ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में मुख्य महिला कामगारों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां एक करोड़ 36 लाख महिला श्रमिक हैं, वहीं शहरी क्षेत्रों में इनकी संख्या 24 लाख है। एसोचैम-टारी द्वारा किये गये एक ताजा अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है।
द एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री ऑफ इण्डिया (एसोचैम) और नॉलेज फर्म थॉट आर्बिटरेज रिसर्च इंस्टीट्यूट (टारी) ने ‘फीमेल लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन इन इंडिया’ (भारत में महिला श्रमशक्ति की भागीदारी) विषय पर किये गये अध्ययन में महिला श्रमशक्ति भागीदारी (एफएलएफपी) के मामले में दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत की स्थिति का विश्लेषण किया है। साथ ही यह जानने की कोशिश की है कि कौन से कारक भारत में एफएलएफपी को तय करते हैं और एफएलएफपी में सुधार की राह में कौन-कौन सी बाधाएं हैं।
अध्ययन में गैर-विवेकाधीन तरीके से चयनित चार राज्यों उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में एफएलएफपी की स्थिति का विश्लेषण किया गया है। देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला और एफएलएफपी के राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदा रुझानों को बेहतर बनाने की खासी सम्भावनाओं वाला राज्य होने की वजह से उत्तर प्रदेश पर विशेष ध्यान दिया गया है।
देश भर में एफएलएफपी के रुझानों को रेखांकित करते इस अध्ययन में बताया गया है कि वर्ष 2000-2005 के दौरान देश में महिला कामगारों की संख्या काफी ज्यादा थी, और यह 34 से बढ़कर 37 प्रतिशत हो गयी थी, मगर उसके बाद इसमें गिरावट आयी और वर्ष 2014 में इसकी हिस्सेदारी घटकर 27 प्रतिशत रह गयी।
वर्ष 2011 में भारत में ग्रामीण पुरुष तथा महिला श्रमशक्ति की भागीदारी में करीब 30 प्रतिशत का अन्तर था, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह फर्क अपेक्षाकृत ज्यादा (करीब 40 प्रतिशत) था। सामाजिक तथा सांस्कृतिक विभेद के अलावा काम के अवसरों की कमी भी इसका कारण माना जा सकता है।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि विवाह होने से ग्रामीण क्षेत्रों में कुल श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी में करीब आठ प्रतिशत की कमी हो जाती है और शहरी क्षेत्रों में तो करीब दो गुने का फर्क पड़ता है।
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव श्री डी. एस. रावत ने यह अध्ययन रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि ‘‘अध्ययन में शामिल किये गये चार राज्यों में से उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्रां में स्वावलम्बी महिलाओं का प्रतिशत सबसे ज्यादा (67.5) है, हालांकि शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कामगारों की संख्या में सबसे ज्यादा अन्तर भी उत्तर प्रदेश में ही है।’’
श्री रावत ने कहा ‘‘देश में कुटीर, लघु तथा मध्यम औद्योगिक इकाइयों (एमएसएमई) में 33 लाख 17 हजार महिलाओं को रोजगार मिल रहा है। उनमें से दो लाख महिलाओं को उत्तर प्रदेश की एमएसएमई से रोजी-रोटी मिल रही है।’’
उन्होंने कहा ‘‘पूर्णकालिक श्रमिकों की संख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश में अव्वल है। इनमें चार करोड़ 98 लाख 50 हजार पुरुष तथा एक करोड़ 59 लाख 70 हजार महिलाएं शामिल हैं। हालांकि लैंगिक अन्तर के मामले में भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है। यह अन्तर तीन करोड़ 38 लाख 80 हजार का है।’’
श्री रावत ने कहा कि ‘‘हालांकि उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार ने सुधार के अनेक प्रयास किये हैं, लेकिन अभी काफी काम होना बाकी है। स्वास्थ्य, शिक्षा को बढ़ावा, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण तथा महिलाओं के बीच एफएलएफपी के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाने के लिये अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है, तभी यह राज्य इस मामले में उच्च दरें प्राप्त कर पाएगा, परिणामस्वरूप वह लैंगिक समानता और तीव्र आर्थिक कीर्ति हासिल करने के भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में योगदान कर सकेगा।’’
एसोचैम-टारी के अध्ययन के अनुसार ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्ट अप इण्डिया’ तथा अन्य कार्यक्रम भारत में महिला श्रमशक्ति की भागीदारी बढ़ाने में सुधार की दिशा में सकारात्मक कदम हैं।
अध्ययन में कहा गया है कि महिला सशक्तीकरण की दिशा में अभी और प्रयास किये जाने की जरूरत है, ताकि महिलाओं को रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो और ज्यादा संख्या में महिला उद्यमी तैयार करने लायक माहौल बन सके।
अध्ययन में सरकारों को सुझाव दिया गया है कि देश में महिला श्रमशक्ति की भागदारी बढ़ाने के लिये महिलाओं को क्षमता विकास प्रशिक्षण उपलब्ध कराने को बढ़ावा देने, देश भर में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने, बड़ी संख्या में चाइल्ड केयर केन्द्र स्थापित करने तथा केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा हर क्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने सम्बन्धी प्रयास किया जाना बेहद जरूरी है।
अध्ययन में कहा गया है कि अपने यहां महिलाओं के सशक्तीकरण तथा लैंगिक समानता लाने की दिशा में भारत को अभी लम्बा सफर तय करना है। ऐसा तभी हो सकता है, जब महिलाएं आर्थिक तौर पर स्वतंत्र होंगी। इसके लिये उन्हें हर क्षेत्र में नौकरियों तथा उद्यमिता सम्बन्धी अवसरों की सख्त जरूरत होगी।