नई दिल्ली: जब कहीं विदेश में घूमने की बात आती है तो सबसे पहले ज़हन में स्विटजरलैंड का नाम आता है। हर किसी की ख्वाहिश होती है कि जिंदगी में एकबार धरती का स्वर्ग जरूर घूमें। जेनेवा स्विटजरलैंड का एक खूबसूरत शहर हैं और यह विश्व के सबसे महंगे शहरों में भी एक है। हाल ही में यहां मिनिमम आवरली वेज कानून को पेश किया गया है।
इस कानून के पास होने के बाद वहां मिलने वाली सैलरी विश्व में सबसे ज्यादा होगी। यहां जिस प्रस्ताव को लेकर वोटिंग हुई है उसके तहत हर घंटे काम करने के लिए कम से कम 23 स्विस फ्रैंक यानी 1830 रुपये के करीब मिलेंगे। अब अगर मंथली सैलरी की बात करें तो हर सप्ताह 41 घंटे के हिसाब से एक महीने में कम से कम 4086 स्विस फ्रैंक सैलरी बनती है। भारतीय रुपये में यह करीब 3.25 लाख रुपये होता है। मिनिमम वेज को जेनेवा के 58 पर्सेंट वोटर ने अप्रूव किया है।
मिनिमम वेज की बात करें तो यह फ्रांस के मुकाबले करीब दोगुना है। स्विटजरलैंड की इकॉनमी मुख्य रूप से टूरिज्म पर निर्भर है। यहां का ज्यादातर बिजनस टूरिस्टों से संबंधित और उनपर आधारित है। कोरोना के कारण इकॉनमी पर काफी बुरा असर हुआ है। ऐसे में जेनेवा शहर अब वहां रहने वाले कुछ लोगों के लिए इतना महंगा हो गया है कि वे वहां नहीं रह सकते हैं।
लोकल मीडिया के मुताबिक, मंथली 4000 स्विस फ्रैंक जेनेवा के हिसाब से बस पेट पालने के लिए है। अगर इतनी कमाई होगी तो कोई गरीबी रेखा के नीचे नहीं माना जाएगा। हालांकि यह राशि दूसरे देशों और शहरों की तुलना में बहुत ज्यादा है। माना जा रहा है कि इससे करीब 30 हजार लो-पेड वर्कर्स को लाभ मिलेगा।
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