लेख

तुम्हारी सियासत ने हमारा प्रमोद छीन लिया !

  • नवेद शिकोह

सियासत किसी की नहीं होती, सबसे क़ीमती ज़िन्दगी की भी नहीं। सियासत का नशा बुद्धीजीवियों की भी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है। हुकुमते हों या बड़े-बड़े राजनीतिक दल, बड़े-बड़े राजनेता या बुद्धिजीवी पत्रकार हों, राजनीति का चस्का हैवान बना देता है। राक्षस बना देता है। इंसानियत और ज़िन्दगी का दुश्मन बना देता है। ऐसा अंधा बना देता है जो खाई में गिरने की दिशा में बढ़ता जाता है। आम जनता का मार्ग प्रशस्त करने की जिम्मेदारी लेने वाली जमात सियासत के अंधेरों में डुबोने का काम करती है।

उ.प्र.राज्य मुख्यालय संवाददाता समिति की सियासत ने बुद्धिजीवी कहे जाने वाले पत्रकारों की बुद्धि इतनी भ्रष्ट कर दी कि नेतागीरी की हवस ने ज़िन्दगी को दाव पर लगा दिया। समिति के चुनाव की जीत हासिल करने की दीवानगी ने एक जीते-जागते युवा पत्रकार की जिन्दगी को हरा दिया।

कोविड का खतरा टला नहीं था इसलिए संवाददाता समिति का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी समिति फिलहाल चुनाव नहीं करवाना चाह रही थी। इस बीच कलमकार-पत्रकारों पर सियासत का भूत सवार हो गया। समिति के पदों पर पदासीन होने की हवन और बेकरारी ने कोविड के खतरों के बीच पत्रकारों का चुनाव करवाने के लिए आन्दोलन शुरू कर दिया। दो महीने मुसल्सल चुनाव करवाने की मुहिम चलाने के लिए ख़ूब भीड़ इकट्ठा हुई। समिति और सरकार पर दबाव बनाया गया। कोविड रिटर्न हो चुका था। कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी थी। फिर भी दबाव में आकर चुनाव की तारीखें घोषित हो गईं।

संवाददाता समिति के चुनाव के लिए आंदोलन पर उतरे सियासी पत्रकारों का एक जत्था चेतावनी दे रहा था कि यदि समिति ने चुनाव घोषित नहीं किया और चुनाव के लिए लोकभवन या एनेक्सी नहीं मिला तो हम लोग कहीं भी चुनाव कर लेंगे। जो सरकार कोरोना संक्रमण की बढ़ती रफ्तार में पंचायत चुनाव की घोषणा कर सकती है वो किस मुंह से कोविड प्रोटोकॉल के तहत पत्रकारों के चुनाव की इजाजत नहीं देती।

आखिरकार कोविड की एहतियातें को नजरअंदाज करते हुए हम सब ने (इस गुनाह मे मैं ख़ुद भी शामिल हूं) कोविड प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाईं। ये सब और कहीं नहीं बल्कि प्रदेश के सबसे विशिष्ट स्थान विधानभवन मे हुआ। बैठकें हुईं। महीने भर सदस्यता की पर्चियां कटने की सियासत में भीड़ इकट्ठा हुई। नामांकन का लम्बा सिलसिला चला। फिर विधानभवन चुनाव और उसी दिन रात दो बजे तक काउंटिंग चली। भीड़ भाड़। हार-जीत। जुलूस-नारे। गले मिलना। एक दूसरे को मिठाई खिलाना। फूल-मालाएं पहनाना। विजेताओं को सम्मान के जश्न।

और फिर ये सब मौत के मातम में तब्दील हो गया। विजय के नारे चीत्कार में बदल गए। अब फूल-मालाएं श्रद्धांजलि में काम आएंगी। जीत की खुशियां जिन्दगी की हार में तब्दील हो चुकी हैं।

हरदिल अज़ीज़ साथी पत्रकार प्रमोद श्रीवास्तव चुनाव जीत गये पर हम सब की सामूहिख बदएहतियाती में उनकी जिन्दगी हार गई। जश्न अंधूरे रह गये। जीत और होली के रंग फीके पड़ गये।

हमारी सियासत ने हमारे प्रमोद को छीन लिया।

कोरोना शायद आने वाले वक्त में खत्म हो जाए। फिर कभी चुनाव के दिन आएंगे। लेकिन हमारा प्रमोद कभी नहीं आएगा।

अब से चौबीस बरस पहले सांध्य समाचार पत्र “डेट लाइन” से पत्रकारिता का सफर शुरू करने वाले प्रमोद की जिन्दगी की डेट लाइन को तय करने के लिए ही शायद हम लोगों ने चुनाव की जल्दबाज़ी की हठ की थी।

डेट लाइन बंद होने के बाद प्रमोद पत्रकारिता के पेशे में बने रहने के लिए कड़ा संघर्ष करते रहे। कभी दिल्ली की राष्ट्रीय पत्रिका इंडिया न्यूज से जुड़े तो कभी लोकल न्यूज़ चैनलों से। इस बीच उन्हें ईटीवी के क्राइम बेस न्यूज कार्यक्रम दास्ताने जुर्म में रिसर्चर का काम मिला। वो बंद हुआ तो न्यूज चैनल जनसंदेश से जुड़ गये। वो भी बंद हुआ तो उन्होने अपना साप्ताहिक अखबार ‘ऑफ बीट’ निकाला।

लम्बें संघर्षों और तमाम अड़चलों के बाद पांच वर्ष की लड़ाई जीत कर उन्होंने राज्य मुख्यालय की प्रेस मान्यता हासिल की। मेरे चौबीस वर्ष पुराने इस मित्र का अगला सपना था राज्य मुख्यालय संवाददाता समिति में पंहुचना। ये सपना पूरा करने के लिए उन्होंने जान की बाज़ी लगा दी।

वो चुनाव लड़े। कार्यकारिणी सदस्य का चुनाव ऐसे लड़ रहे थे कि अध्यक्ष पद प्रत्याशियों का भव्य प्रचार भी उनके प्रचार के आगे फीका पड़ रहा था।

21 मार्च को हुए समिति के चुनाव के बाद 22 मार्च को कार्यकारिणी सदस्य प्रत्याशियों का नतीजा आया। प्रमोद का सपना पूरा हुआ। वो चुनाव जीत गये। जीत का जश्न बाक़ी था। हम सब को जीत के जश्न में शरीक होना था। नियति तो देखिए, जश्न तो दूर हम सब अपने मित्र की अंतिम यात्रा में भी शरीक नहीं हो सके। प्रमोद के छोटे-छोटे यतीम बच्चों के आंसुओं को पोछने का भी हमें मौका नहीं मिला।

कोरोना का शिकार होकर आफ बीट खबरों का ये सौदागर खुद आफ बीट खबर हो गया।

हम पत्रकारों की अंधी सियासत और चुनाव की बेक़रारी के चिराग ने हम हमारी खुशियों में आग लगा दी। अन्य तमाम साथियों की जिन्दगी भी खतरे में पड़ गई।


घर मे ही आग लग गई घर के चिराग से..

क्षमा करना प्रमोद भाई

अलविदा दोस्त

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