टीम इंस्टेंटखबर
स्कूल कॉलेजों में हिजाब पहनने की इजजात मिलेगी या नहीं, इस मामले पर कर्नाटक हाई कोर्ट अब जल्द ही अपना फैसला सुना देगा. मामले की सुनवाई कर रही कर्नाटक हाईकोर्ट की बेंच ने बहस खत्म होने के बाद मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

दरअसल हाई कोर्ट ने गुरुवार को हिजाब मामले में वकीलों से शुक्रवार तक अपनी दलीलों को खत्म करने को कहा था. अदालत ने संकेत दिया था कि वह जल्द ही मामले में फैसला सुनाएगी. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी ने वकीलों से कहा था कि दलीलें शुक्रवार तक खत्म हो जानी चाहिए.

मामले में मुख्य न्यायाधीश समेत तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुनवाई की. मुख्य न्यायाधीश ने संबंधित पक्षों से दो से तीन दिनों के भीतर अपनी लिखित दलीलें प्रस्तुत करने को भी कहा था. इस बीच, जवाबी दलीलों में अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि उनकी मुवक्किल एक सह-शिक्षा कॉलेज में पढ़ती हैं, जहां उन्होंने दो साल पहले दाखिला लिया था. कामत के अनुसार, जब से उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया तब से वह हिजाब पहनकर जाती थीं, लेकिन अचानक प्रतिबंध लगा दिया गया.

कामत ने अदालत से कहा कि वह हिजाब पर किसी सामान्य घोषणा के लिए नहीं कह रहे हैं कि यह एक आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है, बल्कि उनकी दलील पांच फरवरी के सरकारी आदेश से जुड़ी है, जिसमें सभी छात्र-छात्राओं को ऐसे कपड़े पहनने से रोक दिया जिससे शांति, सद्भाव और लोक व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा है.

कामत ने कहा कि यह आदेश टिक नहीं सकता और इसे रद्द करना चाहिए. वकील ने दलील दी, ‘‘यदि सरकारी आदेश निरस्त होता है तो अनुच्छेद 25 के तहत मौलिक अधिकार के इस्तेमाल पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा. ’’

जवाब में मुख्य न्यायाधीश ने जानना चाहा कि जिस शैक्षणिक संस्थान में निर्धारित वर्दी है, वहां वह हिजाब पहनने पर जोर कैसे दे सकते हैं और याचिकाकर्ता के पास कौन सा मौलिक अधिकार है? उन्होंने कामत से यह स्थापित करने के लिए भी कहा कि हिजाब एक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है.

न्यायमूर्ति अवस्थी ने कहा, ‘‘हम किसी प्रतिबंध की बात नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ आपके अधिकार की बात कर रहे हैं, जिसके लिए आप जोर दे रहे हैं।’’ जवाब में कामत ने पीठ से कहा कि यह अधिकार कुरान और हदीस से प्राप्त होता है. पिछले दिनों उडुपी के एक कॉलेज में हिजाब पहनकर आई हुई छात्राओं को कक्षाओं में प्रवेश से रोके जाने पर यह मामला शुरू हुआ था। बाद में छात्राओं ने अदालत का रुख किया.