जब भी उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की समीक्षा की जाती है तो ये पाया जाता है कि अखिलेश राज की तुलना में माया राज में कानून व्यवस्था ज्यादा सशक्त थी। पर ये तस्वीर का सिर्फ्फ़ एक पहलूं होगा। इसके दूसरें पहलू में वे बातें भी शामिल होंगी जो अखिलेश राज को माया राज से पृथक करती है।

दरअसल कानून व्यवस्था के मसले पर अखिलेश बनाम माया राज में जो अंतर नजर आता है वो कहीं न कहीं इन दोनों नेताओं की दलगत विचारधारा का एक हिस्सा है।

अखिलेश जहाँ उस पार्टी से नाता रखते है जो पार्टी के अन्दर आन्तरिक लोकतंत्र की समर्थक है और व्यक्ति को अपनी बात रखने का अधिकार देती है तो वही मायावती उस पार्टी से नाता रखती है जहाँ शुरू से ही आन्तरिक लोकतंत्र का अभाव रहा है और जहाँ ‘मैं’ का मतलब ही सब कुछ है ‘हम’ का मतलब कुछ भी नहीं।

इस बात को बेहतर तरीके से समझने के लिए हमे भारतीय संविधान के उस कोटेशन को ध्यान में रखना होगा जहाँ संविधान ये कहता है कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात रखने का अधिकार है। व्यक्ति दोषी है या निर्दोष ये उसकी अपनी सफाई में कही बातों के बाद तय होगा और शायद इसीलिए आज भारत का लोकतंत्र विश्व का सबसे सशक्त लोकतंत्र है।

जमीनी संघर्ष से निकले नेताजी मुलायम सिंह यादव ने भी भारतीय संविधान की इस बात को अपनी समाजवादी पार्टी में पूर्ण रूप से लागू किया। पार्टी प्रमुख होने के बावजूद या यूँ कहें की एक व्यक्ति की पार्टी होने बावजूद समाजवादी पार्टी में हमेशा आन्तरिक लोकतंत्र दिखाई पडा। ये जानते हुए भी कि सामने वाला दोषी है नेता जी ने उसे अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया।

इसके विपरीत मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी में शुरू से ही आन्तरिक लोकतंत्र का अभाव दिखा। बसपा में शुरू से ही ‘मै’ की भावना प्रबल दिखी। पहले बसपा संस्थापक काशीराम ‘मै’ की भावना से ग्रसित रहे और बसपा सुप्रीमो मायावती ‘मै’ की भावना से ग्रसित है। और शायद इसीलिए बसपा लगातार अपने पतन की ओर अग्रसर है।

ये बात अलग की है कि मायावती सरकार में कानून व्यस्था सख्त रहती है और इसका कारण भी बेहतर पोलिसिंग व्यवस्था नहीं है, बल्कि अधिकारीयों के दिल में बैठा माया का डर है। अधिकारी जानता है कि घटना होने पर बिना उसकी बात सुने उसे जिम्मेदार माना जाएगा लिहाजा अधिकारी हर हाल में अपने अधिकार क्षेत्र के अन्दर आने वाले थानों में अपराध का ग्राफ कम रखता है भले वास्तविक परिदृश्य में उस थाना क्षेत्र में अपराध की भरमार हो।

अखिलेश राज में यही नहीं दिखाई पड़ता। अधिकारी पूरी निडरता से साथ अपनी बात को रखता है और शायद यही कारण है कि जितना कागजों में अपराध का ग्राफ का बढ़ता है उतना ही वास्तविक परिदृश्य में भी वो दिखाई पड़ता है। आकड़ों से वास्तविकता के बीच की दूरी काफी कम नजर आती है।

ये बात अलग कि आन्तरिक लोकतन्त्र की ये नीति कही न कहीं अखिलेश सरकार को कमजोर कर रही है और अधिकारी वर्ग मुख्यमंत्री की बातों को गंभीरता से नहीं ले रहा है। इतना ही नहीं ये नीति कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी के उन नेताओं के लिए भी संजीवनी बन रही है जो स्वः हितों की पूर्ति के लिए सपा शामिल में हुए। ऐसे लोग अच्छी तरह से ये जानते है कि यदि कुछ गलत भी हुआ तो वो सपा प्रमुख के सामने अपनी बात रखकर उन्हें मना लेंगे।

बेहतर होगा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह और मुख्यमंत्री अखिलेश आन्तरिक लोकतंत्र की नीति पर कायम रहते हुए ऐसे अराजक तत्वों की विरुद्ध सख्ती से पेश आयें और जिनती तलिन्नता से उनकी सफाई सुने उतनी ही तलिन्नता से उनके विरुद्ध कार्यवाही करें चाहे वो सरकारी अधिकारी हो या फिर पार्टी का कोई नेता।

अनुराग मिश्र

स्वतंत्र पत्रकार