लखनऊ: योगी सरकार द्वारा आयोजित यूपी पावर कान्क्लेव 2022 पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यूपी वर्कर्स फ्रंट प्रदेश उपाध्यक्ष ई. दुर्गा प्रसाद ने कहा कि यूपी सरकार का पावर सेक्टर के प्राइवटाईजेशन के ऐजेंडा पर फोकस है। प्रदेश में एटीएण्डसी लास (aggregate technical & commercial loss) को कम करने और पावर सेक्टर में सुधार के लिए जरूरी बता कर निजी क्षेत्र को बतौर विकल्प पेश करना राष्ट्र व जनहित के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि पावर सेक्टर में रिफार्म के नाम पर अगर पावर कान्क्लेव में निजीकरण का प्रारूप पेश किया गया तो यह अस्वीकार्य होगा। उन्होंने आशंका जताई कि सरकार के रवैये से अभियंता, कर्मचारी व आम उपभोक्ताओं के ऊपर उत्पीड़न की कार्यवाही में इजाफा हो सकता है।

प्रेस बयान में कहा गया है कि राजस्व क्षति के नाम पर कृषि कार्यों के लिए मीटरिंग का प्रस्ताव अनुचित है, ऐसा करने की बजाय सरकार को किसानों को मुफ्त बिजली देने के वादे को पूरा करना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि पावर सेक्टर के निजीकरण की बजाय पब्लिक सेक्टर को मजबूत बनाने की जरूरत है, इससे किसानों को मुफ्त बिजली एवं आम जनता को सस्ती व निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती थी। उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे कारपोरेट बिजली कंपनियों की लूट के लिए बेहद सस्ती बिजली देने वाले सरकारी बिजली घरों से थर्मल बैकिंग की जाती है। इसी तरह अंबानी, बजाज आदि कंपनियों से 6 रू से लेकर 18 रू प्रति यूनिट तक बिजली खरीदी गई। जबकि सरकारी बिजली घरों में औसत लागत 3 रू से ज्यादा नहीं है। आज बिजली संकट व बिजली बोर्डों के भारी घाटे की यही प्रमुख वजह है। इससे सिर्फ कारपोरेट बिजली कंपनियों को फायदा हुआ है, जिन्होंने अकूत मुनाफाखोरी व लूट की। कोयला आपूर्ति का जानबूझकर पैदा किये गए संकट का हवाला देते हुए कहा कि अडानी आदि कारपोरेट्स की लूट को सुगम बनाने का एक ज्वलंत उदाहरण है। दरअसल निजीकरण का मकसद ही कारपोरेट्स की मुनाफाखोरी है। उन्होंने इलेक्ट्रीसिटी अमेंडमेंट विधेयक को राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध बताते हुए इसे वापस लेने की मांग दोहराई। बताया कि भले ही विधेयक को स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया है लेकिन इसे वापस लेने की