नई दिल्ली: धीरे-धीरे लोग कोरोनावायरस के साथ जीना सीख रहे हैं. ऐसे में सैनेटाइजर और मास्क लोगों की दिनचर्या का सामान्य हिस्सा बन गए हैं. कोरोनावायरस से लड़ने के लिए अब तक कोई भी वैक्सीन नहीं बनाई जा सकी है लेकिन शोधकर्ता इसके साथ जीने के अलग-अलग तरीके खोज रहे हैं. ऐसे में हावर्ड और एमआईटी जैसे विश्वविद्यालयों में ऐसे मास्क बनाने की कोशिश की जा रही है, जो कोविड-19 से संक्रमित मरीजों का पता लगा सकें.

शोधकर्ता इस तरह से सेंसर वाले मास्क बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो दिन की रोशनी में भी सामान्य रूप से जलते हुए नजर आ पाएं और कोविड-19 से संक्रमित के नजदीक जाने पर उसमें लाइट जलने लगे. बिजनेस इंसाइडर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं को लगता है कि सामान्य थर्मल स्कैनर काफी अधिक प्रभावशाली और विश्वसनीय नहीं हैं.

आमतौर पर कोविड-19 का टेस्ट करने के लिए सैंपल कलेक्ट करने पड़ते हैं, जिन्हें बाद में जांच के लिए भेजा जाता है और अधिकतर मामलों में इस टेस्ट के नतीजे आने में 24 घंटों तक का वक्त लग जाता है. दूसरी ओर सेंसर वाले ये मास्क पहनने के महज तीन घंटों के अंदर ही परिणाम सामने आ सकते हैं. इस टेक्नोलॉजी का निर्माण पहली बार साल 2016 में SARS, खसरा, हेपेटाइटिस सी और सामान्य फ्लू का पता लगाने के लिए किया गया था. इसके बाद अब शोधकर्ता इस मास्क के जरिए कोविड-19 का पता लगाने के लिए काम कर रहे हैं.

यह सेंसर शख्स द्वारा ली गई एक सांस से एक्टिवेट हो जाता है. इसके बाद जब शख्स बात करता है तो सेंसर सलाइवा और म्यूकस को पकड़ लेता है. जिस शख्स ने इस मास्क को पहना हुआ है अगर वो संक्रमित होता है तो सेंसर की वजह से मास्क में लाइट ट्रिगर हो जाती है और जलने लगती है, जिससे दूसरे लोगों को पता चल जाता है कि व्यक्ति संक्रमित है.

बिजनेस इंसाइडर से बात करते हुए लीड रिसर्चर जिम कोलिन्स ने कहा, ”अगर हम अपना ट्रांसिट सिस्टम खोलते हैं तो आप हवाई अड्डे पर इनका उपयोग किए जाने की कल्पना कर सकते हैं, जब हम सिक्योरिटी से गुजरते हैं और विमान में बैठते हैं. आप या मैं काम पर जाते या आते वक्त इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. अस्पताल में मरीजों के लिए भी इस मास्क का उपयोग किया जा सकता है.”