लखनऊ: शहीद जनरल कासिम सूलैमानी और शहीद अबू महदी अल- मुहन्दिस की पहली बरसी के अवसर पर, मजलिसे उलेमा-ए-हिंद द्वारा यादे शुहदा ’ प्रग्राम और मजलिसे बरसी का आयोजन किया गया। कारी मासूम मेहदी द्वारा तिलावते कुरान से मजलिस का आग़ाज़ हुआ।

मौलाना सै0 हसनैन बाकिरी ने तकरीर करते हुए कहा कि शहीद जनरल सूलैमानी ने दुंनिया में आतंकवाद को पनपने नहीं दिया। उन्होंने कहा कि सामराजी शक्तियों द्वारा पूरी योजना के साथ लाये गये आतंकावादी संगठन आई0एस0आई0एस0 के अस्तित्व को उन्हांेने दुनिया से मिटा दिया। वह लड़ाई के मैदान से पीछे नहीं हटते थे और हमेशा मैदान पर सामना करने के लिए दुश्मन को चुनौती देते थे। लेकिन सामराजी शक्तियों के पास मैदान पर उनका सामना करने की ताकत नहीं थी, यही कारण है कि उन्होंने रात के अंधेरे में कायरता से हमला करके उन्हें शहीद कर दिया।

मौलाना सै0 सईदुल हसन नकवी ने अपनी तकरीर में कहा कि जनरल कासिम सूलैमानी और कमांडर अबू मेहदी अल-मुहन्दिस के क़ाफिले पर हमला अंतरराष्ट्रीय कानून का घोर उल्लंघन था। उन्होंने कहा कि जनरल सूलैमानी ने किसी एक देश और कौम के लिए काम नहीं किया , वह मानवता की हिफाज़त के लिया काम करते थे। उन्होंने जाति और राष्ट्रीयता के आधार पर शोषितों और कमजोरों का समर्थन नहीं किया, वह जाति, धर्म और पंथ के भेद के बिना काम करते रहे। सामराजी शक्तियां उनकी कूटनीति के आगे घुटने टेक गईं। मौलाना ने कहा कि शहीद सूलैमानी ने इराक में आई0एस0आई0एस0 की कैद से 40 भारतीय नर्सों को मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसलिए उन्हें याद रखना हर भारतीय का कर्तव्य है।

मजलिस को संबोधित करते हुए, मजलिस उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सै0 कल्बे जवाद नकवी ने कहा कि बातिल के सभी मंसूबों और प्रोपेगडों पर शहीद के खून की एक बूंद भारी पड़ती है। यही कारण है कि जनरल कासिम सूलैमानी और अबू मेंहदी अल- मुहन्दिस की शहादत के बाद सामराजी शक्तियों के चेहरे पर से पर्दा हट गया है और दुंनिया जान गई कि आतंकवाद को किसने पेदा किया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जिसे विश्व शक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त थी, ने अपनी शक्ति की साख खो दी है और आज इराक और मध्य पूर्व से अमेरिकी सैनिकों की अपमानजनक वापसी जारी है। मौलाना ने कहा कि जनरल सुलैमानी ने कमज़ूरों और मज़लूमों की रक्षा की। उन्होंने कहा कि असली मुजाहिद वह है जो अपनी जान देकर मज़लूमों की रक्षा करता है, उन्हें मुजाहिद नहीं कहा जाता जो आत्मघाती विस्फोटों में निर्दोष लोगों को मारते है। आई0एस0आई0एस0 जैसे आतंकवादी संगठनों ने निर्दोष लोगों का नरसंहार किया, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के साथ क्रूर व्यवहार किया, लेकिन शहीद सूलैमानी ने मज़लूमों और कमज़ूरों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। मौलाना ने कहा कि उनकी शहादत के बाद, कुछ तकफिरी और वहाबी लोग कह रहे हैं कि हम जनरल सुलैमानी का ग़म कियों मनाये? कियोंकि उन्होंने मुसलमानो का कत्ल किया था। मेरा उनसे सवाल है कि सामराजी शक्तियों का लक्ष्य किया है? उन्का लक्ष्य है मुसलमानों के माध्यम से मुसलमानों को मारना यदि जनरल सूलैमानी मुसलमानों को मार रहे थे, तो ऐसा इसका मतलब यह था कि वह सामराजी शक्तियों को लाभान्वित कर रहे थे, इसलिए संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल को उनकी रक्षा करनी चाहिए थी। मगर अमेरिका द्वारा उनकी हत्या इस बात का प्रमाण है कि जनरल सुलेमानी और अबू महदी अल-मुहन्दिस अमेरिकी, सऊदी और इजरायली एजेंटों को मार रहे थे, इसलिए आज तकफिरी और वहाबी समूह उनका विरोध कर रहे हैं क्योंकि तकफिरीवाद और वहाबीवाद सामराजी शक्तियों के उत्पाद हैं। मजलिस के अंत में,मौलाना कल्बे जावेद नकवी ने शहीद जनरल सूलेमानी और शहीद अबू महदी की शहादत का उल्लेख किया और इमाम हुसैन अ0स0 की शहादत के साथ उनकी शहादत को जोड़ा और कर्बला की वाक़ए को पेश किया।
मजलिस से ठीक पहले मौलाना शाहिद जमाल रिजवी द्वारा संकलित पुस्तक ’जिंदा शहीद ’का रस्मे इजरा मौलाना कल्बे जवाद नकवी और अन्य विद्वानों द्वारा किया गया।

मजलिस से पहले, श्री गजंफर हुसैन गाज़ीपुरी ने सोज़ खानी की। जाने-माने कवि श्री मुजीब सिद्दीकी गोंडवी और शारिब जैदी ने जनरल कासिम सूलैमानी और शहीद अबू मेहदी को श्रद्धांजलि अर्पित की। मजलिस के अंत में मौलाना सैयद रजा हुसैन ने मजलिसे ओलमाए हिंद की ओर सेे सभी लोगों और विद्वानों का शुक्रिया अदा दिया। कार्यक्रम का आयोजन करने मे सहयोग के लिये हिजाबे इस्लामी कमेटी की ख़ावाती और हुसैनी चैनल की पूरी टीम को विशेष धन्यवाद दिया गया।

मजलिस में मौलाना ज़ैग़म उर्र रिज़वी, मौलाना निसार अहमद जै़न पुरी, मौलाना रज़ा हुसैन रिजवी, मौलाना एजाज हैदर, मौलाना हसनैन बाकिरी, मौलाना सईदुल हसन नकवी, मौलाना जव्वार हुसैन, मौलाना शमसुल हसन, मौलाना सरताज हैदर, मौलाना मुहम्मद इसहाक़, मौलाना तनवीर अब्बास,मौलाना इमरान हैदर और अन्य विद्वान मौजूद थे।निज़ामत आदिल फराज़ ने की।