नई दिल्ली : विपक्षी दलों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से पड़ रहे जोरदार दबाव के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने रुख पर कायम हैं कि उनके द्वारा पेश किए गए भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर सर्वदलीय बैठक में चर्चा नहीं करवाई जाएगी। माना जा रहा था कि संसद के इस सत्र के दौरान सर्वदलीय बैठक के जरिये सरकार के आर्थिक एजेंडा के लिए बेहद महत्वपूर्ण इस कानून पर सर्वसम्मति बनाए जाने की कोशिश की जाएगी।

आलोचकों के मुताबिक, प्रस्तावित कानून ‘किसान-विरोधी’ हैं, क्योंकि इसके जरिये व्यापारिक घरानों के लिए कृषि के ज़मीन को बुनियादी ढांचे तथा उद्योग स्थापित करने के लिए खरीदना आसान किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार सुबह अपने शीर्ष मंत्रियों गृहमंत्री राजनाथ सिंह तथा वित्तमंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की, और इस बात पर चर्चा की कि इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के साथ-साथ दो महत्वपूर्ण घटक दलों तथा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संरक्षक कहे जाने वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी यूनियनों की ओर से भी किए जा रहे भीषण विरोध से कैसे पार पाया जाए। बताया गया है कि प्रधानमंत्री ने संकेत दिए हैं कि विपक्ष की ओर से किसी समझौते की कोशिशों का इशारा नहीं किए जाने की स्थिति में भूमि अधिग्रहण बिल पर फीडबैक लेने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाए जाने की कोई तुक नहीं है। सूत्रों ने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री इस बात के पक्ष में भी नहीं हैं कि प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण बिल में कोई बड़े बदलाव किए जाएं।

दिसंबर, 2014 में मोदी सरकार ने एक अध्यादेश के जरिये रक्षा, ग्रामीण विद्युतीकरण, ग्रामीण आवास योजना तथा औद्योगिक कॉरिडोरों से जुड़ी परियोजनाओं के लिए पिछली कांग्रेस-नीत सरकार द्वारा लागू उस कानून से छूट दी थी, जिसमें किसी भी भूमि सौदे के लिए प्रभावित भूमि मालिकों में से 80 फीसदी की सहमति लिया जाना अनिवार्य था। अध्यादेश के जरिये कंपनियों को इस बात से भी छूट दे दी गई थी, कि अब उन्हें सोशल इम्पैक्ट स्टडी (सामाजिक प्रभाव अध्ययन) कराना अनिवार्य नहीं है।

अध्यादेश एक तात्कालिक आदेश होता है, जिसे प्रभावी कानून बनने के लिए संसद के दोनों सदनों में पारित कराया जाना अनिवार्य होता है। यदि संसद मौजूदा सत्र के दौरान इसे पारित नहीं करती है, तो यह स्वतः निरस्त हो जाएगा। समस्या यह है कि बीजेपी के पास इस वक्त निचले सदन लोकसभा में स्पष्ट बहुमत है, लेकिन उच्च सदन राज्यसभा में वे अल्पमत में हैं, इसलिए उन्हें इस अध्यादेश को पारित करवाने के लिए कांग्रेस की मदद की ज़रूरत पड़ेगी ही।