सेना कोर्ट लखनऊ ने दोनों आँख गवां चुके देहरादून निवासी भूतपूर्व सूबेदार शंकर थापा को दिव्यांगता पेंशन देने का फैसला सुनाया l प्रकरण यह था जाबांज सैनिक वर्ष 1991 में दुश्मनों पर तोप गोले बरसाने वाली सेना की मेकेनिकल इन्फैंट्री रेजिमेंट में भर्ती हुआ जहाँ, उसने जाबांजी से अट्ठाईस वर्ष तक जाबांजी से देश की सरहदों की सुरक्षा की लेकिन, वर्ष 2018 में उसने अपनी दोनों आँख की रौशनी गंवा दी l देश के दुर्गम इलाके में रहते हुए देश के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले जाबांज की दोनों आँख का विशेषज्ञ डाक्टरों द्वारा परीक्षण करने पर पाया गया कि उसकी दोनों आँख नब्बे फीसदी ख़राब हो चुकी है और धीरे-धीरे एकदम दिखना बंद हो जाएगा लेकिन, इसके लिए सेना ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह आनुवांशिक कारणों से खराब हुई है जिसके कारण उसे दिव्यांगता पेंशन नहीं दी जा सकती l

जांबांज सैनिक ने हार नहीं मानी और रक्षा-मंत्रालय भारत सरकार सहित सेना के उच्चाधिकरियो के सामने अपील की जिसे 20 मई, 2020, 6 जून,2020, 11 मार्च, 2021 और 5 अप्रैल,2021 को ख़ारिज कर दिया जिससे सैनिक हतास हो गया लेकिन, उसकी पत्नी श्रीमती रितु थापा ने उसके संघर्ष को आगे बढाने का संकल्प लिया और, नारायण सिंह खंडवाल की सलाह पर अपने पति को लेकर, सेना कोर्ट लखनऊ आई क्योंकि, उसके पति अंधेपन के कारण अकेले आने-जाने की स्थिति में नहीं हैं l सैनिक ने अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय के माध्यम से वर्ष 2022 में सशत्र-बल अधिकरण, लखनऊ में मुकदमा दायर किया जिसकी सुनवाई ई-कोर्ट के माध्यम से न्यायमूर्ति यू०सी० श्रीवास्तव और वाईस एडिरल अभय रघुनाथ कर्वे द्वारा की गई l कोर्ट के सामने दलील देते हुए याची के अधिवक्ता ने कहा कि अट्ठाईस साल तक देश के लिए समर्पित सैनिक अपनी दोनों आँख गंवा चुका है, जिसका जीवन अँधेरे की गोंद में चला गया है उसके बाद भी नियम, कानून और स्थापित विधि-व्यवस्था को दरकिनार करके यह कह देना कि, इसके लिए सेना जिम्मेदार नहीं, अनौचित्यपूर्ण है l से न्यायमूर्ति यू०सी० श्रीवास्तव और वाईस एडिरल अभय रघुनाथ कर्वे की खण्ड-पीठ ने भारत सरकार के प्रतिनिधि और अधिवक्ता के जबर्दस्त विरोध के बावजूद कहा कि, सैनिक दिव्यांगता पेंशन पाने का पूरा अधिकार रखता है इसलिए उसे सौ प्रतिशत दिव्यांगता पेंशन सरकार चार महीने के अंदर दे यदि, सरकार आदेश का पालन निर्धारित समय सीमा में करने में असफल रहती है तो इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार होगी और, आठ फीसदी ब्याज देना होगा l