अमरीका की घटनाओं पर नज़र रखने वाले अधिकांश विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रम्प, ईरान और प्रतिरोध मोर्चे पर जाते जाते सैन्य हमला कर सकते हैं। ट्रम्प के चार वर्षीय सत्ता काल में ईरान और अमरीका के बीच कई बार तनाव इतना बढ़ा था कि उसके परिणमा में सैन्य टकराव हो सकता था लेकिन एसा नहीं हुआ तो अब अगर जाते जाते ट्रम्प इस तरह का कोई क़दम उठाते हैं तो उसकी सब से बड़ी वजह, चुनाव में उनकी हार होगी। मानो वह ईरान और उसके घटकों को बाइडन के चुनावी प्रचार टीम का हिस्सा मान रहे हैं या फिर वह यह समझ रहे हैं कि ईरान की वजह से वह अमरीका में कोरोना पर नियंत्रण करने में विफल रहे हैं।

चुनाव में ट्रम्प की हार की जो भी वजह हो क्या यह संभव है कि ट्रम्प वाइट हाउस छोड़ने से पहले ईरान और प्रतिरोध मोर्चे के खिलाफ कोई सैन्य कार्यवाही कर दें?

चार बरसों के दौरान ट्रम्प के क्रियाकलापों पर नज़र डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका व्यवहार विरोधाभासों से भरा है। मंत्रिमंडल में उतावले पन में किसी को लेना और फिर उसी जल्दबाज़ी में उसे बाहर का रास्ता दिखाने की उनकी आदत से लेकर बहुत से अंतरराष्ट्रीय समझौतों से निकलने तक सब कुछ उनके भीतर और उनके व्यवहार के विरोधाभास का सूचक है। ट्रम्प का सब से ताज़ा विचित्र व्यवहार अमरीका के चुनाव परिणाम को स्वीकार न करना है वह भी बचकाने और जूनूनी अंदाज़ में। इन हालात में यह संभव है कि वह ईरान के खिलाफ आक्रमण की कोई योजना बना लें अलबत्ता ईरान पर किसी भी तरह के आक्रमण के भयानक परिणाम सामने आएंगे और इस प्रकार की कोई भी कार्यवाही बड़ी तेज़ी से विनाशकारी युद्ध में बदल जाएगी।

लेकिन एक ठोस सच्चाई यह भी है कि अमरीका में पर्दे के पीछे रहने वाला सत्ता का गलियारा जो हमेशा राष्ट्रपति के महत्वपूर्ण फैसलों में भूमिका निभाता है, ट्रम्प को युद्ध के बारे में इस तरह का निर्णायक और खतरनाक फैसला करने की अनुमति नहीं देगा।

सैन्य दृष्टि से आज के हालात वैसे ही हैं जैसे पहले थे विशेषकर ईरान की रक्षा शक्ति को अगर देखा जाए तो वह दिन प्रतिदिन बढ़ ही रही है और हालिया दिनों में ईरानी नौसेना के अभ्यास और मिसाइलों के परीक्षणों से ईरान की बढ़ती प्रतिरक्षा शक्ति को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। वाशिंग्टन को भी इस का बहुत अच्छी तरह से पता है और यही वजह है कि वह ईरान पर दबाव डालता है। सच्चाई यह है कि हालिया दिनों में ईरान ने जिस तरह से शक्ति प्रदर्शन किया है वह किसी भी अमरीकी राष्ट्रपति और सैन्य कमांडर को ईरान के खिलाफ किसी भी सैन्य कार्यवाही से पहले उसकी शक्ति के सभी पहलुओं पर गौर करने पर मजबूर करता है।

इसके अलावा ईरान या प्रतिरोध मोर्चे के खिलाफ किसी भी कार्यवाही के लिए इस्राईल हमेशा से अमरीका की एक संवेदनशील कमज़ोरी रहा है क्योंकि ईरान के खिलाफ कार्यवाही से इस्राईल बुरी तरह से खतरे में पड़ जाएगा और निश्चित रूप से इस्राईली नेता, अमरीका में चुनाव परिणाम पर होने वाले हंगामों से अलग हट कर, ईरान के खिलाफ ट्रम्प की संभावित कार्यवाही के भयानक परिणामों पर विचार कर रहे हैं।

अगर यह रिपोर्ट सही हो कि अमरीका के यहूदियों ने, इस्राईल की खूब सेवा करने वाले ट्रम्प को छोड़ कर बाइडन को वोट दिया है तो यही चीज़ इस्राईल को, इलाक़े में ट्रम्प की ओर से किसी भी सैन्य कार्यवाही के विरोध पर तैयार कर देती है और यह सब को पता है कि वाइट हाउस के फैसलों पर इस्राईल किस हद तक प्रभाव डाल सकता है।

अमरीका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर को हटाने का यह अर्थ नहीं है कि ट्रम्प ईरान के खिलाफ युद्ध के अपने फैसले को व्यवहारिक बनाने के चरण में दाखिल हो चुके हैं क्योंकि इस तरह के फैसले की राह में कानूनी रुकावट है न कि रक्षा मंत्री और सैन्य अधिकारी। अगर ट्रम्प कानूनी रुकावटों को दूर करने में सफल हो जाते और कांग्रेस को भी युद्ध पर तैयार कर लेते तो फिर रक्षा मंत्री के विरोध से उन पर क्या फर्क पड़ता?

एक और यह बात है कि ईरान के मिसाइलों से बचाने के लिए फार्स की खाड़ी से अमरीका के एक विशालकाल बेड़े की वापसी भी ईरान के खिलाफ सैन्य कार्यवाही के फैसले का चिन्ह नहीं हो सकती क्योंकि इस इलाक़े में अब भी सैंकड़ों अमरीकी छावनियां मौजूद हैं जो पूरी तरह से ईरानी मिसाइलों और ड्रोन विमानों की रेंज में हैं।

आखिर में यह भी है कि यह सही है कि हालात ऐसे नहीं हैं जिनमें ट्रम्प को ईरान के खिलाफ सैन्य कार्यवाही का अवसर मिले लेकिन अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति का जो स्वभाव है वह निश्चित रूप से उनकी ओर से किसी जुनूनी फैसले में भूमिका निभा सकता है।

अलमयादीन टीवी चैनल की वेबसाइट पर चार्ल अबी नादिर के एक लेख में ट्रम्प सरकार के इरादों और क्षेत्र के हालात का जायज़ा