योगी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल किया लिखित जवाब

टीम इंस्टेंटख़बर
बीआरडी कॉलेज ऑक्सीजन त्रासदी मामले में सालों से परेशान डॉ कफील खान के लिए अच्छी खबर आयी है, योगी सरकार ने मामले की दोबारा शुरू की गयी जांच को फैसला लिया है. गौरतलब है कि इस मामले में हुई जांच में डॉ कफील खान पूरी तरह से निर्दोष साबित हो चुके थे फिर योगी सरकार ने महीनों उनको जेल बाहर आने नहीं दिया था.

अब योगी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में लिखित जवाब दाखिल कर बताया है कि डॉ कफील खान के खिलाफ ऑक्सीजन त्रासदी के मामले में 24 फरवरी 2020 को फिर से शुरू की गई जांच को उसने वापस ले लिया है, साथ ही पिछली जांच के निष्कर्षों को मानने की भी बात की है जिसमें डॉ कफील को पूरी तरह से निर्दोष बताया गया था।

बता दें कि मुख्य सचिव हिमांशु कुमार द्वारा 15 अप्रैल 2019 को जांच रिपोर्ट देने के बावजूद राज्य सरकार ने 11 महीने तक कोई कार्रवाई नहीं की और 24 फरवरी 2020 को डॉ कफील के खिलाफ फिर से जांच का आदेश दे दिया।

सरकार के इस फैसले के खिलाफ डॉ कफील ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था जिस पर कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर 10.08.2021 तक यह बताने की लिए कहा था कि डॉ कफ़ील खान को 4 साल से अधिक समय से निलंबित क्यों रखा गया है। जबकि बीआरडी कॉलेज ऑक्सिजन त्रासदी के बाद निलंबित किये गए डॉक्टर राजीव मिश्रा पूर्व प्रधानाचार्य, डॉक्टर सतीश ऑक्सीजन प्रभारी और अन्य क्लर्क को बहाल कर दिया गया था।

अपनी जांच रिपोर्ट में मुख्य सचिव हिमांशु कुमार ने डॉ कफील खान को पूरी तरह से निर्दोष बताते हुए कहा था कि डॉक्टर कफील खान अस्पताल के सबसे जूनियर डॉक्टर थे। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में प्रोबेशन पर 08/08/16 को उनकी नियुक्ति हुई थी।

घटना के दिन 10/08/17 को छुट्टी पर होने के बावजूद वह बच्चों की जान बचाने के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर पहुंचे और अपनी टीम के साथ, उन 54 घंटों में 500 सिलेंडरों की व्यवस्था करने में कामयाब रहे। उन्होंने उस भयावह रात को 26 लोगों को फोन किया था।

जांच अधिकारी ने कहा कि पूछताछ में यह भी पता चला है कि उन्होंने अपनी पूरी क्षमता से हर संभव प्रयास किया था जिसमें बीआरडी मेडिकल कॉलेज के सभी अधिकारियों के साथ किए गए फोन कॉल भी शामिल थे। डॉ कफील के भ्रष्टाचार में संलिप्तता का कोई सबूत नहीं है।

वह ऑक्सीजन आपूर्ति के भुगतान/आदेश/निविदा/रख-रखाव के लिए जिम्मेदार नहीं थे। वह इंसेफेलाइटिस वार्ड के प्रमुख भी नहीं थे। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि वह 08/08/16 के बाद निजी प्रैक्टिस कर रहे थे। उन पर चिकित्सकीय लापरवाही और भ्रष्टाचार के आरोप निराधार बलहीन और असंगत थे।