उत्तर प्रदेश

समाज से अलग-थलग करने वाला विकार है स्किज़ोफ्रेनिया

  • सीएचसी नौरंगा में मनाया गया विश्व स्किज़ोफ्रेनिया दिवस
  • 25 मरीजों का पंजीकरण किया गया उपचार, दवाएं भी बांटी गई

हमीरपुर
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नौरंगा में बुधवार को विश्व स्किज़ोफ्रेनिया दिवस मनाया गया। इस मौके पर कैंप लगाकर मानसिक विकारों से ग्रसित मरीजों का परीक्षण कर दवाएं वितरित की गई। स्किज़ोफ्रेनिया के बारे में लोगों को जागरूक किया गया। साथ ही लोगों से अपील की गई कि मानसिक विकारों का समय रहते उपचार कराएं। झाड़-फूंक से परहेज करें। यह ऐसी अवस्था होती है जहां दुआ और दवा दोनों की आवश्यकता पड़ती है।

शिविर में न्यूरो साइकेट्रिस्ट डॉ. प्रवीण सचान ने स्किज़ोफ्रेनिया के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि यह एक ऐसा मानसिक विकार है जो मनुष्य के विचार, अनुभूति एवं व्यवहार पर गंभीर असर करता है। इसमें मरीज के लिए वास्तविक एवं काल्पनिक अनुभवों में फर्क करना कठिन हो जाता है। यह विकार व्यक्ति को समाज से अलग-अथग कर देता है। साइको थेरिपिस्ट डॉ. नीता ने कहा कि स्किज़ोफ्रेनिया एक मानसिक विकार है और मानसिक विकार कोई अभिशाप नहीं है। समय से उपचार कराने से ऐसे विकारों का निदान हो जाता है।

इस शिविर में 25 मरीजों ने पंजीकरण कराकर डॉक्टरों से परामर्श लिया। इनमें स्किज़ोफ्रेनिया लक्षण वाले भी मरीज मिले। इसके अलावा मानसिक दिव्यांगता के मरीजों को देखा गया और उन्हें दवाएं दी गई। इस मौके पर सीएचसी के एमओआईसी डॉ.भरत राजपूत, डॉ. मानसी आदि मौजूद रहे।

हमेशा किसी के धक्का देने का होता है एहसास
शिविर में स्किज़ोफ्रेनिया से ग्रसित 10 मरीजों को देखा गया। 34 वर्षीय एक मरीज के परिजन ने बताया कि उसे हमेशा यह महसूस होता है कि कोई उसे पीछे से धक्का दे रहा है। इस चक्कर में एक बार वह सूखे कुएं में भी गिर गया। हालांकि कुएं में ज्यादा गहराई नहीं थी। करीब पांच से छह घंटे तक कुएं में पड़ा रहा। होश आने पर चीख-पुकार मचाई तब उसे बाहर निकाला गया। अक्सर अजीबों-गरीब आवाजें सुनाई देने की बात करता है। इस मरीज की भी टीम ने काउंसिलिंग की। मरीज का उपचार ग्वालियर में भी हो चुका है। टीम ने मरीज के परिजनों को नियमित तौर पर एक ही डॉक्टर से उपचार कराने की सलाह देते हुए दवाएं भी दी।

स्किज़ोफ्रेनिया के लक्षण
तरह-तरह की आवाजें आना, शक करना, काल्पनिक दुनिया में रहना, घर से भाग जाना, स्वयं की देखरेख न कर पाना, खुद से बातें करते रहना, बुदबुदाना।

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