गवर्नर की मनमानी पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: राज्यपाल के पास बिल रोकने का कोई अधिकार नहीं
राज्य की विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय करने के मामले में राष्ट्रपति के सवालों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि ‘गवर्नर द्वारा बिलों को मंजूरी देने के लिए टाइमलाइन तय नहीं की जा सकती है. गवर्नर के पास बिल रोकने और प्रोसेस को रोकने का कोई अधिकार नहीं है.’
मुख्य न्यायाधीश BR गवई की अध्यक्षता वाली एक संवैधानिक पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए 13 प्रश्नों का उत्तर देते हुए अपनी राय दी है. कोर्ट ने कहा है कि अदालतें राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा स्वीकृति प्रदान करने के लिए समय-सीमा निर्धारित नहीं कर सकतीं. बता दें कि इसमें पूछा गया था कि क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधेयकों पर स्वीकृति प्रदान करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि ‘डीम्ड असेंट का सिद्धांत संविधान की भावना और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ है. चुनी हुई सरकार कैबिनेट को ही ड्राइवर की सीट पर होना चाहिए, क्योंकि ड्राइवर की सीट पर दो लोग नहीं हो सकते हैं.’ कोर्ट ने आगे कहा कि ‘गवर्नर के पास बिल रोकने और प्रोसेस को रोकने का कोई अधिकार नहीं है. वह मंजूरी दे सकता है, बिल को असेंबली में वापस भेज सकता है या प्रेसिडेंट को भेज सकता है.’










