ज़ीनत सिद्दीक़ी

“दूसरे राष्ट्रपति चुनाव में जीतते ही वाइट हाउस में रणनैतिक मामलों के पूर्व अधिकारी स्टीव बेनन ने कहा कि डॉक्टर अन्थोनी फ़ाऊची और एफ़बीआई के प्रमुख क्रिस्टोफ़र रे का सिर काट कर, भाले पर टांग देना चाहिए और उनके शरीर को वाइट हाउस के दो स्थानों पर लटका देना चाहिए।”

फ़ाऊची का अपराध
फ़ाऊची का अपराध क्या है कि उन्हें इस तरीक़े से मार दिया जाना चाहिए। वे कोरोना के फैलाव के संबंध में ट्रम्प के लचर क्रियाकलाप के सबसे बड़े विरोधियों में से एक हैं क्योंकि कोरोना अब तक अमरीका में सवा दो लाख से ज़्यादा लोगों की जान ले चुका है और एक करोड़ से ज़्यादा को संक्रमित कर चुका है। दूसरे व्यक्ति का अपराध, अमरीका के चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप के मामले की जांच है।

भावुक नहीं हुए बेनन
कुछ लोगों का सोचना है कि बेनन, भावुक हो गए हैं और उन्होंने यह बातें चुनाव के परिणामों के चलते जज़्बात में आ कर कह दी हैं लेकिन ऐसा नहीं है। यह बातें अत्यधिक क्रोध में आकर नहीं कही गई हैं बल्कि ये अमरीका में हावी सोच विशेष कर ट्रम्प के चरमपंथी व नस्लवादी समर्थकों की सोच को दर्शाती है। इसी सोच के चलते हज़ारों लोग सड़कों पर आ गए है और धमकी दे रहे हैं कि अगर ट्रम्प नहीं जीते तो वे अमरीका को आग लगा देंगे। यही विचार इस बात का कारण बने कि कुछ लोग ट्रम्प के विरोधियों, जैसे ओबामा, हिलेरी क्लिंटन और सीएनएन के कार्यालय में 11 बार बम भेजें या कुछ लोग मिशिगन के गवर्नर का अपहरण या उनकी हत्या करने की कोशिश करें।

ट्रम्प के नस्लवादी रवैये का अमेरिका में बड़ा समर्थन
इस ख़तरे को कम नहीं आंकना चाहिए। इस तरह के लोग, अलग-थलग रहने वाले गुट या लोन वूल्फ़ हैं। अमरीका के चुनाव परिणामों ने यह दिखा दिया है कि ये गुट अमरीकी समाज के आधे भाग के प्रतिनिधि हैं। अगर ये गुट नहीं होते तो नस्लवादी बयानों और ग़ुडागर्दी में विश्वास रखने वाले डोनल्ड ट्रम्प कभी भी सत्ता में नहीं पहुंच सकते थे विशेष कर उनके आर्थिक, राजनैतिक व नैतिक भ्रष्टाचार से भरे हुए अतीत को देखते हुए। इस आधार पर हम देखते हैं कि सात करोड़ से ज़्यादा अमरीकी, ट्रम्प जैसे व्यक्ति को वोट देते हैं। इस बार ट्रम्प को जो वोट मिले हैं वह उन्हें पिछली बार यानी सन 2016 में मिलने वाले वोटों से भी ज़्यादा हैं। इससे पता चलता है कि उनके नस्लवादी रवैये का जनता के एक बड़े वर्ग ने समर्थन किया है। यह सच्चाई, “शांतिप्रेमी अमरीकी समाज” की कल्पना को पूरी तरह से नकार देती है।

अमरीकी समाज में नस्लवाद का सबसे बुरा दौर
नस्लवाद अमरीका में कोई नई चीज़ नहीं है क्योंकि यह देश श्वेतों के हाथों दो करोड़ स्थानीय रेड इंडियंस के जनसंहार और जातीय सफ़ाए के माध्यम से नस्लवाद के आधार पर ही बना है। इन श्वेतों ने अफ़्रीक़ी मूल के लाखों अश्वेतों को ला कर अपने खेतों में दास के रूप में काम करने पर मजबूर किया। हालांकि यह दास प्रथा सरकारी तौर पर तो ख़त्म हो गई है लेकिन अमरीकियों की सोच और आत्मा में जड़ पकड़ चुकी है और जैसे ही मौक़ा मिलता है, यह तुरंत बाहर आ जाती है। सन 2016 में ट्रम्प के सत्ता में आने और इस देश के अश्वेतों के ख़िलाफ़ युद्ध की घोषणा के बाद ट्रम्प ने वाइट हाउस में घुसते ही अफ़्रीक़ा व लैटिन अमरीका के देशों का अत्यंत बुरे शब्दों में अनादर किया, महिलाओं का अपमान किया, दुनिया के सबसे घृणित तानाशाहों का समर्थन किया, मीडिया से खुल्लम खुल्ला दुश्मनी की, नस्लवादी गुटों का समर्थन किया और कोरोना की अनदेखी करके अत्यंत स्पष्ट वैज्ञानिक सिद्धांतों का विरोध किया। इन सारी बातों ने अमरीका में नस्लवादी रुझानों को खुल कर बाहर आने का अवसर प्रदान किया और इस समय अमरीकी समाज में सबसे बुरे नस्लवाद को देखा जा सकता है।

ट्रम्प ने दी नस्लवाद को हवा
ट्रम्प ने न केवल यह कि अमरीकियों के मन से नस्लवाद के विचार को बाहर नहीं निकाला बल्कि उसे मज़बूत बना कर पूरे देश में फैला दिया। यही कारण है कि उनका सत्ताकाल, अमरीकी इतिहास का एक नया मोड़ बन गया। ट्रम्प के बाद के अमरीका में, उनसे पहले वाले अमरीका से कोई समानता नहीं है। ट्रम्प ने अमरीका में नस्लवाद की एक ऐसी विरासत छोड़ है जो इस देश के नस्लवादियों के लिए एक पवित्र स्रोत हो सकती है और यही “ट्रम्पवाद” है।