तौसीफ कुरैशी

जेल में रहते किसी नेताजी या अभिनेताजी को आज़म खान की याद नहीं आयी लेकिन जैसे ही वह बाहर आए और सियासी समीकरण बिगड़ने या बनने लगें तो उनकी सबको याद आने लगी हैं जब तक वह जेल में रहे सब चेन की नींद सोते रहें किसी ने अपनी ज़ुबान नहीं खोली सबकी ज़ुबानों पर ताले लगे हुए थे।लेकिन अब सब उन लोगों की नींद हराम हो रही हैं जो चैन की नींद सौ रहे थे और खामोशी की चादर ओढ़े थे।अखिलेश के पास सियासत में सबसे बड़ी ढाल उनके पिता हैं जब कहीं उनका इस्तेमाल करना होता हैं इस्तेमाल कर लेते हैं पिता जो ठहरे फिर वहीं छोड़ आते हैं जहां वह बस अकेले रहते हैं ऐसे इबनुलवक्त हैं अखिलेश बस अपने पाँच सात जनाधार विहीन मंडली के लोगों से घिरे रहते हैं जी भैया जी भैया और वह इसी में ख़ुश रहते हैं।

आज़म ख़ान को मनाने के लिए समाजवादी कंपनी ने कोशिशें तेज कर दी हैं। बताया जा रहा है कि अखिलेश पिता मुलायम सिंह यादव को साथ लेकर बदमिजाज आज़म ख़ान से मिलने रामपुर जा सकते हैं।समाजवादी कंपनी को अपने नौसिखिया रणनीतिकारों की वजह से विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद भी कंपनी के अंदरूनी हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे है उसकी वजह कोई और नहीं सपा कंपनी के सीईओ अखिलेश है क्योंकि वह किसी को आगे बढ़ता नहीं देखना चाहते हैं इस लिए सब पद खुद ही रखना पसंद करते हैं कुछ चाटुकारों को छोड़कर कंपनी में सबकुछ ठीक नहीं हैं।

दिग्गज मुस्लिम नेता आज़म ख़ान जेल से बाहर आ चुके हैं। बुरे वक्त में साथ नहीं निभाने की वजह से नाराज चल रहे वरिष्ठ नेता को मनाने के लिए कोशिशें तेज कर दी गई हैं। प्रसपा के शिवपाल और आज़म ख़ान के बीच बढ़ती नजदीकी से अखिलेश की चिंता बढ़ गई है। ऐसे में मुलायम सिंह यादव का इस्तेमाल किया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक मुलायम सिंह यादव को रामपुर लाकर बदमिज़ाज आज़म ख़ान को अखिलेश के लिए मुलायम करने की कोशिश की जा रही हैं।इस दौरान उनके साथ अखिलेश भी होंगे। (आज़म ख़ान को बहुत सख़्त समझा जाता है इस लिए ऐसे इंसान को दुनियावी अंदाज़ में बदमिज़ाज कहा जाता है जबकि उनके जैसे इंसान सही होते हैं जो ग़लत को ग़लत और सही को सही कहने का साहस रखते हैं।)

माना जा रहा है कि नेताजी आज़म को अपने रिश्तों की दुहाई दे अखिलेश के प्रति ‘मुलायम’ करेंगे।अगर मुलायम सिंह यादव के प्रेम जाल में आज़म खान आ जाते हैं तो आज़म के साथ नए मोर्चे का प्लान तैयार कर रहे शिवपालवा की चुनौतियां बढ़ सकती हैं। रामपुर में वह इस वक्त अपने करीबियों से मिल रहे हैं। जेल में रहने के दौरान आज़म ख़ान और सपा नेताओं के बीच दूरियां किसी से छुपी नहीं है जिनको जायज़ भी कहा जा सकता है ज़िंदगी के चालीस साल जिनके साथ और जिनके उज्ज्वल भविष्य के लिए क़ुर्बान कर दिए वह मुश्किल वक़्त में खड़े नहीं दिखाई दिए होना तो दूर की बात है बल्कि यह भी चर्चा है कि इस षड्यंत्र में अखिलेश भी शामिल था मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ।अब जेल से छूटने के बाद सियासी समीकरण बिठाने और रूठे आज़म ख़ान को मनाने की सपा में कोशिशें तेज हो गई हैं।सूत्रों का कहना है कि सपा मुलायम सिंह यादव व सपा के मालिक अखिलेशवा उनसे मिलने किसी भी दिन रामपुर जा सकते हैं।माना जा रहा है कि इसी लिए अखिलेशवा की ओर से शनिवार को बहेड़ी विधायक अताउर्रहमान को आज़म ख़ान के घर भेजा गया था लेकिन लगता है कि कोई सफलता नहीं मिली है।

शिवपाल के दांव से बढ़ गई है चिंता
अगर मुलायम सिंह यादव बेटे अखिलेश के लिए बदमिज़ाज आज़म को “मुलायम” करने में कामयाब हो गए तो शिवपाल के द्वारा बनाए गए नए सियासी समीकरण बनने से पहले ही टाँय-टाँय फिंस हो जाएंगे असल में विधानसभा चुनाव में हार के बाद से ही अखिलेश के द्वारा चुनाव के दौरान की ग़लतियों का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है एक नहीं कई मोर्चों पर बग़ावत का सामना करना पड़ रहा है।प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मालिक और सपा के मालिक के चाचा शिवपाल बग़ावत का झंडा बुलंद कर चुके हैं। आज़म ख़ान के परिवार की ओर से नाराजगी जाहिर करते ही शिवपाल ने उन्हें अपने पाले में लाकर अखिलेश को बड़ा झटका देने का दांव चल दिया। शिवपाल ना सिर्फ जमानत से पहले आज़म से जेल में मिलने पहुंचे, बल्कि जमानत मिलने के बाद भी वह स्वागत को पहुंचे।और अखिलेश विधानसभा के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मशगूल रहे जब शिवपाल के सोशल मीडिया पर आज़म ख़ान और चाचा के फ़ोटो वायरल होने लगे तब एक सोशल साइट पर स्वागत का संदेश डाला, माना जा रहा है कि आज़म ख़ान और शिवपाल साथ मिलकर नया मोर्चा बना सकते हैं।

अखिलेश का एमवाई समीकरण बिगड़ा तो और होगी दुर्गति
समाजवादी कंपनी की चुनौती इस लिए भी बढ़ गई है क्योंकि आज़म ख़ान और शिवपाल एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को साधने वाले बड़े नेता हैं। आज़म जहां इस समय यूपी में मुसलमानों के सबसे बड़े नेता समझे जाते हैं तो शिवपाल की सपा के यादव वोटबैंक पर और कार्यकर्ताओं पर मज़बूत पकड़ किसी छिपी नहीं है जिसे अखिलेश नहीं समझ पाए कि चाचा जी को जी कहना ही पड़ेगा।राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि दोनों साथ आकर नया मोर्चा बनाते हैं तो सपा का मार्केट शेयर रूपये की तरह हो जाएगा।क्योंकि अगर मुसलमान ने सपा कंपनी से करवट ली तो यह तय है कि सपा सियासत में तो रहेगी लेकिन 111 वाली या सरकार वाली भूमिका में नहीं सिर्फ़ पाँच या सात सीटों पर सिमट जाएगी।देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इसका उदाहरण है मुसलमान ने छोड़ा था सत्ता तो दूर विपक्ष की भूमिका से बाहर हो गई है यही भय सता रहा है सपा के मालिक अखिलेश को ? यही वजह है कि सियासत की हर बाज़ी में हार रहे अखिलेश अब मुलायम सिंह यादव को आगे कर आज़म ख़ान वाली अपने अहंकार के चलते हारी हुई बाज़ी जीतना चाहते हैं।