मो. आरिफ नगरामी

देहली हाई कोर्ट की फाजिल खातून जज प्रतिभा सिंह ने मरकजी हुकूमत को यूनिफार्म सिविल कोड के नेफाज की तजवीज भेज कर इस्लामियाने हिन्द में कुछ देर के लिये ही सही एक बार फिर बेचैनी पैदा कर दी है। देहली हाई कोर्ट का मुताल्बा मुल्क की किसी हाई कोर्ट की जानिब से यूनिफार्म सिविल कोड का मुताल्बा कोई मुताल्बा नहीं है। इससे पहले भी मुख्तलिफ रियासतों की अदालतें मरकजी हुकूमतों को इस तरह की अरजी भेज चुके है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी एक से जायेद मरतबा हुकूमत को यूनिफार्म सिविल कोड के नेफाज के तईं गफलत बरतने के इल्जाम में फटकार लगा चुकी है। तीन माह कब्ल मार्च 20ू21 में सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी के रूक्न और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्वनि उपाध्याय ने पांच ऐसी अरजियां दाखिल की हैं जिन्हें यूनिफार्म सिविल कोर्ट की जानिब बढते कदम बतलाया गया है। अदालत ने इन पांच अरजियों की समाअत को मन्जूर करते हुये मरकज से उन पर जवाब मांगा है। हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में मस्लिम पर्सनल लॉ के अलावा इण्डियन क्रिश्चियन मैरिज ऐक्ट 1872 इण्डियन डाईवोर्स ऐक्ट 1869, पारसी मैरिज एण्ड डाईवोर्स ऐट 1936 वग़ैरह मुखतलिफ पर्सनल कवानीन कारकर्द हैं।

जहां तक यक्सा सिविल कोड का मसला है तो यह मामला कोई नया नहीं है। बल्कि 1985 में सुप्रीम कोर्ट में जार्डन डाइंग डीसा और एस0एस0 चौपडा के तलाक़ के मुकदमा की समाअत के दौरान मुल्क में यक्सा सिविल कोड को नाफिज करने के सिलसिले में मरकजी हुकूमत की वेजारते कानून को भी सिफारिश भेज चुका है मगर 35 साल गुजर जाने के बाद भी कोई सरकार सिविल कोड पर अमल दरामद तो दरकिनार उस का मसौदा भी तैयार नहीं कर सकी है। दरअस्ल मीडिया की मारफत फिरकावाराना मुनाफिरत फैलाने की साहिश रच कर फिस्ताई ताकतें ऐसा माहौल पैदा करना चाहती है। कि मुसलमानों को लगे कि यह कानून सिर्फ उनके लिये बनाया जा रहा है और इस बात का यकीन रखिये कि उत्तर प्रदेश के असेम्बली इन्तेखाबात से कब्ल फिरकावाराना कशीदगी पैदा करने के लिये फिसताई ताकतें मजीद बहाने पैदा करेंगी। काबिले गौर बात यह है कि देहली हाई कोर्ट ने तलाक़ के जिस मुकदमेें के दौरान यकसां शहरी कानून नाफिज किये जाने का जिक्र किया है इस मुकदमें का कोई भी न्यूज चैनल भूले से भी जिक्र नहीं कर रहा है क्योंकि वह मुसलमानों का नहीं बल्कि एक आला दरजे के हिन्दू मर्द और एक शिडयूल ट्राइब्स से तअल्लुक रखने वाली हिन्दू खातून का केस था । हर चंद कि दोनों की शादी हिन्दू मैरिज ऐक्ट के तहेत हुयी थी मगर जब शौहर ने अदालत में तलाक़ के लिये केस दायर किया तो खातून ने कहा कि इसका तअल्लुक मीणा जाति से है जिसको सरकार ने दरजे फिहरिस्त कबीले का दरजा दिया हुआ है। खातून का कहना था कि पसमान्दा कबाएल के लिये बनाये गये कवानीन के बाइस हिन्दू मैरिज ऐक्ट के सेक्शन 2 के ऐक्ट 2 के तहेत मुस्तशना रखा गया है। खातून की इस दलील को कुबूल करते हुये अदालत ने शौहर की जानिब से दाखिल की गयी तलाक़ की अरजी को खारिज कर दिया जिसके बाद यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा मगर अय्यार चैनलों ने इसका रूख मुसलमानों की तरफ मोड दिया और न्यूज चैनलों ने घिसे पिटे मुस्लिम चेहरों को बुला कर यह कहलवाया कि यह शरीअत पर हमला है बल्कि हकीकत तो यह है कि यूनिफार्म सिविल कोेड से शिडयूल कास्ट, शेड्यूल ट्राईब्स, सिख, पारसी , जैनी, मुसलमान, ईसाई और बौद्ध मजहब के मानने वाले भी मुतअस्सिर होंगें।

हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुत बडी तादाद मेें ऐसे शरपसंद अनासिर हैं जिनकी मुसलसल यह कोशिश रहीं है कि अकलियती फिरकों के हुकूूक ज्यादा से ज्यादा सलब कर लिये जायें मगर इस लाबी को शायद इस बात का इल्म नहीं है कि यूनिफार्म सिविल कोड किसी एक अकलियत के चेहरे का दाग नहीं है बल्कि हिन्दुस्तान की रंग बिरंगी गंगा जमुनी तजीब को मजीद निखारने वाला गाजह है। यूनिफार्म सिविल कोड के नेफाज का मुताल्बा करने वालों को लगता है कि अगर पूरे मुल्क में शादी ब्याह, वेरासत, और जायेदाद की तकसीम के सिलसिले में यक्सां कानून नाफिज हो जायेगा तो मुल्क के सारे मसाएल हल हो जायेंगेें बल्कि हकीकत यह है कि मुल्क के अलग अलग हिस्सों मेें खुद हिन्दुओं में शादी ब्याह के मसाएल इतने मुखतलिफ हैं कि इनको सुधारने का तसव्वुर करना भी मुहाल है मिसाल के तौर पर हरियाणा में घर की बहू ससुर , देवर और जेठ से पर्दा करती है तो मुल्क के पहाडी इलाकों में एक ही औरत से घर के कई लोग शादी करते है। इसको ‘‘बहू पति प्रथा‘‘ कहा जाता है।

यक्सां सिविल कोड के मामले में एक मरतबा फिर मुल्क मुसलमानों को उल्झाने की कोशिश की जा रही है और इस मसले को इस तरह पेश किया जा रहा है कि जैसे इस कानून की तशकील में मुल्क के मुसलमान ही सब से बडी रूकावट है। यक्सां सिविल कोड का शोशा बहुत पुराना है । आजादी से कब्ल जो मोती लाल नेहरू ने जो रिपोर्ट पेश की थी उस में भी यह बात कही गयी थी लेकिन लाहौर के इजलास में इसको मुसतरद कर दिया गया था। खुद आर0एस0एस0 भी यूनिफार्म सिविल कोड की मुखालिफ है। गुरू ग्वालकर ने अपनी मौत से कब्ल एक इंटरव्यू में कहा था कि यकसां सिविल कोड गैरफितरी है क्योंकि कुदरत यक्सानियत को पसन्द नहीं करती है। उन्होंने अपने इंटरव्यू में यह भी कहा था कि अगर इस मुल्क के मुसलमान अपनी शिनाख्त मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिया रखते हैं तो उस में हर्ज ही क्या है?

आल इण्डिया मिल्ली कौंसिल के कौमी नायब सदर मौलाना अनीसुर्रहमान कासिमी ने अपनी राये का इजहार करते हुये कहा है कि यक्सां सिविल कोड इस मुल्क के लिये नाकाबिले अमल है ओर अगर इस मुल्क में इस कानून को नाफिज किया गया तो पूरे मुल्क में अनारकी फैल जायेगी। उनका कहना है हमारा मुल्क भारत मुख्तलिफ तहजीबों, मुजाहिब ओर कल्चरों का मानने वाला है यहां के रहने वाले अलग अलग धर्म और अक़ीदों में एतेबार रखते है। मुख्तलिफ इलाकों मेें और खित्तों का अलग अलग रस्म व रवाज है। लोगों का अपना अपना तरीकये जिन्दिगी है यह एक तकसीरी मुल्क है। जहां के रस्म व रवाज और तौर तरीके अलग है। इनका अपना कानून है जिसके तहेत अपने यहां शादी ब्याह, तिलाक, वेरासत वगैरा पर अमल करते है। ऐसे में इस तरह का कानून मल्क के मफाद के खिलाफ है।

असल में यह मामला कानून का है ही नहीं यह जेहनियत का मसला है। बेशतरी हिन्दुस्तानियों मर्दों की जेहनियत ख्वातीन के मामले में इतनी गिरी हुयी है कि उसको कोई कानून ऊपर उठा ही नहीं सकता है। इसलिये यक्सां सिविल कोड का मतालबा करने वालों को चहिये कि वह ख्वातीन के इस्तेहसाल को रोकने की कोशिश करनी चाहिये। बदकिस्मती से लडकियों का इस्तेहसाल हर फिरके मेें हो रहा है। ख्वातीन के इस्तेहसाल के वाकेआत से न तो मुसलमान इन्कार कर सकते हैं और न हिन्दू। हालांकि हमारे मुल्क में बहुत से पुरानी रवायात का खात्मा हो गया है। मिसाल के तौर पर ख्वातीन के ‘‘सती‘‘ होने की रस्म, गैर कानूनी करार दी जा चुकी है। लडाई में हारने के बाद कबीले की ख्वातीन की इजतेमाई खुदसोजी की रस्म खत्म हो गयी है। यह बात भी बाअसे मुसर्रत है कि यहां के सब ही फिरकों ने मुसलमानों में रायज तिलाक के रिवाज को अपना लिया। जिसकी वजह से अब जन्म जन्म का बंधन होने वाली बात खत्म हो गयी। मुसलमानों की एक अच्छी रस्म है। लडके की जानिब से लडकी को दी जाने वाली महर की रकम जिससे लडकी के वाल्दैन लडके के साथ भेजा जाने वाला सामान मुहैया करवाते है। मगर यक्सां सिविल कोड का कोई हामी यह नहीं कहता कि महेर की रकम पाने का हक हर हिन्दुस्तानी लडकी को मिलना चाहिये।