रुद्रपुर: हरेला केवल त्योहार न होकर उत्तराखंड की जीवनशैली का प्रतिबिंबित करता है । प्रकृति के साथ संतुलन साधने वाला यह त्यौहार पहाड़ की परंपरा का अहम हिस्सा बनकर प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन कर रहा है । जहां आज प्रकृति और मानव को परस्पर विरोधी के तौर पर देखा जाता है वहीं, हरेले का त्योहार मानव को प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाने की सीख देता है।
उक्त बातें ग्रीन पार्क में मालवीय शाखा द्वारा आयोजित हरेला के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह जिला संघ चालक डॉ राम उजागर जी ने कहा । उन्होंने आगे कहा की आज के भौतिकवादी युग में जबकि मानव प्रकृति पर हावी होने की कोशिश में लगा है तब हरेला जैसे पर्वों का महत्व अधिक बढ़ जाता है। हरेला का सन्देश है कि प्रकृति सर्वश्रेष्ठ है।'' बदलते जीवन शैली के साथ ही बहुत कुछ बदल रहा है, लेकिन हरेला जैसी कई ऐसी परंपराएं हैं, जो आज भी अपने स्वरूप को जीवंत बनाये है।
सरदार भगत सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहायक आचार्य और कर्तव्या फाउंडेशन के महासचिव डॉ हरनाम सिंह ने कहा की हरेला प्रकृति के प्रति मानवीय कर्तव्यों को निर्वहन करने की सीख देती है । हरेले के त्यौहार को “वृक्षारोपण त्यौहार” के रुप में मनाकर उत्तराखंड वासी जीवन को बचाने का संदेश देता है। हरियाली बचने से जीवन भी बचा रहेगा। इस प्रकार यह पर्व प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन को खासा अहमियत देता है। हरेला पर्व हमारे कृषि आधारित उस सोच को उजागर करता है जब वैज्ञानिक प्रयोगशालाएँ नहीं होती थी और उपजाऊ बीज परीक्षण की सुविधा भी उपलब्ध नहीं होती थी। तब फसलों की बुआई से पहले हर घर में विविध बीज बो कर परीक्षा हो जाती कि फसल कैसी होगी ? जहां आज बाजारवाद और पूंजीवादी संस्कृति मानव को प्रकृति के विरुद्ध खड़ा कर रही है। प्रकृति को जंगली, बर्बर और असभ्य माना जाने लगा है। वहीं, हरेला प्रकृति और मानव के बीच के संबंधों को दर्शाता है। सच में अगर हम इस त्योहार से यह सीख ले तो मानव जाति को अलग से सीखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
इस अवसर पर पाकड़, बढ्हल, गुलर , केला तुलसी आदि के पौधे संजीव शर्मा , प्रदीप तिवारी , हरप्रीत सिंह, यु. एस. डांगी, रविन्द्र प्रताप सिंह , कैलाश कांडपाल , रणजीत सिंह, महेंद्र सिंह, किट्टू ने लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया ।