भुमि अधिग्रहण के बिना विकासात्मक कार्य असंभव: प्रो0 वैशमपायन

’ उभरती बाजार अर्थव्यवस्था और प्रबन्धकीय चुनौतियाॅं ’ लखनऊ यूनिवर्सिटी में सेमीनार का समापन 

लखनऊ। प्रबन्धन विज्ञान संस्थान, लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘उभरती बाजार अर्थव्यवस्था और प्रबन्धकीय चुनौतियॅंा’ (इमरजिंग मार्केट इकोनॅामी एण्ड मैनेजिरियल चैलेन्जेज) विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का समापन छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 जे0वी0 वैशमपायन, उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त अरविन्द सिंह विष्ट, प्रबन्धन विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो0 अरविन्द मोहन, आयोजन सचिव डा0 अनूप कुमार सिंह, संयोजक डा0 विमल जयसवाल एवं सहसंयोजक डा0 अनीस द्वारा किया गया।

मुख्य अतिथि प्रो0 जे0वी0 वैषमपायन ने कहा कि भुमि अधिग्रहण के बिना कैसे कोई भी विकासात्मक कार्य कैसे कर सकते हैं ? वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में राजनैतिक चुनौतियंा बढ गई हैं। सभी उत्पाद वैश्विक स्तर पर व्यापार के लिए तैयार हैं। उत्पादकों को तीव्र सूचना प्रौघोगिकी से लैस करने की आवश्यकता है। वैश्विक दृष्टिकोण को अपनाकर ही प्रबन्धकीय शिक्षा को आगे बढा सकते हैं। जल्द ही हम अपनी ग्रोथ को दहाई में कर लेगें। उन्होनें यह भी कहा कि सेमिनार संस्थाओं के प्रदर्शन व ज्ञान विस्तार का आधार बनते जा रहे हैं। सरकारें सेमिनार के निष्कर्षों और सुझावों को अपने नीतियों मेु समाहित करे तो ही इनकी सार्थकता है। 

प्रबन्धन विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो0 अरविन्द मोहन ने कहा कि संभावनाओं के अनन्त अवसर विद्यमान हैं। इक्कीसवीं शताब्दी ज्ञान की शताब्दी है। कृषि क्षेत्र का योगदान भारत के सकल उत्पादन में 20 प्रतिशत से कम होना चिन्ताजनक है। औद्योगीकरण व निवेश के लिये स्टेक होल्डर्स के बीच में सामंजस्य की आवश्यकता है। विशेष रूप से समाज के विभिन्न तत्वों में आपसी सामंजस्य। भूमि अधिग्रहण बिल एक उदाहरण है जहॅंा किसानों व उद्योगों के बीच एक सामंजस्य आवश्यक है। विभिन्न राजनैतिक दलों में भी राजनीति से ऊपर उठ आर्थिक मसलों पर एकमत आवश्यक है। ताकि एक सरकार द्वारा किये गये कार्य सरकार बदलने पर होने वाले परिवर्तन से संभावित नीतिगत अस्थिरता से बचा जा सके। आवश्यकता है अप्रयुक्त संसाधनों के समुचित उपयोग की तभी भारत विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में खडा हो सकेगा।

विषिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना अधिकारी अरविन्द सिंह विष्ट ने कहा कि उभरती बाजार अर्थव्यवस्था वर्तमान समय की मांग है। उ0प्र0 के विशेष संदर्भ में इस व्यवस्था ने बहुत सी चुनौतियंा पैदा की हैं। बाजार मंाग व पूर्ति के आधार कर कार्य करता है। हमें वैश्विक सोच के साथ जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है। सुधारों के साथ भूमि अधिग्रहण बिल पर विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है। खेती योग्य भुमि का अनावश्यक अधिग्रहण नही होना चाहिए। 

आयोजन सचिव डा0 अनूप कुमार सिंह ने बताया कि इन दो दिन के मंथन के पश्चात् जो प्रमुख सुझाव आये हैं उन्हें केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और संबंधित विभागों को भेजा जायेगा जिससे इन सुझावों को नीतियों में समाहित किया जा सके। दो दिनों के विभिन्न तकनीकि सत्रों में 127 शोध पत्र प्रस्तुत किये गये जिनमें प्रमुख रूप से प्रतिभागियों द्वारा यह सुझाव दिया गया कि बाजार प्रेरित अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को कौशल विकास, तीव्र सूचना तंत्र, उच्च तकनीकि एंव रोजगारोन्मुख शिक्षा के विस्तार के द्वारा सामना किया जा सकता है। आभार ज्ञापन करते हुए कहा कि सेमिनार समूह कार्य भावना को विकसित करता है। सेमिनार के संयोजक डा0 विमल जयसवाल ने पधारे सभी शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं, शोध छात्रों एवं सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों का स्वागत किया।

विभिन्न तकनीकि सत्रों की अध्यक्षता प्रो0 राधेश्याम यादव, नाबार्ड के मुख्य महाप्रबन्धक मुनीश कुमार, कम्युनिटी इम्पावरमेण्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा0 विश्वजीत कुमार, लखनऊ विश्वविद्यालय व्यवहारिक अर्थशास्त्र की विभागाध्यक्ष प्रो0 मधुरिमा लाल, नौकरी महाकुम्भ के निदेशक विनायक नाथ, अर्थशास्त्र विभाग के प्रो0 विनोद सिंह, आई0टी0सी0 लखनऊ के हितेश जैन, सुगर टेक्नोलॅाजी के अनिल शुक्ला, ल0वि0वि0 वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो0 अरविन्द कुमार ने किया। तकनीकि सत्रों का वृत्त डा0 सोनी हर्ष, डा0 श्रुति, डा0 पूजा चोपडा, डा0 रूपाली, डा0 शीमाइल, डा0 अर्चना सिंह, डा0 नूर उस्बा और डा0 ऋचा बनर्जी ने प्रस्तुत किया।