लखनऊ: श्रीराम मंदिर ट्रस्ट द्वारा किए गए जमीन खरीद घोटाले पर सवाल उठाते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष, विधायक अजय कुमार लल्लू ने कहा कि 2017 में जब हरीश पाठक और कुसुम पाठक ने बैनामा लिया तो श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय द्वारा 2011 के एग्रीमेंट का हवाला क्यों दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि घोटाला सामने आने के बाद ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत श्री नृत्य गोपाल दास जी ओर से भी ट्रस्ट के अंदर, ट्रस्ट की कार्यप्रणाली पर मनमानेपन, अपारदर्शिता का आरोप लगाया गया है। महंत जी को ट्रस्ट द्वारा लिए गए फैसलों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती है इसका अर्थ है कि दाल में कुछ काला है।

ट्रस्ट द्वारा की गई स्टाम्प पेपर की खरीद पर सवाल उठाते हुए अजय कुमार लल्लू ने कहा कि जब 18 मार्च 2021 को शाम 7.10 बजे रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी द्वारा ट्रस्ट को बेची जाने वाली जमीन के लिए स्टाम्प पेपर शाम 5.22 पर खरीदे जाते हैं मगर उसी जमीन के लिए ट्रस्ट द्वारा स्टांप पेपर शाम 5.11 पर कैसे खरीदे जा सकते हैं? स्पष्ट है कि आपस में मिलकर भगवान राम के मंदिर के लिए जनता द्वारा दिए गए चंदे का बंदरबाँट किया गया है।


सबसे महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट के कानून के मुताबिक जिस खरीद का इकरारनामा तहसील में रजिस्टर्ड नहीं है और उस पर स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान नहीं हुआ है। वह मात्र कागज का एक टुकड़ा है, जिसकी कोई वैल्यू नहीं है। जमीन की खरीद फरोख््त अयोध्या के मेयर भाजपा नेता ऋषिकेश उपाध्याय के घर पर हुई, जहां पर ट्रस्टी अनिल मिश्रा गवाह के रूप में मौजूद थे। श्री राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट द्वारा एक मेयर के घर जाकर जमीन क्यों खरीदी गई

अजय कुमार लल्लू ने बात को और स्पष्ट करते हुए कहा- भगवान राम के मंदिर के लिए आए चढ़ावे के घोटालेबाजों द्वारा बचाव में अब कहा जा रहा है कि उन्होंने यह जमीन 2 करोड़ में इसलिए मिली कि यह 2019 का एक पुराना एग्रीमेंट था, मतलब जमीन बेंचने वाले ने कई साल बिना एक रुपया लिए इनको पुराने रेट पर जमीन बेंचने का वादा कर रखा था, वाह भाई। जरा हमें भी दिखाओ ऐसा भूमि मालिक!

दूसरी बात- जब ट्रस्ट के सचिव चंपत राय यह कह रहे हैं कि आदेश आने के बाद जमीन के दाम बहुत बढ़ चुके थे, फिर भूमि मालिक को इस लाभ में हिस्सेदारी क्यों नहीं की गई? फिर एग्रीमेंट की चर्चा न रविमोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी के रजिस्टर्ड खरीद पत्र में है न मंदिर निर्माण ट्रस्ट के रजिस्टर्ड खरीद पत्र में। इसका यही अर्थ है कि ऐसा कोई एंग्रीमेंट कभी था ही नहीं और अपनी चमड़ी बचाने के लिए बाद में जाली तौर से लिखा गया।

उन्होंने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के कानून के मुताबिक जिस खरीद का इकरारनामा तहसील में रजिस्टर्ड नहीं है और स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान नहीं हुआ है तो वह मात्र कागज का एक टुकड़ा है। इस कागज के टुकड़े की कोई वैल्यू नहीं है। ये सारी खरीद फरोख्त तहसील पर हुई ही नहीं। दोनों खरीद फरोख्त अयोध्या के मेयर भाजपा नेता ऋषिकेश उपाध्याय के घर पर हुई। वहीं पर ट्रस्टी अनिल मिश्रा गवाह बनकर मौजूद थे। श्री राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट को एक मेयर के घर जाकर जमीन क्यों खरीदनी पड़ी?

यह स्पष्ट हुआ है कि यह जमीन बागीचा थी और मंदिर परिसर से लगभग 3 किलोमीटर दूर हैं, जिसका मंदिर निर्माण से कोई लेना देना है, रविमोहन तिवारी जिनसे मंदिर निर्माण ट्रस्ट ने जमीन खरीदी वह अयोध्या के मेयर भाजपा नेता ऋषिकेश उपाध्याय के समधी का साला है- दोनों रिश्तेदार हैं, दोनों का घर आस-पास है। सब जानते हैं अयोध्या के बड़े भू-माफिया कौन हैं।

उन्होंने कहा इस तरह यह स्पष्ट है कि इस पूरे प्रकरण में भाजपा- आर एस एस नेताओं की संलिप्तता है, जिनको बचाने के लिए लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पूरी भाजपा लग गयी है।