टीम इंस्टेंटखबर
मुस्लिम पुरुषों को तलाक का एकतरफा अधिकार देने वाले तलाक-ए-अहसन और दूसरे प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका को जल्द सुनवाई के लिए लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है.

पति की तरफ से पहला तलाक पा चुकी गाज़ियाबाद की बेनज़ीर हिना की याचिका जल्द सुनने की मांग पर चीफ जस्टिस ने कहा कि मामले को तुरंत सुनवाई के लिए लगाना जरूरी नहीं है. इस तरह के दूसरे लंबित मामलों के साथ इसे बाद में सुना जाएगा.

याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि बेनज़ीर को 19 अप्रैल को पहला तलाक मिल चुका है. ऐसे में जल्द सुनवाई ज़रूरी है. अगर 20 मई तक मामला सुनवाई के लिए नहीं लगा तो वह सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन बेंच के सामने सुनवाई की मांग रखेंगे. बेनज़ीर की याचिका में यह मांग भी की गई है कि मुस्लिम लड़कियों को तलाक के मामले में बाकी लड़कियों जैसे अधिकार मिलने चाहिए.

22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ 3 तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था. तलाक की इस व्यवस्था को लेकर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं का भी मानना था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है. कोर्ट के फैसले के बाद सरकार एक साथ 3 तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाला कानून भी बना चुकी है. लेकिन तलाक-ए-अहसन जैसी व्यवस्थाएं अब भी बरकरार हैं. इनके तहत पति 1-1 महीने के अंतर पर 3 बार लिखित या मौखिक रूप से तलाक बोल कर शादी रद्द कर सकता है.

वकील अश्विनी उपाध्याय के ज़रिए दाखिल याचिका में बेनज़ीर ने बताया है कि उनकी 2020 में दिल्ली के रहने वाले यूसुफ नक़ी से शादी हुई. उनका 7 महीने का बच्चा भी है. पिछले साल दिसंबर में पति ने एक घरेलू विवाद के बाद उन्हें घर से बाहर कर दिया. पिछले 5 महीने से उनसे कोई संपर्क नहीं रखा. अब अचानक अपने वकील के ज़रिए डाक से एक चिट्ठी भेज दी है. इसमें कहा है कि वह तलाक-ए अहसन के तहत पहला तलाक दे रहे हैं.