पटना। बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी के अंदर जारी “सत्ता संघर्ष” में पल-प्रतिपल नया मोड़ आता जा रहा है। जनता दल यूनाइटेड ने पार्टी विरोधी गतिविविधों के चलते सोमवार को मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को जदयू से निकाल दिया है। 

जदयू की इस कार्रवाई से पहले ही मांझी “मझधार” में फंस गए थे। उन्होंने भले ही अभी भी विधानसभा में बहुमत साबित करने का दावा करते फिर रहे थे, लेकिन सत्ता संघर्ष में कुर्सी पर बने रहना उनके लिए आसान नहीं दिख रहा था।

दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने के बाद संख्या बल के भरोसे मांझी ने भले ही विधानसभा में बहुमत साबित कर देने का दावा किया हो लेकिन राजनीति और कानून के जानकार मांझी की राह आसान नहीं मानते। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी मांझी को समर्थन देने पर ढुलमुल नजर आ रही है।

कानून और संविधान के जानकारों का कहना है कि प्रजातंत्र में संख्या बल बहुत मायने रखता है और बिहार के वर्तमान राज्यपाल खुद संविधान के जानकार हैं। वैसे बिहार के सियासी दांवपेंच के बीच अभी गेंद राज्यपाल के पाले में है।

मुख्यमंत्री मांझी से कन्नी काट चुके जदयू खेमे ने सोमवार को राजभवन पर विधायकों की परेड कर दावा पेश करने का फैसला लिया। अलग खेमे के नेता नीतीश कुमार के समर्थक नेता ने रविवार को राजभवन पहुंच कर समर्थक विधायकों की सूची सौंपी।

वहीं, रविवार को नई दिल्ली में नीति आयोग की बैठक में शामिल होने के बाद मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने मोदी से मुलाकात की। पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में राज्य में जनता दल-युनाइटेड के खराब प्रदर्शन से हताश नीतीश कुमार ने नैतिक दायित्व अपने ऊपर लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और अपने पसंदीदा मंत्री मांझी को मुख्यमंत्री का कार्यभार सौंपा था।

मांझी ने बताया कि प्रधानमंत्री के साथ किसी राजनीतिक मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई है। उन्होंने करीब 40 मिनट तक मोदी के साथ बातचीत की। मुलाकात के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में मांझी ने कहा, मैंने उनके साथ कोई राजनीतिक चर्चा नहीं की।

उन्होंने कहा, मोदीजी ने बिहार के लिए कुछ अच्छा काम किया और हमने उन्हें उसके लिए धन्यवाद दिया। बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा कि वे बिहार विधानसभा में 20 फरवरी को बहुमत साबित करेंगे। “सदन में जो भी हमें समर्थन देगा उसे हम स्वीकार करेंगे।”

उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री पद से मैं इस्तीफा नहीं दूंगा। उन्हें (नीतीश खेमा) यह गलतफहमी है कि वे मुझसे जो चाहेंगे मैं वही करता रहूंगा। पटना में जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की अगुवाई में कांग्रेस के विधायक दल के नेता सदानंद सिंह, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) नेता जितेंद्रनाथ सिंह राजभवन पहुंचे और विधायकों की सूची सौंपी। राज्यपाल हालांकि अभी कोलकता में हैं और उनके सोमवार को पटना पहुंचने की संभावना है।

समर्थन का पत्र सौंपने के बाद राजभवन से बाहर निकले जदयू के प्रदेश अध्यक्ष ने पत्रकारों को बताया कि 130 विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंप दिया गया है तथा उनसे मिलने का समय मांगा गया है।

उन्होंने कहा कि राजद, कांग्रेस और भाकपा के विधायकों के अलावा दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंपा गया है। वशिष्ठ नारायण ने कहा कि राज्यपाल को पार्टी विधानमंडल दल की बैठक में नीतीश कुमार को नया नेता चुने जाने की भी जानकारी दे दी गई है।

सिंह ने बताया कि पार्टी अध्यक्ष शरद यादव की ओर से मांझी को पत्र लिखकर विधायक दल के नेता पद से हटाए जाने तथा नीतीश कुमार को नया नेता चुने जाने की सूचना दे दी गई है। जदयू महासचिव के$ सी$ त्यागी ने भी रविवार को आईएएनएस को फोन पर बताया कि नीतीश कुमार के साथ 130 विधायकों का समर्थन है।

विधानसभा में राजद विधायक दल के नेता अब्दुल बारी सिद्दिकी ने कहा, राजद ने पूर्व में भी जदयू सरकार को मुद्दों के आधार पर समर्थन दिया था, न कि किसी व्यक्ति को। अब जदयू विधायक दल ने नीतीश कुमार को नया नेता चुन लिया है तो पार्टी उन्हीं को समर्थन दे रही है।

इस बीच, मांझी समर्थक मंत्री विनय बिहारी का कहना है कि मांझी के पास बहुमत है। उन्होंने दावा किया कि शनिवार को विधायक दल की बैठक में शामिल हुए कई विधायक भी उनके संपर्क में हैं। गौरतलब है कि जदयू के 20 मंत्रियों ने शनिवार रात राजभवन जाकर अपना इस्तीफा सौंप दिया था।

जदयू के वरिष्ठ नेता और नीतीश समर्थक माने जाने वाले श्याम रजक ने बताया कि नीतीश समर्थक 20 मंत्री राजभवन जाकर सामूहिक इस्तीफो सौंप दिया है। उन्होंने कहा कि मंत्रियों के इस्तीफे का फैसला पार्टी विधायक दल की बैठक में ही हो गया था।

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में वर्तमान में 10 सीटें खाली हैं और सदस्यों की संख्या 233 है। ऎसे में बहुमत के लिए कम से कम 117 विधायकों का समर्थन चाहिए और सामान्य बहुमत के लिए 122 विधायकों का समर्थन अनिवार्य है।

मांझी गुट एक दर्जन से ज्यादा जदयू विधयकों का समर्थन होने का दावा कर रहा है। उसे तीन निर्दलियों का समर्थन है। उसकी निगाह भाजपा विधायकों पर टिकी है। भाजपा के पास 88 विधायक हैं। 

पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता तुहीन शंकर ने कहा कि मांझी के लिए पार्टी के दो-तिहाई विधायकों को अपने पाले में खींच कर ले आना अब आासान नहीं लगता। अगर ऎसा नहीं होता है तो दल-बदल विरोधी कानून के तहत मांझी का साथ देने वाले विधायक भी फंस सकते हैं। उन्होंने कहा कि जद (यू) में टूट वैध रखने के लिए मांझी को 74 विधायकों को तोड़ना होगा, तभी मांझी के दल को अलग गुट के तौर पर मान्यता मिलेगी।

शंकर ने बताया कि मांझी के लिए अब राह आसान नहीं है, परंतु अब राज्यपाल पर सब कुछ निर्भर है। वैसे यह भी सत्य है कि मांझी अभी जद (यू) के ही नेता हैं।

पटना उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एसबीके मंगलम का मानना है कि पूरा मामला अब कानूनी रूप से उलझ गया है।

इधर, नीतीश कुमार का खेमा कानूनी लड़ाई के लिए भी तैयार हो रहा है। राज्य के महाधिवक्ता रह चुके पूर्व मंत्री पी के शाही ने कहा कि नीतीश कुमार अब बहुमत के नेता हैं। उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की जाती है, तो राष्ट्रपति जब तक संतुष्ट नहीं होंगे तब तक निर्णय नहीं हो सकता।

उन्होंने यह भी कहा कि बिहार विधानसभा का बजट सत्र 20 फरवरी से प्रारंभ हो रहा है, और बजट सत्र में कोई केयर टेकर सरकार रह नहीं सकती। बजट हमेशा सदन में स्वीकृत कराना होता है।