नई दिल्ली: नाराज किसानों ने आज सवाल किया कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को तीन नए कृषि कानूनों को क्यों लाना पड़ा? जिनके बारे में केंद्र सरकार कहती है कि ये कृषि सुधार से जुड़े हैं और ये दीर्घकालिक मांगों को पूरा करते हैं. तीन महीने से जारी बड़े आंदोलन के बीच दिल्ली के लिए मार्च करने वाले किसान समूह के प्रतिनिधियों ने आज कहा कि सरकार केवल कॉरपोरेट्स के कल्याण में रुचि रखती है, यही कारण है कि इस तरह के “काले कानून” लाए जा रहे हैं.

गृह मंत्री अमित शाह के सशर्त वार्ता के प्रस्ताव को खारिज करने के बाद आज शाम को एक संवाददाता सम्मेलन में किसान नेताओं में से एक ने कहा, “हम सरकार से पूछते हैं कि सरकार ने किस किसान संगठन ने और किन किसानों ने सरकार से अपना भला करने की मांग की थी. सरकार बताए कि कौन से बिचौलिए को निकालने की बात कह रही है. बिचौलिए को डिफाइन करे सरकार.”

एक पत्र में अमित शाह ने कहा था कि किसानों के साथ चर्चा 3 दिसंबर को होगी और अगर वे इससे पहले बातचीत करना चाहते थे, तो उन्हें एक निर्दिष्ट स्थान पर अपना विरोध प्रदर्शन करना होगा. किसान प्रतिनिधियों में से एक ने कहा, “हमें बताया गया कि बिना किसी शर्त के सोमवार को एक बैठक होगी, लेकिन हमें शर्तों के साथ एक पत्र मिला. अगर वे हमारी मांगें मान लेते हैं, तो हम घर वापस चले जाएंगे.”

किसान नेताओं ने कहा, “देश भर के किसान आंदोलन कर रहे हैं. अमित शाह इसे पंजाब के किसानों द्वारा एक आंदोलन के रूप में ब्रांड बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वे यह स्वीकार नहीं करना चाहते हैं कि आंदोलन एक अखिल भारतीय आंदोलन बन गया है. यही कारण है कि उनके सभी पत्र. बस हमें संबोधित किया. विरोध कर रहे अन्य किसान नेताओं को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए, “

पिछले चार दिनों में, हजारों किसान, हरियाणा पुलिस के वॉटर कैनन, आंसू गैस और बेरिकेड्स दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच गए हैं. कुछ किसान शहर में प्रवेश करने में कामयाब रहे हैं, बाकी लोग सीमावर्ती क्षेत्रों में बैठे हैं, उन्होंने कहा कि वे इस साल के शुरू में संसद द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खत्म होने तक यही रुकेंगे.

इससे पहले आज, एक बैठक आयोजित करने के बाद, जहां उन्होंने सरकार के प्रस्ताव को ठुकराने का फैसला किया, किसानों ने कहा कि तीन किसान विरोधी और कॉर्पोरेट समर्थक बिलों को निरस्त किया जाए और फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दी जाए. एक दूसरी मांग बिजली पर एक कार्यकारी आदेश को निकाल दिया जाए. किसान यह भी चाहते हैं कि सरकार एक ऐसे नियम से हटकर काम करे जिसमें पराली जलाने पर भारी जुर्माना लगाता है, उनका दावा है ये कि इसका केवल चार से पांच फीसदी प्रदूषण में योगदान है.