों को एक बड़े नुकसान से दो चार होना पड़ेगा।