प्रो0 अफगानुल्लाह खान उर्दू साहित्य का शालीन व्यक्तित्व: डॉ. वज़ाहत हुसैन रिज़वी

अफगानुल्लाह खान की 16वीं बरसी पर “”आग़ोशे हमीदिया” में नेशनल सेमिनार

लखनऊ
प्रोफेसर अफगानुल्लाह खान के निधन के बाद गोरखपुर शहर का साहित्यिक जगत जो उनकी बेबाक बातों से गुलजार रहता था, बेजान और अकेला हो गया। अपने अच्छे स्वभाव के कारण वह सभी के चहेते थे। वे उर्दू साहित्य के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए जीवन भर प्रयास करते रहे। उन्हें घूमने फिरने का बहुत शौक था, जिससे भी मिलते उसे अपना बना लेते थे. यह विचार सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. अज़ीज़ अहमद ने अफगानुल्लाह खान मेमोरियल कमेटी के अंतर्गत गोरखपुर के “आग़ोशे हमीदिया” में उनकी सोलहवीं वर्षगाँठ पर आयोजित सेमिनार के अध्यक्षीय भाषण में व्यक्त किये। डॉ. अजीज ने कहा कि वे हमेशा साहित्य की साधना में लगे रहे। उनके व्यक्तित्व की छाप हमारे दिलों में दर्ज है।

उर्दू मासिक पत्रिका नया दौर संपादक और पूर्व उपनिदेशक उत्तर प्रदेश सूचना एवं प्रसारण विभाग डॉ. वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने कहा कि समाज में कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता, इन्हीं में से एक हैं प्रोफेसर अफगानुल्ला खान. वह मेरे उस्ताद थे, जब भी वह मुझे किसी से मिलवाते तो कहते कि यह मेरी पहली औलाद है क्योंकि उनके नेतृत्व में ही वे पहले शोधार्थी बने थे। डॉ. रिजवी ने कहा कि उनकी सेवाओं पर जितना काम होना चाहिए वह अभी तक नहीं हुआ है। उन्होंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि जिस शख्स ने गोरखपुर विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग को स्थिर और विकसित करने के लिए अपनी जी जान लगा दी, ऐसी शख्सियत के गुज़र जाने के 16 साल भी उनके जीवन और सेवाओं पर किसी छात्र ने पीएचडी में रजिस्ट्रेशन कराया और न ही उनके जीवन पर कोई बड़ा सेमिनार हुआ. डॉ. रिजवी ने डॉ. अफगानुल्लाह खान के अप्रकाशित एवं अन्य महत्वपूर्ण लेखों को पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का आश्वासन दिया। डॉ. रिज़वी ने उर्दू भाषा और साहित्य से संबंधित प्रोफेसर अफगानुल्ला खान द्वारा शुरू की गई “उर्दू पढ़ाओ तहरीक” को पुनर्जीवित और सक्रिय करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि डॉ. अफगानुल्लाह खान अपार क्षमताओं के स्वामी थे और उन्होंने उनके जैसा ईमानदार और आकर्षक व्यक्तित्व वाला कोई दूसरा नहीं देखा।

वरिष्ठ पत्रकार काजी अब्दुल रहमान ने कहा कि अफगानुल्लाह साहब ने अदबी संजीदगी खुद पर कभी हावी नहीं होने दी, उन्होंने उर्दू को लोकप्रिय बनाने के लिए दूरदराज़ इलाकों ने उर्दू विभाग स्थापित करके उर्दू भाषा की सेवा की। फ़िराक गोरखपुरी पर कोई भी पेपर अफ़ग़ानुल्लाह ख़ान के ज़िक्र के बिना पूरा नहीं हो सकता। डॉ. दरख्शां ताजवर ने अफ़ग़ानुल्लाह खान की शायरी की पृष्ठभूमि पर चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने जिस तरह से मेरा मार्गदर्शन किया उसे भुलाया नहीं जा सकता। डॉ. तरन्नुम हसन ने प्रोफेसर अफ़ग़ानुल्लाह खान की छात्रा होने पर गर्व व्यक्त करते हुए उनके कारनामों की विस्तार से समीक्षा की।

इस अवसर पर जेआरएफ में कामयाब हुई हबीबा जमाल और जिया फातिमा और एम. ए उर्दू की टॉपर रही अंबरीन निसा और शाइस्ता खातून को अफ़ग़ानुल्लाह खान उच्च शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी समारोह में, साजिद मेमोरियल कमेटी की तरफ से सभ्य समाज के गठन पर ज़ोर और बेतुकी परम्पराओं और फिजूलखर्ची से बचना, नज़्मगोई के इनामी मुकाबले में बेहतरीन नज़्में लिखने वालों को पुरस्कार और उपहार दिए गए । इस कार्यक्रम में मुहम्मद इफ्राहीम, डा. रफीउल्लाह, मुहम्मद अनवर जिया, डा. ताहिर अली सब्ज पोश, डा. आजम बेग, डा. एहतिशामुल हक, डा. जावेद एहतशामुल हक, डा. अशफाक उमर, डा. बहार गोरखपुरी, अब्दुल बाकी , काजी कलीमुल हक खान, आमिर अब्बासी, आसिम रऊफ, उमैर सिद्दीकी के अलावा बड़ी संख्या में अदबी दोस्त मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन फारुख जमाल ने किया। अंत में कमेटी के अध्यक्ष रिजवानुल्लाह खान ने लोगों का शुक्रिया अदा किया।