नई दिल्ली: आखिरकार भारतीय वायुसेना को स्वदेश में निर्मित लड़ाकू विमान तेजस की ताकत मिल ही गई। बेंगलूरु में हुए एक कार्यक्रम में तेजस वायुसेना के स्कॉव्ड्रन में लाइट कॉम्बेट एयरकाफ्ट यानि एलसीए शामिल हो गया। करीब 60 फीसदी देसी विमान का शामिल होना इस मायने में भी बड़ी बात है कि दुनिया में गिनती के ही देश हैं जो खुद लड़ाकू विमान बनाते हैं।
करीब तीन दशक के लंबे इंतजार के बाद ये लड़ाकू विमान शामिल हो पाया। फ्लाइंग ड्रैगर स्कॉव्ड्रन में फिलहाल दो तेजस होंगे और अगले साल मार्च तक छह और आ जायेंगे। इसके बाद और आठ तेजस इस स्कॉव्ड्रन में शामिल होंगे। आगले दो साल ये स्कॉड्रवन बेंगलूरु में ही रहेगा इसके बाद ये स्कॉड्रवन तामिलनाडू के सलूर में चला जाएगा।
12 टन वजनी इस विमान की जब शुरुआत की गई थी तब लागत 560 करोड़ बताई गई थी लेकिन आज बढ़ते बढ़ते 55 हजार करोड़ तक पहुंच गई है। जनवरी 2001 में पहली प्रोटोटाइप एलसीए ने उड़ान भरी और तब से लेकर आज तक 3000 घंटे से ज्यादा ये उड़ान भर चुका है और अभी तक इसका रिकार्ड अव्वल है। दिसंबर 2013 में इसको इन्सियल ऑपरेशनल क्लियरेन्स मिल चुका है और इस साल के अंत तक फाइनल ऑपरेशनल क्लियरेन्स भी मिल जाएगा। इसका मतलब ये है कि एफओसी मिलने के बाद ये लड़ने के लिए तैयार हो जाएगा।
अगर खूबियों की बात करें तो ये 50 हजार फीट तक उड़ सकता है। दुश्मन पर हमला करने के लिए इसमें हवा से हवा में मार करने वाली डर्बी मिसाइल लगी है तो जमीन पर निशाने लगाने के लिये आधुनिक लेजर गाइडेड बम लगे हुए हैं। अगर ताकत की बात करें तो पुराने मिग 21 से कही ज्यादा आगे है और मिराज 2000 से इसकी तुलना कर सकते हैं। ये ही नहीं जानकारों की मानें तो ये चीन और पाकिस्तान के साक्षा उपक्रम से बने जेएफ-17 से कहीं ज्यादा बेहतर है। तेजस का फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम जबरदस्त है और कलाबाजी में इसका कोई सानी नहीं है।
भारतीय वायुसेना ने हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को 120 तेजस का ऑर्डर दिया है। यकीनन देर से सही इसके वायुसेना में शामिल होने से वायुसेना की ताकत कई गुना बढ़ जायेगी और देसी होने की वजह से इसके किसी भी चीज के लिये किसी दूसरों का मोहताज नहीं होना होगा।