• देश-विदेश में मशहूर कथक नृत्यांगना सुरभि सिंह ने दी कैरियर की जरूरी टिप्स
  • नव-अंशिका फ्री-ऑनलाइन कैरियर की 8वीं श्रंख्ला

कथक नृत्य की प्रस्तुतियों से कलाकार को पहचान मिलती है वहीं यह रोजगार के भी अनंत संभावनाएं उपलब्ध करवाता है। देश विदेश में मशहूर कथक नृत्यांगना सुरभि सिंह ने रविवार को इस बारे में आसान भाषा में उपयोगी और दिलचस्प जानकारियां दीं। नव-अंशिका संस्था की ओर से कोरोना के संकटकाल में संचालित ऑनलाइन फ्री-कैरियर गाइडेंस सीरीज की 8वीं कड़ी में रविवार 8 अगस्त को इसका ऑनलाइन प्रसारण किया गया।

सुरभि सिंह ने बताया कि वर्तमान में भौतिकता की ऐसी अंधी दौड़ लगी है कि इंसान मशीन बन गया है। ऐसे में संगीत, नृत्य और गायन व्यक्ति में भावानाओं का संचार कर उसे शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से भी तंदरुस्त बनाते हैं। कहा गया है कि साहित्य, संगीत कला से विहीन मनुष्य पशु के समान है। इसलिए कला को केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं करना चाहिए। यह तो आध्यात्म तक की सीढ़ी है। इसके माध्यम से समाज को संस्कारित भी किया जा सकता है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही केंद्र और राज्य सरकारों ने स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक में नृत्य, संगीत और कला के संकाय खोले हैं। महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेकर ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन ही नहीं शोध कार्य तक किया जा सकता है। संगीत के क्षेत्र में सरकारी और निजी विद्यालयों में शिक्षकों के पद, बेहतर विकल्प है।

मंचीय प्रस्तुतियों से इतर इसमें कलाकारों को गढ़ने का अपना ही अलग सुख है। इसके अतिरिक्त कोरियोग्राफर के रूप में मंचीय प्रस्तुतियों से लेकर टीवी और फिल्मों तक में अपार संभावनाएं हैं। इसके अलावा पुस्तक लेखन और कला समीक्षक के रूप में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। वर्तमान में इवेंट आर्गेनाइजर के रूप में अनुभवी कलाकारों के समक्ष रोजगार के नए क्षितिज खुल रहे हैं। कला को उपचार के रूप में अब मान्यता मिल रही है। कई अस्पतालों में इस संदर्भ में चिकित्सकों के साथ मिलकर कार्य किया जा रहा है। विज्ञापन के जगत में कला भी प्रचार का माध्यम बन गई है। उन्होंने यह सलाह दी कि अगर सफल कलाकार बनना है तो संगीत के सभी पक्षों के साथ उसके तकनीकी पक्षों को आत्मसात करना होगा।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में कथकाचार्य पद्म विभूषण पं.बिरजू महाराज लखनवी कथक को विश्वभर में प्रतिष्ठित कर रहे हैं। पं.बिरजू महाराज की तबला, पखावज, नाल, सितार आदि कई वाद्य यंत्रों पर महारत हासिल है, वो बहुत अच्छे गायक, कवि व चित्रकार भी हैं। ठुमरी, दादरा, भजन व गजल गायकी में कोई जवाब नहीं है। उन्होंने सत्यजीत राय की फिल्म “शतरंज के खिलाड़ी” में “कान्हा मैं तोसे हारी” गाया है। साल 2002 में बनी हिन्दी फिल्म देवदास में “काहे छेड़ छेड़ मोहे” गाने का नृत्य संयोजन भी किया है। डेढ़ इश्किया, उमराव जान और संजय लीला भंसाली निर्देशित बाजी राव मस्तानी में भी कथक नृत्य प्रस्तुतियों का संयोजन किया है।

इस सत्र में नव-अंशिका फाउंडेशन की उपाध्यक्ष नीरा लोहानी, सचिव सतपाल, हेमलता, थिएटर एवं फिल्म वेलफेयर एसोशियेशन के सचिव डी.सिद्दीकी, बाल नृत्यांगना अंशिका त्यागी, रूपल मिश्रा,सुनीत मिश्रा सहित अन्य शामिल हुए।