वाशिंगटन: दुनिया की सबसे बड़ी ताकत में शामिल अमेरिका की सत्ता किसके पास होगी, इसका फैसला करने के लिए अमेरिकी में मंगलवार को मतदान शुरू हो चुका है। कोरोना वायरस महामारी संकट के बीच यह मतदान संयुक्त राज्य अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के चयन के लिए हो रहा है। इस चुनावी जंग में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और पूर्व उपराष्ट्रपति जो बिडेन चुनौती दे रहे हैं। भारतीय समयानुसार अमेरिका में दोपहर 3.30 बजे (अमेरिका के समयानुसार सुबह छह बजे) मतदान शुरू हुआ। मतगणना हर राज्य में चुनाव प्रक्रिया पूरी होते ही मंगलवार रात (भारत में बुधवार को) ही शुरू हो जाएगी। ट्रंप और जो बिडेन के बीच कांटे की टक्कर है और आशंका इस बात की है कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाए। अमेरिका के लोगों को डर इस बात का है कि नतीजों के बाद हिंसा भी भड़क सकती है। जिसके चलते कई शहरों के दुकानदारों ने सुरक्षा के मद्देनजर दुकानें बंद कर दी है और उन्हें लकड़ी के बोर्ड से ढक भी दिया है। ट्रंप जीतेंगे या जो बिडेन, यह तो वक्त ही बताएगा कि अमेरिका की जनता किसे पसंद करती है। लेकिन, व्हाइट हाउस तक पहुंचने की इस यात्रा में कई अहम पड़ाव आते हैं।

पहला पड़ाव
प्राइमरी को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का पहला पायदान कहा जा सकता है। पार्टियां और राज्य सरकारें इसे आयोजित करती हैं। एक तरह से देखें तो यह प्रक्रिया चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाती है। नेता अपनी पार्टी की तरफ से नामांकन करते हैं। फिर वहां की जनता इस पर मुहर लगाती है। कुछ राज्यों में सीक्रेट बैलट से उम्मीदवार तय होता है तो कुछ में ओपन बैलट से। दोनों में फर्क इतना है कि सीक्रेट बैलट में सिर्फ पार्टी मेंबर वोटिंग करते हैं और ओपन बैलट में जनता भी सीधे वोट डाल सकती है। दरअसल, ये लोग अपना एक प्रतिनिधि चुनते हैं और ये प्रतिनिधि पार्टी सम्मेलन में प्रेसिडेंट कैंडिडेट नॉमिनेट करते हैं। अब 44 राज्यों में प्राइमरी इलेक्शन होते हैं। 2016 के बाद 10 राज्य कॉकस से प्राइमरीज पर शिफ्ट हुए।

दूसरा पड़ाव
कॉकस राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनने का पुराना तरीका है। इसे आयोवा कॉकस भी कहा जाता है। अब सिर्फ 6 राज्यों में इसका इस्तेमाल होता है। कॉकस को बहुत आसान भाषा में समझें तो पहली चीज तो यह है कि इसका आयोजन सीधे पार्टियां करती हैं। इसमें राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती। पार्टियां ही नियम और मतदाता तय करती हैं। यहां डेलिगेट चुनने के लिए बैलट का इस्तेमाल नहीं होता। पार्टी मेंबर्स कई उम्मीदवारों में से एक को हाथ उठाकर चुनते हैं।

तीसरा पड़ाव
कन्वेंशन को सरल शब्दों में समझें तो इसे पार्टी सम्मेलन भी कह सकते हैं। इसमें पार्टी प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं यानी वो लोग जो प्राइमरीज या कॉकस से चुनकर आए हैं। वे यहां मतदान के जरिए उस कैंडिडेट को चुनते हैं जो राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनेगा। राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार पार्टी सांसदों से सलाह करके उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करता है। हर राज्य से चुने गए डेलिगेट्स की संख्या अलग होती है। यह आबादी पर निर्भर करती है। कैलिफोर्निया में सबसे ज्यादा 415 डेलिगेट्स हैं।

चौथा पड़ाव
अमेरिका में मतदाता पहले इलेक्टर्स चुनते हैं। इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। ये इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रपति चुनता है। अब ये जरूरी नहीं कि जनता जिसे इलेक्टर चुन रही है, वो उसके पसंद के उम्मीदवार यानी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को ही वोट दे। बता दें कि 2016 में डोनाल्ड ट्रंप को 62,984,825 (46.4% वोट्स) और हिलेरी को 65,853,516 (48.5% वोट्स) मिले। जाहिर है, हिलेरी जनता की पहली पसंद थीं। लेकिन, इलेक्टोरल वोट ने ट्रंप को जिता दिया।

पांचवा और आखिरी पड़ाव
यह वो पड़ाव है, जिस पर काफी बहस होती है। हालांकि कई लोग इसे गलत भी ठहराने लगे हैं। पॉपुलर वोट के जरिए 50 राज्यों में 538 इलेक्टर्स चुने जाते हैं। इनसे इलेक्टोरल कॉलेज बनता है। राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टरल कॉलेज वोट चाहिए। जिस राज्य की जितनी ज्यादा आबादी, उसके उतने ज्यादा इलेक्टोरल वोट। हर राज्य से दोनों सदनों के लिए जितने सांसद चुने जाते हैं, उतने ही उसके इलेक्टर्स होंगे। कैलिफोर्निया में 55 तो व्योमिंग में सिर्फ 3 इलेक्टर्स हैं। 2016 में ट्रंप को 306 इलेक्टर्स का समर्थन मिला। हिलेरी के लिए आंकड़ा 232 पर सिमट गया। वे चुनाव हार गईं।