डॉक्टर मुहम्मद नजीब क़ासमी

मुसलमानों के पेशवा और आखिरी नबी हजरत मोहम्मद मुस्तफा स० के कार्टूनों को सरकारी इमारतों पर चस्पां करने की फ्रांसीसी हुकूमत की जलील हरकत ना सिर्फ काबिले मजम्मत है बल्कि ऐन दहशतगर्दी है। ऐसी घिनाउनी हरकत से दुनिया में अम्न व सुकून और मुहब्बत व भाईचारा के बजाय लोगों में नफरत व अदावत और तशद्दुद का माहौल पैदा होगा। दुनिया के 2 अरब मुसलमानों के साथ हर अमन पसंद इंसान का यही कहना है कि किसी भी मजहब के पेशवा के कार्टूनों का इस तरह सरकारी इमारतों पर चस्पां करना काबिले मजम्मत अमल है। इसी वजह से अकवामे मुत्तहिदा ने भी अपने बयान में एकरार किया कि किसी भी मजहब के पेशवा के कार्टूनों को इमारतों पर चस्पां करने से दुनिया में तशद्दुद में इजाफा ही होगा। हम जिस तरह फ्रांसीसी हुकूमत की इस जलील हरकत की मजम्मत करते हैं, वहीं मुसलमानों से अपील करते हैं कि प्यारे नबी स० की सुनहरी व कीमती ता’लीमात को अपने कौल व अमल के जरिये आम लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करें ताकि अवाम में इस्लाम के खिलाफ जो गलतफहमियां इस्लाम मुखालिफ ताकतों के जरिए पैदा करदी गई हैं वह दूर की जा सकें।

हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि मुझे जवामिउल कलिम से नवाज़ा गया है। (बुखारी) जिसका हासिल यह है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम छोटे से जुमले में बड़े वसी मानी को बयान करने की क़ुदरत रखते थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेशुमार खुसूसियात में से एक अहम तरीन खुसूसियत यह भी है कि जिस वक़्त आप पर पहली वही नाज़िल हुई और आपसे पढ़ने के लिए कहा गया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “मा अना बिक़ारी” कह कर माज़रत चाही, लेकिन अल्लाह तआला की जानिब से ऐसी खासुल खास तरबियत हुई कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़ौल व अमल को रहती दुनिया तक उसवा बना दिया गया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अक़वाल ज़र्रीं से फायदा उठाने वाले हज़रात बड़े बड़े अदीब व फसीह व बलीग बन कर दुनिया में चमके। आपकी ज़बाने मुबारक से निकले बाज़ जुमले रहती दुनिया तक अरबी ज़बान के मुहावरे बन गए। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वाज़ व नसीहत, खुतबे, दुआ और रसाइल से अरबी ज़बान को अल्फ़ाज़ के नए ज़खीरे के साथ एक मुंफरिद उसलूब भी मिला।
जहां हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अक़वाल जर्रीं को खुसूसी अहमियत हासिल है, वहीं शरीअते इस्लामिया में इन अक़वाल जर्रीं को याद करके महफूज़ करने की भी खास फज़ीलत आई हैं चुनांचे हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया “जो शख्स मेरी उम्मत के फायदा के वास्ते दीन के काम की चालीस अहादीस याद करेगा अल्लाह तआला उसको क़यामत के दिन आलिमों और शहीदों की जमाअत में उठाएगा और फरमाएगा कि जिस दरवाज़े से चाहे जन्नत में दाखिल हो जाए।” यह हदीस हज़रत अली, हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसूद, हज़रत मआज़ बिन जबल, हज़रत अबू दरदा, हज़रत अबू हुरैरा, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर, हज़रत जाबिर और हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हुम से रिवायत है और हदीस की मुख्तलिफ किताबों में लिखी है। बाज़ उलमा ने हदीस की सनद में कुछ कलाम किया, मगर हदीस में मज़कूरा सवाब के हुसूल के लिए सैकड़ों उलमा ने अपने अपने तर्ज़ पर चालीस अहादीस जमा की हैं। सही मुस्लिम की सबसे मशहूर शरह लिखने वाले इमाम नववी की चालीस अहादीस पर मुशतमिल किताब ‘‘अलअरबईन नौविया” पूरी दुनिया में काफी मक़बूल हुई है।

बुखारी व मुस्लिम में वारिद हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चालीस फरमान पेशे खिदमत हैं जिनमें इल्म व मारिफत के खज़ाने भर दिए गए हैं और यह आला अखलाक और तहज़ीब व तमद्दुन के जर्रीं उसूल हैं। लिहाजा हमें चाहिए कि इन अहादीस को याद करके इन पर अमल करें और दूसरों को पहुंचाएं ताकि गैर मुस्लिम हज़रात भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सही तालीमात से वाक़िफ हो इस्लाम से मुतअल्लिक़ अपने शक व शुबहात दूर कर सकें।

1) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया तमाम आमाल का दारोमदार नियत पर है। (बुखारी व मुस्लिम)

2) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कबीरा गुनाह अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराना है, वालिदैन की नाफरमानी करना, किसी बेगुनाह को क़त्ल करना और झूटी गवाही देना है। (बुखारी)

3) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया सात हलाक करने वाले गुनाह से बचो। सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह! वह सात बड़े गुनाह कौन से हैं (जो इंसान को हलाक करने वाले हैं)? हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया शिर्क करना, जादू करना, किसी शख्स को नाहक़ क़त्ल करना, सूद खाना, यतीम के माल को हड़पना, मैदाने जंग से भागना, पाक दामन औरतों पर तोहमत लगाना। (बुखारी व मुस्लिम)

4) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मुनाफिक़ की तीन अलामतें (निशानी) हैं, झूट बोलना, वादा खिलाफी करना, अमानत में खयानत करना। (बुखारी व मुस्लिम)

5) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया तुममें सबसे बेहतर शख्स वह है जो क़ुरान सीखे और खिखाए। (बुखारी)

6) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अल्लाह के नज़दीक सब अमलों में वह अमल ज़्यादा महबूब है जो दायमी हो अगरचे थोड़ा हो। (सही बुखारी व मुस्लिम)

7) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मैं आखिरी नबी हूं, मेरे बाद कोई नबी पैदा नही होगा। (बुखारी व मुस्लिम)

8) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया पाक रहना आधा ईमान है। (मुस्लिम)

9) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अल्लाह के नज़दीक सबसे महबूब जगह मस्जिदें हैं। (मुस्लिम)

10) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जिसने मुझ पर एक मरतबा दरूद भेजा अल्लाह तआला उसपर 10 मरतबा रहमतें नाज़िल फरमाएगा। (मुस्लिम)

11) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मोमिन एक बिल से दोबारा डसा नहीं जाता है। (बुखारी व मुस्लिम)

12) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया पहलवान शख्स वह नहीं जो लोगों को पछाड़ दे बल्कि पहलवान वह शख्स है जो गुस्सा के वक़्त अपने नफ्स पर काबू रखे। (बुखारी व मुस्लिम)

13) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मुसलमान के मुसलमान पर पांच हक़ हैं। सलाम का जवाब देना, मरीज़ की अयादत करना, जनाज़ा के साथ जाना, उसकी दावत क़बूल करना, छींक का जवाब यरहमुकुमुल्लाह कह कर देना। (बुखारी व मुस्लिम)

14) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अल्लाह उस शख्स पर रहम नहीं करता जो लोगों पर रहम नहीं करता। (बुखारी व मुस्लिम)

15) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया ज़ुल्म क़यामत के रोज़ अंधेरों की सूरत में होगा। (बुखारी व मुस्लिम)

16) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया चुगलखोर जन्नत में नहीं जाएगा। (बुखारी व मुस्लिम)

17) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया दुनिया में ऐसे रहो जैसे कोई मुसाफिर या राहगुज़र रहता है। (बुखारी)

18) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया रिशता तोड़ने वाला जन्नत में नहीं जाएगा। (बुखारी व मुस्लिम)

19) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अगर कोई शख्स (रोज़ा रख कर भी) झूट बोलना और उस पर अमल करना नहीं छोड़ता तो अल्लाह तआला को उसकी कोई ज़रूरत नहीं कि वह अपना खाना पीना छोड़ दे। (बुखारी)

20) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया इंसान के झूटा होने के लिए इतना ही काफी है कि जो बात सुने (बेगैर तहक़ीक़ के) लोगों से बयान करना शुरू कर दे। (मुस्लिम)

21) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया वह शख्स जन्नत में नही जाएगा जिसका पड़ोसी उसकी तकलीफों से महफूज़ न हो। (बुखारी व मुस्लिम)

22) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया तुम में से वह शख्स मेरे नज़दीक ज़्यादा महबूब है जो अच्छे अखलाक़ वाला हो। (बुखारी व मुस्लिम)

23) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया सदक़ा देने से माल में कमी नहीं आती और जो बन्दा दरगुज़र करता है अल्लाह तआला उसकी इज़्ज़त बढ़ाता है और जो बन्दा अल्लाह के लिए आजिज़ी इख्तियार करता है उसका दर्जा बुलंद करता है। (सही मुस्लिम)

24) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अगर कोई शख्स अपने घर वालों पर खर्च करता है तो वह भी सदक़ा है, यानी उसपर भी अजर मिलेगा। (बुखारी व मुस्लिम)

25) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया ऐ नौजवान की जमाअत! तुम में से जो भी निकाह की इस्तिताअत रखता हो उसे निकाह कर लेना चाहिए, क्योंकि यह नज़र को नीची रखने वाला और शरमगाहों की हिफाज़त करने वाला है और जो कोई निकाह की इस्तिताअत न रखता हो उसे चाहिए कि रोज़े रखे, क्योंकि यह उसके लिए नफसानी खाहिशात में कमी का बाइस होगा। (बुखारी)

26) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया औरत से निकाह (आम तौर पर) चार चीजों की वजह से किया जाता है। उसके माल की वजह से, उसके खानदान के शर्फ की वजह से, उसकी खुबसूरती की वजह से और उसके दीन की वजह से। तुम दीनदार औरत से निकाह करो, अगरचे गर्द आलूद हों तुम्हारे हाथ, यानी शादी के लिए औरत में दीनदारी को ज़रूर देखना चाहिए, चाहे तुम्हें यह बात अच्छी न लगे। (बुखारी व मुस्लिम)

27) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया हलाल वाज़ेह है, हराम वाज़ेह है। उनके दरमियान कुछ मुशतबह चीजें हैं जिनको बहुत सारे लोग नहीं जानते। जिस शख्स ने शुबहा वाली चीजों से अपने आपको बचा लिया उसने अपने दीन और इज़्ज़त की हिफाज़त की और जो शख्स मुशतबा चीजों में पड़ेगा वह हराम चीजों में पड़ जाएगा उस चरवाहे की तरह जो दूसरे की चरागाह के करीब बकरियां चराता है, क्योंकि बहुत मुमकिन है कि उसका जानवर दूसरे की चरागाह से कुछ चरले। अच्छी तरह सुन लो कि हर बादशाह की एक चरागाह होती है, याद रखो कि अल्लाह की ज़मीन में अल्लाह की चरागाह उसकी हराम करदा चीजें हैं और सुन लो कि जिस्म के अंदर एक गोशत का टुकड़ा है। जब वह संवर जाता है तो सारा जिस्म संवर जाता है और जब वह बिगड़ जाता है तो पूरा जिस्म बिगड़ जाता है, सुन लो कि यह (गोशत का टुकड़ा) दिल है। (बुखारी)

28) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अल्लाह की कसम! मुझे तुम्हारे लिए गरीबी का खौफ नहीं है बल्कि मुझे खौफ है कि पहली क़ौमों की तरह कहीं तुम्हारे लिए दुनिया यानी माल व दौलत खोल दी जाए और तुम उसके पीछे पड़ जाओ, फिर वह माल व दौलत पहले लोगों की तरह तुम्हें हलाक कर दे। (बुखारी व मुस्लिम)

29) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अल्लाह तआला बन्दा की मदद करता रहता है जबतक बन्दा अपने भाई की मदद करता रहे। (मुस्लिम)

30) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जब अमानतों में खयानत होने लगे तो बस क़यामत का इंतिज़ार करो। (बुखारी)

31) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया हराम खाने पीने और पहनने वालों की दुआऐं कहां से क़बूल हों। (मुस्लिम)

32) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मिसकीन और बेवा औरत की मदद करने वाला अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाले की तरह है। (बुखारी व मुस्लिम)

33) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया तुम्हें अपने कमज़ोरों के तुफैल से रिज़्क़ दिया जाता है और तुम्हारी मदद की जाती है। (बुखारी)

34) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अल्लाह तआला ऐसे शख्स पर रहम करे जो बेचते वक़्त, खरीदते वक़्त और तक़ाज़ा करते वक़्त (क़र्ज़ वगैरह का) फैयाज़ी और वुसअत से काम लेता है। (बुखारी)

35) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया खाओ, पीयो, पहनो और सदक़ा करो, लेकिन फुज़ूलखर्ची और तकब्बुर के बेगैर (यानी फुज़ूलखर्ची और तकब्बुर के बेगैर खूब अच्छा खाओ, पीयो, पहनो और सदक़ा करो)। (बुखारी)

36) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया रश्क दो ही आदमियों पर हो सकता है, एक वह जिसे अल्लाह ने माल दिया और उसे माल को राहे हक़ में लुटाने की पूरी तौफीक़ मिली हुई है और दूसरा वह जिसे अल्लाह ने हिकमत दी है और वह उसके ज़रिया फैसला करता है और उसकी तालीम देता है। (बुखारी)

37) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया मोमिन की मिसाल उनकी दोस्ती और इत्तिहाद और शफक़त में बदन की तरह है। बदन में से जब किसी हिस्सों को तकलिफ होती है तो सारा बदन नींद न आने और बुखार आने में शरीक होता है। (मुस्लिम)

38) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया आपस में बुग्ज़ न रखो, हसद न करो, पीछे बुराई न करो, बल्कि अल्लाह के बन्दे और आपस में भाई बन कर रहो और किसी मुसलमान के लिये जाएज़ नहीं कि अपने किसी भाई से तीन दिन से ज़्यादा नाराज़ रहे। (बुखारी)

39) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया (सच्चा) मुसलमान वह है जिसके हाथ और ज़बान (के ज़रर) से दूसरे मुसलमान महफूज़ रहें। मुहाजिर वह है जो उन कामों को छोड़ दे जिनसे अल्लाह ने मना किया है। (बुखारी)

40) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया हर चीज़ में भलाई फ़र्ज़ है, लिहाज़ा जब तुम (किसी को क़िसासन) क़त्ल करो तो अच्छी तरह क़त्ल करो और ज़बह करो तो अच्छी तरह ज़बह करो और तुम में से हर एक को अपनी छुरी तेज़ कर लेनी चाहिए और अपने जानवर को आराम देना चाहिए। (मुस्लिम)

अल्लाह तआला हमें फसाहत व बलागत के पैकर और बेमिसाल अदीबे अरब हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जवामिउल कलिम (अकवाले जर्रीं) को समझ कर पढ़ने वाला, उनके मुताबिक़ अमल करने वाला और उनके क़ीमती पैगामात को दूसरों तक पहुंचाने वाला बनाए, आमीन।

हिन्दी रूपांतरण:- जैनुल आबेदीन, कटिहार