नई दिल्ली:
PMLA मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने ED को मिली शक्तियों को सही माना है और PMLA के तहत गिरफ्तारी और संपत्ति ज़ब्त करने के ED के अधिकार को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया मनमानी नहीं है. अपराध की आय, तलाशी और जब्ती, गिरफ्तारी की शक्ति, संपत्तियों की कुर्की और जमानत की दोहरी शर्तों के PMLA के कड़े प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा.

कार्ति चिंदबरम, अनिल देशमुख की याचिकाओं समेत कुल 242 याचिकाओं पर यह फैसला आया. कोर्ट ने कहा कि PMLA के तहत गिरफ्तारी का ED का अधिकार बरकरार रहेगा. गिरफ्तारी प्रक्रिया मनमानी नहीं है. जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सीटी रवि कुमार की स्पेशल बेंच ने यह फैसला सुनाया. फैसला सुनाते हुए जस्टिस खानविलकर ने कहा कि सवाल ये था कि कुछ संशोधन किए गए हैं, वो नहीं किए जा सकते थे. संसद द्वारा संशोधन किया जा सकता था या नहीं, ये सवाल हमने 7 जजों के पीठ के लिए खुला छोड़ दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, धारा 3 के तहत अपराध अवैध लाभ पर आधारित हैं. 2002 कानून के तहत अधिकारी किसी पर तब तक मुकदमा नहीं चला सकते जब तक कि ऐसी शिकायत किसी सक्षम मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं की जाती हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ईडी अधिकारियों के लिए मनी लॉन्ड्रिंग मामले में किसी आरोपी को हिरासत में लेने के समय गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करना अनिवार्य नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने सभी ट्रांसफर याचिकाओं को वापस संबंधित हाईकोर्ट को भेज दिया. जिन लोगों को अंतरिम राहत है, वह चार हफ्ते तक बनी रहेगी, जब तक कि निजी पक्षकार अदालत से राहत वापस लेने की मांग ना करें. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ED अफसर पुलिस अधिकारी नहीं हैं, इसलिए PMLA के तहत एक अपराध में दोहरी सजा हो सकती है.