नई दिल्ली: भारत ने 2013 में मुद्रा संकट से निकलने के लिए तरलता उपाय के तौर पर डॉलर को आकर्षित करने के लिए जो योजना पेश की थी उसकी समयावधि समाप्त होना परेशानी का सबब बन सकता है। उस समय करीब 20 बिलियन (करोड़) डॉलर का निवेश होने से हमें बड़ी राहत तो मिल गई थी लेकिन अब जबकि रुपए की हालत अच्छी नहीं है, इतना पैसा देश से निकलना देश निवेश के लिए अच्छी खबर नहीं मानी जा रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि इस साल रुपया पहले से ही एशिया के मुद्रा बाजार में डॉलर के मुकाबले खराब प्रदर्शन कर रहा है और उसके सितंबर तक कमजोर रहने की ही उम्मीद है, जब डॉलर की सावधि जमा कि परिपक्वता अवधि पास आ रही है। बाजार और नीति विशेषज्ञ दोनों का मानना है कि आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के लिए डॉलर का यूं बाहर बह जाना एक मुद्रा चुनौती की तरह होगा। राजन का खुद का कार्यकाल सितंबर में खत्म हो रहा है और उनका कार्यकाल बढ़ाने पर फैसला होना बाकी है।
पीआईएमसीओ में पोर्टफोलियो मैनेजमेंट इम्मरजिंग एशिया के प्रमुख ल्यूक स्पाजिक ने कहा कि डॉलर का बह जाना एक अपेक्षित घटना है इसके बावजूद निवेशक इस पर गहरी नजर रखेंगे कि रिजर्व बैंक तरलता के इन हालातों के लिए क्या कदम उठाता है। सितंबर 2013 में अमेरिकी फेडरल रिजर्व रेट बढ़ने की वजह से भारत जैसे संवेदनशील बाजारों पर बुरा असर होने की आशंकाओं के बीच जब रघुराम राजन ने आरबीआई के प्रमुख के तौर पर पद संभाला था, उन्होंने विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए थे। इनके तहत बैंको से कहा गया कि वे विदेश में रहने वाले भारतीयों को विदेशी मुद्रा अप्रवासी बैंक निवेश जैसी योजनाओं के माध्यम से डॉलर में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे तरलता बढ़ेगी और विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा। आरबीआई ने इन डॉलरों को बैंको से मुनाफेदार दर पर रुपए का विनिमयन किया था।
अब, जबकि करीब 28 बिलियन ( करोड़) डॉलर आगामी सितंबर से नवंबर तक मैच्योर (परिपक्व) हो रहे हैं आरबीआई को बैंकों को डॉलर मुहैया करवाना होगा जिससे कि वे ग्राहकों को भुगतान कर सकें। डॉ राजन ने पिछले हफ्ते ही कहा है कि उन्हें सितंबर से नवंबर के बीच 20 बिलियन (करोड़) डॉलर के बाहर बह जाने की उम्मीद है। ये पिछले तीन महीने में बाहर जा चुके पैसे का तीन गुना है।
डॉ राजन को मुद्रा के इस बाहरी प्रवाह का सावधानी से प्रबंधन करना होगा खासतौर पर ऐसे समय में जब दुनिया के बाजार में अमेरिका के दर बढ़ाने की उम्मद है, चीन को लेकर कुछ चिंताएं हैं और कच्चे तेल की कीमतें सुस्ती दिखा रहीं हैं।इन्ही में ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन में शामिल होने के जनमत संग्रह को लेकर चिंताएं भी शामिल हैं। जोखिम को कम करने की बात करते हुए उनका कहना है कि वह सितंबर में रुपए की अस्थिरता से निपटने के लिए तैयार हैं। पिछले साल अक्टूबर में आरबीआई नें बैंकों के साथ मिलकर तत्कालीन मुद्रा स्थिति की समीक्षा की थी। ये जानकारी बैठक में शामिल एक बैंकर ने दी।