नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में उर्दू को दूसरी शासकीय भाषा बनाने पर अपनी मुहर लगाने के बाद सभी सरकारी दस्तावेजों को उर्दू में भी लिखने का आदेश देने का आग्रह सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया है।
अदालत ने कहा यह तय करना विधायिका का काम है कि कौन सी भाषा कामकाज की भाषा बनेगी। कोर्ट को इस तरह का आदेश देने का अधिकार नहीं है। यह कहकर जस्टिस दीपक मिश्रा और पीसी पंत की पीठ ने सोमवार को यूपी उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन को अपनी विशेष अनुमति याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी। ऑर्गेनाइजेशन ने पंचायत, विधानसभा और लोकसभा चुनावों के बैलट पेपर आदि को भी उर्दू में छापने का आग्रह किया था।
संस्थान का कहना था कि जब राज्य में उर्दू दूसरी शासकीय भाषा है, तो चुनाव सामग्री, मनीआर्डर के फॉर्म, बैंक आदि की रसीदें और टिकट को भी उसमें छापना चाहिए। हाईकोर्ट ने इस आग्रह को खारिज कर दिया था और कहा था कि उर्दू में बैलट पेपर नहीं छापा जा सकता क्योंकि इससे उसका आकार बढ़ जाएगा। राज्य में उर्दू सात उद्देश्यों जैसे साइन बोर्ड, जगहों के नाम आदि लिखने के लिए इस्तेमाल होती है।
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