जिनेवा: कोरोना वायरस का संक्रमण फिर से फैलने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) दबाव में है। उस पर अपने अंदर सुधार करने का दबाव है, हालांकि साथ ही उम्मीद भी है कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन स्वास्थ्य एजेंसी छोड़ने के वॉशिंगटन के निर्णय को वापस ले लेंगे।

इस हफ्ते चल रही वार्षिक बैठक में डब्ल्यूएचओ की महामारी से निपटने में ज्यादा मजबूत और स्पष्ट भूमिका नहीं होने को लेकर आलोचना की गई। उदाहरण के लिए वायरस के शुरुआती दिनों की निजी अंदरूनी बैठकों में शीर्ष वैज्ञानिकों ने कुछ देशों के रूख को ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण प्रयोगशाला करार दिया जो वायरस का अध्ययन कर रहे हैं” और क्या होता है यह देखने का ‘‘बड़ा” अवसर बताया गया। यह जानकारी ‘एसोसिएटेड प्रेस’ को हासिल रिकॉर्डिंग से पता चलती है।

बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसी ने सार्वजनिक तौर पर सरकारों की उनकी प्रतिक्रिया के लिए सराहना की। बाइडन ने जून में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लिए गए निर्णय को पलटने का वादा किया है, जिन्होंने डब्ल्यूएचओ के कोष में कटौती कर दी और अमेरिका एजेंसी से अलग हो गया। डब्ल्यूएचओ सदस्य देशों की इस मांग के समक्ष भी झुक गया है कि महामारी से निपटने में इसके प्रबंधन की समीक्षा स्वतंत्र समिति करेगी। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने सोमवार को कहा कि एजेंसी ने इसे मजबूत बनाने के ‘‘हर प्रयास” का स्वागत किया है।

डब्ल्यूएचओ के समक्ष एक ऊहापोह की स्थिति यह भी है कि उसके पास कोई बाध्यकारी शक्तियां नहीं है या अधिकार नहीं है कि वह देशों के अंदर स्वतंत्र रूप से जांच करे। इसके बजाय स्वास्थ्य एजेंसी पर्दे के पीछे वार्ता और सदस्य देशों के सहयोग पर निर्भर है। डब्ल्यूएचओ की अंदरूनी बैठकों की दर्जनों लीक रिकॉर्डिंग और ‘द एसोसिएटेड प्रेस’ को जनवरी से अप्रैल के बीच हासिल दस्तावेजों के मुताबिक, आलोचकों का कहना है कि अपने सदस्य देशों से जिरह करने से बचने के कारण डब्ल्यूएचओ को कीमत चुकानी पड़ रही है।