लखनऊ

योगी राज में महिलाओं की कत्लगाह बना उत्तर प्रदेश: दारापुरी

आइपीएफ ने महिला राज्यपाल को पत्र भेज महिलाओं की सुरक्षा की उठाई मांग

181 वूमेन हेल्पलाइन व महिला समाख्या को चला कर की जाए महिला सुरक्षा

लखनऊ: मुख्यमंत्री के क्षेत्र गोरखपुर में 17 साल की लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसके शरीर को सिगरेट से दाग देना, लखीमपुर खीरी में 13 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसकी जबान तक काट डालना, हापुड़ में 6 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार व देश की प्रतिभा कैलिफोर्निया में पढ़ने वाली 20 वर्षीय सुदीक्षा की ग्रेटर नोएडा में छेड़खानी के कारण सड़क दुधर्टना में मौत समेत प्रदेश में लगातार हो रही महिला हिंसा की घटनाओं ने इंसानियत को हिला कर रख दिया है. प्रदेश महिलाओं की कत्लगाह में तब्दील हो गया है. ऐसी स्थिति में भी महिला सुरक्षा के लिए चल रही 181 वूमेन हेल्पलाइन व महिला समाख्या जैसी योजनाओं को सरकार ने समाप्त कर दिया है. इसलिए महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला राज्यपाल को हस्तक्षेप कर सरकार को निर्देश देना चाहिए. यह मांग आज राज्यपाल को आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी ने पत्र भेज कर उठाई है. उक्त पत्र आइपीएफ नेता दिनकर कपूर ने राज्यपाल कार्यालय में जाकर दिया व ईमेल से भी भेजा गया.

पत्र में कहा गया है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश महिला उत्पीड़न के मामले में देश में सबसे ऊंचे पायदान पर है. महिलाओं पर हिंसा, बलात्कार, छेड़छाड़ आदि की घटनाएं आए दिन हो रही हैं. बावजूद इसके सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए चलायी जा रही 181 वूमेन हेल्पलाइन की सुविधा को दो माह से बंद किया हुआ है। इसमें काम करने वाली महिला कर्मचारियों को एक वर्ष से ज्यादा समय से वेतन नहीं दिया गया है। परिणामस्वरूप उन्नाव में कार्यरत एक महिला आयुषी सिंह ने 4 जून 2020 को आत्महत्या तक कर ली। इसके बाद हरकत में आयी सरकार ने जुलाई में 17 करोड़ 82 लाख रूपए वेतन देने का आदेश किया जिसे महज कमीशनखोरी के कारण आज तक भुगतान नहीं किया गया। इसी प्रकार घरेलू हिंसा कानून के तहत संचालित महिला समाख्या कार्यक्रम को सरकार ने बंद करने का निर्णय ले लिया है। इसके कर्मचारियों को भी जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं,20 माह से वेतन नहीं मिला है। जबकि 181 वूमेन हेल्पलाइन और महिला समाख्या दोनों ही योजनाओं ने उत्तर प्रदेश में महिला हिंसा के मामलों में प्रभावी पहल ली थी जिसे खुद सरकार ने स्वीकार भी किया था। यही हाल प्रदेश में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, महिला शरणालयों व वन स्टाप सेंटर जैसी योजनाओं का भी है। इस वित्तीय वर्ष के बजट में महिला सशक्तिकरण की इन योजनाओं के लिए सरकार ने कोई बजट ही आवंटित नहीं किया है. परिणामतः महिला हिंसा की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है।

आइपीएफ ने पत्र में महिला होने के नाते महामहिम से मांग की है कि वे महिलाओं के जीवन की सुरक्षा के लिए तत्काल हस्तक्षेप कर सरकार को निर्देशित करे की वह महिला हिंसा की घटनाओं के लिए जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जवाबदेह बनाएं और महिलाओं के साथ हिंसा, बलात्कार, हत्या की घटनाएं होने पर उन्हें दण्ड़ित करे और 181 वूमेन हेल्पलाइन और महिला समाख्या जैसी महिलाओं के लिए हितकारी योजनाओं को पूरी क्षमता से चलाया जाए ताकि हिंसात्मक घटनाएं होने पर महिलाओं को राहत मिल सके और इनके कर्मचारियों के बकाए वेतन का अविलम्ब भुगतान करे।

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