लखनऊ:
भारत के सबसे बड़े डिजिटल हेल्थकेयर प्लेटफॉर्म मेडिबडी ने युवाओं द्वारा डॉक्टर कंसल्टेशन में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। विशेषरूप से 25 से 35 वर्ष के आयुवर्ग के युवाओं में ऑनलाइन कंसल्टेशन बढ़ा है। 44 प्रतिशत की वृद्धि के साथ प्लेटफॉर्म ने युवाओं के बीच डिजिटल हेल्थकेयर सर्विस को अपनाने की दिशा में सकारात्मक झुकाव देखा है। 2022 से 2023 के बीच प्लेटफॉर्म पर एंडोक्रायनोलॉजी कंसल्टेशन में 74.32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इससे युवाओं के बीच प्री-डायबिटीज को लेकर सतर्कता का ट्रेंड तो दिख ही रहा है, साथ ही यह युवाओं की सोच में बदलाव का भी प्रतीक है। यह पीढ़ी अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक है और सक्रियता से कदम बढ़ा रही है। इसी दौरान मेडिबडी ने पल्मनोलॉजी कंसल्टेशन में भी वृद्धि दर्ज की है। इस क्षेत्र में कंसल्टेशन में 58.87 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। अस्थमा, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज (सीओपीडी), लंग डिसऑर्डर, न्यूमोनिया और सांस संबंधी अन्य बीमारियां पल्मनोलॉजी के तहत ही कवर होती हैं। हेड ऑफ मेडिकल ऑपरेशंस डॉ. गौरी कुलकर्णी ने कहा, ‘यह देखना उत्साहजनक है कि युवा अपने स्वास्थ्य को लेकर सतर्क हैं और समय पर चिकित्सकीय परामर्श ले रहे हैं। हार्मोनल असंतुलन कई बार अनदेखा रह जाता है, जिससे आगे चलकर लंबी अवधि में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। एंडोक्रायनोलॉजी कंसल्टेशन में वृद्धि दिखाती है कि लोगों में इसे लेकर जागरूकता बढ़ी है। यह महत्वपूर्ण है कि हम हार्मोनल डिसऑर्डर और इसके लक्षणों के बारे में जागरूकता बढ़ाएं, ताकि लोग समय पर चिकित्सकीय परामर्श एवं इलाज ले सकें। सही निर्देश से हम लोगों को स्वास्थ्य के मामले में सशक्त कर सकते हैं।’इसके अतिरिक्त मेडिबडी डाटा से एंडोक्रायनोलॉजी एवं पल्मनोलॉजी के क्षेत्र में कंसल्टेशन के मामले में लैंगिक आधार पर अंतर भी देखने को मिला है। एंडोक्रायनोलॉजी कंसल्टेशन लेने वाली महिलाओं की संख्या 98.46 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि पुरुषों की संख्या 56.41 प्रतिशत बढ़ी है। इसका कारण यह है कि मासिक धर्म की अनियमितता, गर्भावस्था और मीनोपॉज के कारण महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन के मामले ज्यादा होते हैं। दूसरी तरफ पल्मनोलॉजी कंसल्टेशन लेने वाले पुरुषों की संख्या में 74.19 प्रतिशत, जबकि महिलाओं की संख्या में 36.90 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। संभवत: इसका कारण जलवायु परिवर्तन, पुरुषों में बढ़ता धूम्रपान और वायु की खराब होती गुणवत्ता हैं। इनके कारण सभी में सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ा है।