लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी ने अखिलेश सरकार पर निशाना साधते हुए कहा वर्ष भर दबंगों, मफियाओं से पिटती अखिलेश की पुलिस ने बदांयू में खाकी को शर्मसार किया। प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि बदांयू के मुसाझाग थाने में दुराचार की घटना से राज्य कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े हो रहे है। रक्षक ही भक्षक बनते पुलिसकर्मी पकड़ से बाहर हैं।

पार्टी के राज्य मुख्यालय पर शुक्रवार को प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने बदांयू के मुसाझाग थाना क्षेत्र के अंतर्गत घटी घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अपने राजनीतिक रसूख और संरक्षणों के कारण बेलगाम पुलिस के लोग कुछ भी कर गुजरने में परहेज नहीं कर रहे है। चाहे बसपा रही हो यह अब सपा सबने अपने शासन के दौरान राज्य की पुलिस का दलगत हितों में उपयोग किया और नतीजा रहा कि बसपा शासनकाल में चाहे निघासन कांड रहा हो और अब बदांयू के मुसाझाग थाना क्षेत्र में घटी किशोरी के साथ दुराचार की घटना। हर बार पुलिस बेलगाम र्निदयी होती हुई नजर आयी। जिस तरह मुसाझाग थाने के दो सिपाहियों द्वारा पहले लड़की को अगवा किया जाता है, फिर उसे थाना परिसर में ले जाया जाता है उसके साथ थाना परिसर में दुराचार होता है। इस दौरान उसके साथ मार-पीट भी की जाती हैं उससे घटना की विभत्सता का अनुभव किया जा सकता है। खुद पीडि़ता की माँ ने पुलिस अधिक्षक को बताया कि किस तरह उसके पति के ना रहने पर थाने के दो पुलिसकर्मीयों ने उसकी बेटी का अपहरण कर दुराचार किया।

उन्होंने कहा कि राज्य में महिला सशस्तीकरण और महिला हेल्पलाइन के दावों के बीच हाल ये है कि राज्य में महिला उत्पीड़न की शिकायतो की 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि राज्य महिला आयोग द्वारा दर्ज शिकायतों के निस्तारण में 45 प्रतिशत की कमी आयी हैं। राज्य में महिला आयोग में शिकायतो की निस्तारण दर 33 प्रतिशत ही रह गयी हैं। राजधानी लखनऊ जहां पूरा तंत्र मौजूद है में सर्वाधिक महिला उत्पीड़न की घटनाऐ प्रकाश में आ रही है सरेआम शहर के व्यस्तम इलाके हजरतगंज भी सुरक्षित नहीं है।

श्री पाठक ने कहा कि खुद सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने भी राज्य की पुलिस की कार्यशैली पर मुख्यमंत्री के गृह जनपद इटावा में सवाल खड़े किये थे। अब बदांयू की इस घटना में जिस तरह पुलिस का चरित्र उजागर हुआ उससे स्पष्ट है कि कैसे सरकार घटना के बाद लीपा-पोती में जुटती है। उन्होनंे पूछा कि क्या शिकायत बाद सम्बन्धित थानाध्यक्ष से भी कोई पूछ-ताछ हुई, थाने के भीतर 4 घंटे तक किशोरी रही कैसे वहां पर तैनात अन्य अधिकारी और कर्मचारियों की जानकारी में ये मामला नहीं आ पाया। फिर जब थाने के भीतर दुराचार हुआ तो क्या इन सिपाहियों के अतिरिक्त थानाध्यक्ष को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए।