मोहम्मद आरिफ नगरामी

उत्तर प्रदेश असेम्बली की 302 सीटों के लिए हुये इन्तेखाबात में अगरचे वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी और वजीरे आला योगी आदित्य नाथ की फआल और करिश्माती केयादत में दुनिया की सबसे बडी सियासी जमाअत बीजेपी ने शानदान कामयाबी हासिल की है। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को छोड कर तमाम सियासी जमाअतों बशमूल कांग्रेस और मायावती की बहुजन समाज पार्टी का उत्तर प्रदेश में वजूद खतरे में पड गया है। बीजेपी की कामयाबी ने जहां एक तरफ 37 साल पुराना रेकार्ड तोड दिया है कि यूपी में लगातार दो बार कोई भी सियासी जमाअत एक्तेदार में नहंी आयी, तो दूसरी तरफ यह भी साबित हो गया है कि मायावती और कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को हराने में अहेम किरदार अदा किया है। मायावती कांग्रेस की फिहरिस्त में असद्दुद्दीन अवैसी का नाम भी शामिल है जिन्होंने बीजेपी की बी टीम बन कर सेक्यूलर वोटों को तकसीम करने का शर्मनाक काम किया है। हालांकि एलेक्शन में बीजेपी ने दोबारा एक्तेदार पर कब्जा कर लिया है, मगर इसके बावजूद एलेक्शन में समाजवादी पार्टी की कारकर्दगी को किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। समाजवादी पार्टी ने 2017 के मुकाबले में इस बार 70 सीेंटें ज्यादा जीती हैं। समाजवादी पार्टी ने 2024 के लिए बीजेपी के सामने एक सवालिया निशान कायम कर दिया है। इसका सुबूत असेम्बली इन्तेखाबात के दौरान एसपी के वोट शेयर में होने वाला जबर्दस्त इजाफा भी हेै। एलेक्शन में बीजेपी ने भले ही अपने हरीफों को चारों खाने चित कर दिया हो लेकिन बीजेपी ने महसूस कर लिया है कि अखिलेश यादव ने भी 70 सीटें जीत कर बीजेपी के सामने एक बहुत बडा चैलेंज खडा कर दिया है। बीजेपी की आला केयादत को भी इस बात का एहसास है कि 2024 में होने वाले आम इन्तेखाबात में समाजवादी पार्टी मुल्क की सबसे बडी रियासत जो 80 मेम्बरान को चुन कर लोक सभा भेजती है बीजेपी के लिए बडा चैलेंज पेश कर सकती है। वाजेह रहे कि समाजवादी पार्टी के बानी मुलायम सिंह यादव भी अपने दौर मेें इतना वोट फीसद हासिल नहीं कर पाये जितना कि उनके बेटे अखिलेश यादव ने इस वक्त एलेक्शन में हासिल कर लिया। याद रहे कि 1993 मेे एसपी ने उत्तर प्रदेश में सबसे पहला एलेक्यशन लडा था उस वक्त एसपी को 17.94 फीसद वोट मिले थे। तीन साल बाद 1996 में मुलायम सिंह यादव की केयादत वाली पार्टी को 21.08 फीसद वोट मिले। उसके बाद 2002 मेें एसपी का वोट फीसद बढकर 25.37 ओर 2012 के असेम्बली इन्तेखाबात से पहले मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को आगे बढाना शुरू कर दिया था और अखिलेश ने गांव गावं जा कर पार्टी को मजबूत बनाया और इस तरह उनका वोट शेयर 29.15 हो गया था ओर उसके बाद रियासत में एसपी की इन्तेहाई मजबूत हुकूमत बन गयी थी। मगर 2017 मेे एसपी का वोट फीसद 29.15 से कम हो कर 21.82 फीसद पर आ गया।

इन हालात से अखिलेश यादव ने बहुत कुछ सीखा और यही वजह कि 2017 से 2022 के दरमियान अखिलेश यादव ने बहुत सारे सियासी तजुर्बात भी किये। कभी अपने वालिद की सख्त सियासी दुशमन रही मायावती की हाथी को साईकिल पर चढा कर एलेक्शन लडने की हिकमते अमली अपनाई तो मुल्क की सबसे बडी और पुरानी कांग्रेस ओैर चौधरीी चरण सिंह के वारिस जयंत चौधरी की पार्टी के साथ इत्तेहाद किया। हालिया एलेक्शन में उन्होंने बीजेपी की राह पर चलते हुये तमाम पसमांदा जातों की एक कौसो कजह भी बनाने की कोशिश की। मगर इसके बावजूद वह एतेदार से दूर रहे। लेकिन एक्तेदार ही सब कुछ नहीं होता है। उनके तजुर्बात की वजह से उन्हें उत्तर प्रदेशस में तनहा 32.01 फीसद वोट शेयर मिला। जो आज तक कभी एसपी के खाते मेें नहीं आया था। उनके इत्तेहादियो को मिलने वाले वोट अलग हैं। हालिया एलेशन में अखिलेश यादव ने बीजेपी के खिलाफ ऐसी हवा चलाई कि ख्वातीन करी सिक्योरिटी मंहगाई नौजवानों की नौकरियां और बेरोजगारी, सरकारी मुलाजमतें पुराना पेन्शन सिस्टम, दलित जुल्म, और किसानों की एनएसपी को इशू बनाकर अवाम हुक्मरां बीजेपी से हिसाब मांगने लगे थे लेकिन मायावती की बेअमली की वजह से दलित वोट बैंक , मुफत राशन और दीगर फलाही स्कीमों के सराब मेें कमल दिल में समा गया। इसकी वजह से बीजेपी के वोट शेयर में दो फीसद का इजाफा हो गया। लेकिन इस बात से इन्कार नहंी किया जा सकता कि मायावती जब भी सरगर्म हो गी तो एक बार भी ब्रादरी उनके पाले में फिसल सकती है।

एक तरफ इस एलेक्शन में वजीरे आला योगी आदित्य नाथ को वजीरे आजम मोदी के खिलाफ एक मजबूत लीडर की तरह कायम किया है तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव ने भी उत्तर प्रदेश जैसी बडी और मजबूत रियासत मेें ेबीजेपी के सामने एक मुअस्सिर हरीफ के तौर पर अपनी पोजीशन मुस्तहकम करने मेें कामयाब हो गये हैं। इसके बरअक्स अपनी अलग धुन में चलने वाली कांग्रेस को उनके इन्तेखाबी नताएज ने पूरी तरह से जमींबोस कर दिया। वैसे भी कांग्रेस ने इस बात को अच्छी तरह सोच लिया है कि फिलहाल हिन्दुस्तान सियासत में इसके लिये फ्रंट फुूट पर खेलने का वक्त नहीं है। खास कर उत्तर प्रदेश में जहां से 80 मेम्बराने पार्लियमेंट मुन्तखब हुये है,सख्त मेहनत के बावजूद एसपी को वैसी कामयाबी नहीं मिली जिसकी तवक्को की जा रही थी। लेकिन इस बात से इन्कार नहंी किया जा सकता है कि एसपी का मुस्तकबिल ताबनाक है। मगर शर्त यह है। कि वह शिकस्त से हौसला हारने के बजाये अपनी गल्तियों की इस्लाह करते हुये जहदे मुसलसल के मन्तर पर अमल करे। समाजवादी पार्टी ने अखिलेश यादव की केयादत में बेहतरीन कारकर्दगी का मुजाहिरा किया है जैसा कि खुद अखिलेश यादव ने किया है। एसपी की मेम्बरान की तादाद में ढाई गुना ओैर उसके वोट फीसदी डेढ गुना का इजाफा हुआ है।