नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 24 हफ्ते के अपने असामान्य भू्रण का गर्भपात कराना चाह रही एक कथित बलात्कार पीडि़ता को गर्भपात कराने की इजाजत दे दी। जस्टिस जेएस खेहर और अरुण मिश्रा ने मुंबई के एक अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का अध्ययन किया जिसमें कहा गया था कि गर्भावस्था जारी रहने से मां का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाएगा। कोर्ट ने कहा कि यह जीवन बनाम जीवन का मसला है। हमें एक जीवन बचाना है।

पीठ ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी की मदद लेने बाद पीठ ने सोमवार को यह आदेश पारित किया। रोहतगी ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिग्नेंसी एक्ट, 1971 में धारा 5 है जो गर्भ से मां की जिंदगी को खतरा होने पर 24 हफ्तों के बाद भी गर्भपात कराने की इजाजत देता है। उन्होंने कहा कि कोर्ट इस आदेश को सामान्य आदेश की तरह से न दे क्योंकि इसके बाद इसका दुरुपयोग होने का खतरा बढ़ जाएगा। देश में कन्या भ्रूण हत्या को देखते हुए इस आदेश को बहुत ही सावधानी से देने की जरूरत है। जब इस मामले में डाक्टरों ने कह दिया है कि गर्भ में विकृतियां हैं और उससे मां की जान को खतरा है तो उसे हटाया जा सकता है।

कोर्ट ने अटार्नी की बात से सहमति जाहिर की और कहा कि हम सिर्फ इस केस में डाक्टरेां की रिपोर्ट को अध्ययन करने के बाद आदेश दे रहे हैं यह गर्भपात कानूनी प्रावधानों के अनुसार होगा।

कोर्ट ने यह आदेश देकर कानून की धारा 3(2)(बी) को चुनौती देने वाली याचिका का भी निस्तारण कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अब इस केस में इसकी जरूरत नहीं है। यह धारा 20 हफ्ते के बाद भ्रूण को नष्ट करने की अनुमति नहीं है।

गौरतलब है कि सुप्रीमकोर्ट ने 22 जुलाई को मेडिकल बोर्ड को महिला की मेडिकल जांच कर सोमवार को रिपोर्ट अदालत में दाखिल करने का निर्देश दिया था। पहले न्यायालय ने कथित बलात्कार पीडि़ता की अर्जी पर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने गर्भपात कानून के उन प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी थी जो मां और भू्रण की जान को खतरा होने के बाद भी 20 हफ्ते से ज्यादा पुराना गर्भ खत्म करने की इजाजत नहीं देते।