मो. आरिफ़ नगरामी

काबिले जिक्र शख्सियतें अपने अन्दर औसाफे कमालात,खिदमात और बरकात की ऐसी जानवाज खुशबू रखती हैं कि उनसे जो भी मिलता है मुअत्तर और मसरूर हो जाता है। और जब जब इस खुशबू के झोेंके चलते हैं उस शख्सियत के यादों के चिराग जल उठते है। और सारा माहौल नूर से मामूर हो जाता है। उन्हीं हरदिल अजीज और महबूब शख्सियत मेें ंएक अहेम नाम इरम एजूकेशनल सोसायटी के मैनेजर, ख्वाजा रज़्मी यूनुस का है। जिनका गुजिश्ता रोज इन्तेकाल हो गया। खुशमिज़ाज, खुश अखलाक, खुश कलाम व खुश लिबास डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस की जिन्दिगी और उनकी शख्सियत मेें इतना कुछ जरूर था कि वह हमेशा याद किये जोयंगेें। डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब मरहूम ने अपनी मुख्तसर जिन्दिगी मेें समाजी और तालीमी खिदमात के साथ इन्सानी रवाबित और सकाफती सरगर्मियों के मैदान मेें बहुत गहरे नुकूश छोडे हैं । मरहूम को समाजी कामों का सलीका भी था और कुछ करने की ख्वाहिश भी उनमेें हमेशा अंगडाईयां लेती रहती थीं।

डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस मरहूम की जिन्दिगी जद्दो जेहद की जिन्दिगी थी। तालीम खत्म हुयी तो उन्हेांने अपने वालिद व माजिद इरम एजूकेशनल सोसायटी के बानी और साबिक मैनेजर मरहूम डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस के तालीमी मिशन को कायम करने और फिर आगे बढाने मेें दिल व जान से उनका साथ दिया। डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस के नाकाबिले फरामोश काविशो की बदौलत बहुत ही कम अर्से मेें लखनऊ और बाराबंकी मेें इरम कान्वेंट स्कूलों का एक जाल फैल गया। और ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस मरहूम के कायम करदा इरम एजेकेशनल सोसायटी शुमाली हिन्दुस्तान की सबसे बडी और फआल तालीमी तन्जीम बन गयी। इरम सोसायटी को उस बलंद और काबिले फख्र मकाम पर पहुंचाने मेें डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस ने अपने वालिद बुजुर्गवार का भरपूर साथ दिया। तालीमी खिदमात के साथ ही साथ डाॅ0 रज्मी यूनुस ने अपने आप को दीनी फलाही और समाजी कामों के लिये वक्फ कर दिया। अपनी मेहनत संजीदगी की वजह से उन्हेें शोहरत भी मिली और इज्जत भी। मगर इस जद्दोजेहद मेें वह अपनी बिगडती हुयी सेहत को भूल गये । मगर उन्हांेने बीमारी से हार नहीं मानी । वह मुतवातिर इरम एजूकेशनल सोसायटी की तरक्की के साथ साथ मुल्क के हर लडके ओर लडकी को तालीम याफता बनाने के लिये अपने भाईयों डाॅ0 ख्वाजा बज्मी यूनुस, ई0 ख्वाजा फैजी यूनुस और ईं0 ख्वाजा सैफी यूनुस के साथ अमली काम अन्जाम देते रहे । डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस के इन्तेकाल के बाद जिस मेहनत और सलीके के साथ इन चारों भाईयों ने आपसी मोहब्बत यगानियत और इत्तेहाद के साथ इरम सोसायटी को आसमान की बुलंदियों पर पहुंचा दिया। जो काबिले फख्र, काबिल तहसीन, काबिले तारीफ और काबिले तकलीद है। डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस साहब मरहूम ने इरम यूनानी मोडिकल कालेज एण्ड हास्पिटल को कायम किया तो वहां का सारा इन्तेजाम व इनसेराम डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस के मजबूत और बासलाहियत हाथों मेें दे दिया। उसके बाद डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब ने जिस महारत, मेहनत और सलाहियत के साथ इरम यूनानी मोडिकल कालेज को आगे बढाया वह एक शानदार मिसाल है। आज इरम यूनानी मेडिकल कालेज का शुमार मुल्क के बेहतरीन यूनानी मेडिकल कालेजों में होता है । डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस की मौत का अजीम सानेहा इरम यूनानी मेडिकल कालेज के तलबा और तालिबात के लिये ऐसा सानेहा है जिसकी याद कभी भुलाई नहीं जा सकती।

डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब मरहूम ने अपने खानदान की रवायतों पर कायम रहते हुये न जाने कितने जरूरतमंदों की जरूरतों को बहुत ही खामोशी के साथ पूरा किया। नजाने कितनी लडकियों की शादियां करा दीं न जाने कितने तलबा और तालिबात की फीस अपनी जेब से दी। जहां तक हमारा मुशाहिदा है कि डाॅ0 ख्वाजा सैयद मोहम्मद यूनुस साहब की तरह डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस, डाॅ0 ख्वाजा बज्ीम यूनुस, ईं0 ख्वाजा फैजी यूनुसा और ईं0 ख्वाजा सैफी यूनुस की चैखट पर अगर कोई हाजतमंद गया तो उसकी जरूरत को पूरा करना ख्वाजा फैमिली ने अपना फर्ज समझा। डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस दिल के बहुत गनी थंे वह अपने स्टाफ की हर मदद के लिये हमेशा तैयार रहते थे। मरहूम हर साल रमजानुलमुबारक के आखिरी अय्याम में सोसायटी के तमाम स्टाफ को कपडा और नकद रू0 बतौरे ईद अपनी जेब पास से देते थे। बहुत ही बाएखलाक, मिलनसार शख्सियत के मालिक थे। डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस साहब सलाम करने से पहले ही वह खुद सलाम कर लिया करते थे और हाल अहवाल पूछा करते थे।

जिन्दिगी और मौत का अख्तियार अल्लाह तआला ने अपने ही कब्जे में रखा है। यह दुनिया सरायफानी है, एक न एक दिन हर जीरूह को मौत का मजह चखना है। कुदरत ने इन्सान को अशरफल मखलूकात बनाया है। अच्छे और बुरे की तमीज अता की है। इल्म व अतराफ से नवाजा है। तारीख उठा कर देखिये आपको हर दौर मेें ऐसी हस्तियां मिल जायेंगी जिन्होंने खुलूस से काम लेकर कौम की तरक्की और बका के लिये खिदमते खल्क के जज्बे से ऐसे कारहायेनुमायां अन्जाम दिये जो रहती दुनिया तक याद रखे जायेंगें। ऐसा ही एक नाम डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस का है। हर मोमिन जानता है कि जब केयामत के रोज बारगाहे ईलाही में हाजिर होगा तो पांच स्वालात के खातिरख्वाह जवाबात दिये बेगैर एक कदम भी आगे नहीं बढा सकेगेा। पहला तुमको जिन्दिगी मिली थी तो कैसी गुजारी, अपनी जवानी कैसे और कहां सर्फ की। दौलत कहां से कमाई, क्या खर्च किया। जो इल्म हासिल किया उस पर अमल कितना किया। और दूसरे तक कितना पहुंचाया। डाॅ0 ख्वाजा रज्मी यूनुस के चेहरे पर जो तमानियत हर वक्त नुमाया रहती थी उससे यह अन्दाजा लगाना मुशकिल नहीं कि उन्हेांने इन स्वालात के जवाबात तलाश कर लिये है। उनकी जिन्दिगी का मकसद सिर्फ यह रहा कि अल्लाह के बन्दों मेें जितनी भी खुशियां बांटी जा सके और जो भी खिदमत हो सके इसमें कोई कसर न उठाई जा सके। न नाम नमूद की ख्वाहिश और न पैसे की हविस जो मिल गया अल्लाह का शुक्र अदा किया। जो न मिल सका सब्र कर लिया। जो तालीम हासिल की उस पर जहां तक हो सका अमल किया। और जहां तक हो सका तालिब इल्मों मेें बांटते रहे। ऐसे लोगों के लिये यकीनन मगफिरत का परवाना लिये कोई फरिश्ता पहले से मुन्तजिर रहता है।

जिससे मिल कर जिन्दिगी से इश्क हो जाये वह लोग
आपने शायद न देखे हों मगर ऐसे ही थे

क्या खूब आदमी था खुदा मगतफिरत करे