मोहम्मद आरिफ नगरामी

हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में मजहबी नफरत का जुनून जिस तेजी के साथ अपने पांव पसार रहा है, वह बहुत ही तश्वीशनाक और अफसोसनाक है। वतने अजीज के अकसरियती तब्के से तअल्लुक रखने वाले अफराद के अन्दर अकलियतों और खास कर मुसलमानो के खिलाफ जो नफरत का जहेर भर दिया गया है, उसमें कौमी इत्तेहाद की इस दरख्शां रिवायत को बहुत नुकसान पहुंचाया है जो इस मुल्क की शनाख्त का नुमाया हवाला दे रही है। इस वक्त मुल्क का जो मन्जरनामा है उसके तनाजुर में हजरत मौलाना अबुल हसन अली नदवी, अली मियां, की तहरीक प्यामे इन्सानियत की जरूरत, अहमियत और अफादियत हम सब के लिये मशअले राह है। दुनिया का कोई भी मुल्क हो उसका माहौल समाजी, व मआशी एतेबार से खुशगवार और पुरसुकून उसी वक्त हो सकता है जब वहां अमन व आश्ती हो, भाई चारा हो, कौमी यकजेहती और फिरकावारान हमआहंगी हो, हर मुल्क में अच्छे लोग भी होते हैं, शरपसन्द और बुरे लोग भी होते है, शरपसन्द अनासिर के खिलाफ जद्दोजेहद सिर्फ हुकूमते वक्त की जिम्मेदारी नहंी है, बल्कि मुल्क के बाशिन्दों की भी है कि वह शरपसन्द अनासिर के घिनावने इरादों को पस्त कर दें जो अफवाहों से माहौल को खराब करते हैं, फसाद व बलवे करके लूट मार करते हैं, क्योंकि यही उनका जरियये मआश है, इन शरपसंद अनासिर को पस्त करने के लिये जरूरी है। लोग बिला तफरीक मजहब व मिल्लत मिल जुल कर रहें, रवादारी को अपने नस्बुलऐन में शामिल करेें और इंसानी कदरों का एहतेराम करें।

हिन्दुस्तान की अजीम शोहरतयाफता शख्सियत हजरत मौलाना अबुल हसन अली मियां, आलमे इस्लाम की एक मुमताज शख्सियत यों ही नहंी बन गये थे, वह एक जहांदीदा और रोशन ख्याल इन्सान थे, जिस दीनी और असरी इल्म की दौलत से उन्होंने खुद को मालामाल किया और अल्लाह के बन्दों को र्कुआनी आयात की रोशनी मेें राहे रास्त पर चलने की दावत दी, वह रायबरेली की मर्दुमखेज सरजमीन तकिया कलां के एक ऐसे सआदात खानवादा से तअल्लुक रखते थे जो दीन और इल्म की खिदमत के साथ अपने वतने अजीज हिन्दुस्तान को सारी दुनिया में समाजी, मआशी, इल्मी, अखलाकी, तहजीबी, ईमानी, गरज हर एतेबार से सरबलंद रखने के लिये कोशां रहते थे। हजरत मौलाना अली मियां जो एक पैदाइशी, अबकरी शख्सियत के मालिक थे, जिनके नस्बुलऐन मेें खिदमते खल्क के साथ इन्सानी कदरों की इल्म बिरादरी भी शामिल थी, वह बिला शुबहा एक आलिम बाअमल थे। वह फिरकापरस्ती के सख्त मखालिफ थे, किसी के मजहब की तौहीन के कायल नहंी थे, उन्होंने जरूरत महसूस की, आजाद हिन्दुस्तान के शहरियों को इन्सानियत का पैगाम दें, बिला तफरीक मजहब व मिल्लत अल्लाह के बंदों में जज्बाती, हम आहंगी पैदा करने के लिये जद्दोजेहद करने का जज्बा मौलाना अली मियां को अपने खानवादे से वेरासत मेें मिला था, जिसका हक उन्होंने ता हेयात अदा किया। मौलाना अली मियां की निगाहेें, मुल्क मेें ऐसे अनासिर को देख रही थीं, जिन्होंने हुसूले आजादी के साथ तकसीम के बदबख्ताना एकदाम की आड मेें मुल्क में फिरकावाराना जहेर घोलना शुरू कर दिया था, मुसलमानों के बारे मेें गलत फहमियां फैलाने और फसाद कराने को अपना शेवा बना लिया था। उन अनासिर ने हिन्दुस्तान की हजरों बरस कदीम तहजीब व तमद्दुन और रवादारी, बिला तफरीक, मजहब व मिल्लत, व मोहोब्बत की धज्जियां उडाना शुरू कर दी थीं और शीराज़े को मुन्तशिर करने की कोशां हो गयी थीं, जिसके नतीजे में हिन्दुस्तान सारी दुनिया की नजर में कसरत में वहदत का काबिले रश्क नमूना बना हुआ था, ऐसे खतरनाक और पुरआशोब हालात में मौलाना अली मियां मरहूम प्यामेें इन्सानियत तहरीक का आगाज किया, उन्हांेने मुल्क के मुख्तलिफ शहरों में मखलूत जलसे करके हालात पर रोशनी डालना शुरू किया, तहरीरों और रिसालों के जरिये भी प्यामें इन्सानियत को आम किया गया, दूसरे शहरों में जलसे करने से पहले मौलाना अली मियां ने 1954 मेें अमीनाबाद के तारीखी गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल में एक मख्लूत इजतेमे को खिताब किया और इस बात पर जोर दिया कि मुल्क के अमन पसंद अवाम मुत्तहिद होकर समाज दुशमन अनासिर का मुकाबला करें, जो मुल्क की तामीर, व तरक्की के रास्तों में ंरूकावट हैं। इस जलसे मेें बडी तादाद में बिरादराने वतन और तालीम याफता हजरात की शिरकत हौसलामंद साबित हुयी।

1974 में इलाहाबाद में तहरीके प्यामे इन्सानियत को बकायदा हलकये प्यामें इन्सानियत का नाम दिया गया जिसके सातनुकाती अगराज व मकासिद में कहा गया कि इन्सानियत, रिश्ते और हिन्दुस्तानी होने के नाते , मुल्क में भाईचारे की फिजा कायम की जाये, अखलाकी गिरावट को खत्म करने के लिये अवामी रास्ते की मुहिम चलायी जाये, जलसों और सेमिनारों का इन्एकाद किया जाय, मुख्तलिफ जबानों मुफीद लिटरेचर शाया किया जाये, रिश्वत खोरी, बदउनवानी बंद हो, फिरकापरस्ती ओर मआशी इस्तेहसाल को दूर करने और उरयानियत के खिलाफ जद्दोजेहद की जाये।

आज जब कि मौलाना अली मियां की वफात को 21 साल से जाएद का अरसा गुजर गया है, तहरीके प्यामे इन्सानियत, अपने काम मेें मशगूल है। आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदर, मौलाना सैयद राबे हसनी नदवी की सरपरस्ती और नदवतुल उलमा के नाजिरे आम, हजरत मौलाना बिलाल हसनी नदवी की फआल केयादत में तहरीके प्यामे इन्सानियत के हजारों कारकुन इन्सानियत का पैगाम मुल्क के कोने कोने में फैलाने का नाकाबिले फरामोश कारनामा अन्जाम दे रहे हैं। आज जब कि एक बार फिर शरपसन्द अनासिर मुल्क की खुशगवार फिजा और माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे हालात मेें मौलाना अली मियां की तहरीक प्यामें इन्सानियत को और ज्याद मेहनत करना है ताकि मुल्क में रहने वाले तमाम अफराद के दरमियान बरादराना माहौल पैदा किया जाये।