(दस मई प्रथम पुण्यतिथि)

अरविन्द वाजपेयी
दुनिया से जाना है यही सच है लेकिन साथ ही यह भी तय होना होता है कि दुनिया से जाने वाले ने हयातें ज़िंदगी में कैसे कार्य किए अगर उसने अच्छे काम किए तो दुनिया में मौजूद लोग उनको उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के लिए याद करते हैं और वह अमर हो जाते हैं और अगर उन्होंने कुछ ग़लत किया होता है तो उनको कोई याद नहीं करता बल्कि ज़िक्र आने पर उनके ग़लत कार्यों को सामने रखा जाता है लेकिन मेरा मानना है कि दुनिया से जाने वालों को उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के लिए ही याद करना चाहिए।ख़ैर हम बात कर रहे एक ऐसे इंसान की जो नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी के नाम से जाने जाते थे जो पिछले साल दस मई दौराने रमज़ान छब्बीसवां रोज़ा और सत्ताईसवी सब को इस दुनिया से रूखसत हो गए थे इस शख़्स ने अपना पूरा समय ही समाज सेवा में लगा दिया और अपने लिए कुछ नहीं किया और न ही अपने बच्चों के मुस्तकबिल के लिए किया जिन्हें देवबन्द से लेकर लखनऊ तक लोग जानते पहचानते थे देवबन्द में नेताजी और लखनऊ में चाचा के नाम से पुकारे जाते थे।नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी को अपने छात्र जीवन से ही देवबन्द में नेताजी के नाम से जाने जाना लगा था अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने सियासत के उन पायदानों को छुआ जिसकी नेता कल्पना ही करते हैं लेकिन छू नहीं पाते सियासी दलों के शीर्ष नेताओं के बहुत क़रीब रहे कभी अपने लिए कुछ नहीं चाह शीर्ष नेतृत्व ने अगर कुछ देना भी चाह तो मना कर दिया वैसे तो नेताजी के बहुत से ऐसे वाक़ये हैं जिनका ज़िक्र किया जा सकता है ऐसा ही एक वाक़या है जनता पार्टी का दौर अपने उरूज पर था नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी को किसानों के मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी उनको बहुत मानते थे उसी दौरान नेताजी यूपी के एक मंत्री हरिजन समाज कल्याण विभाग का विभाग बदलवाने के लिए चौधरी चरण सिंह जी से मिलने गए थे विभाग भी छोटा मोटा नहीं गृह विभाग दिलवाना था चौधरी साहब के सामने अपनी बात रखी जिसे चौधरी साहब ने मान लिया और उन्होंने मुख्यमंत्री को संदेशा भिजवाया कि हरिजन समाज कल्याण मंत्री राम सिंह मांडेबास का विभाग हरिजन समाज कल्याण से बदल कर गृह विभाग कर दिया जाए जिससे मुख्यमंत्री ने चौधरी चरण सिंह जी संस्तुति पर तत्काल कर दिया इसके बाद चौधरी चरण सिंह जी ने नेताजी की तरफ़ मुख़ातिब होते हुए कहा कि (चौधरी साहब) नेताजी को तौफ़ीक़ कहते थे उन्होंने उसी अंदाज में कहा तौफ़ीक़ मैं तेरा नाम विधान परिषद के लिए भेज रहा हूँ इस पर नेताजी का जवाब था कि चौधरी साहब मेरा नहीं किसी और का नाम भेज दीजिये हम तो आपके हैं ही पास में बैठे हरिजन समाज कल्याण मंत्री से गृहमंत्री बने राम सिंह मांडेबास जी ने नेताजी के अपना खवा मारते हुए कहा कि हाँ कर दीजिए इसमें बुराई क्या है लेकिन नेताजी ने हाँ नहीं की ऐसे ही अपने मित्र को पदोन्नति दिला कर वापिस आ गए इसके बाद गृह विभाग में कुछ रिक्तियाँ निकलीं और नेताजी की संस्तुतियों पर भी कुछ नियुक्तियाँ हुई लगभग पचास की संख्या बताईं जाती हैं पता चला सब वैसे ही कोई घूसख़ोरी नहीं जैसे आज होती हैं मंत्री जी ने इधर-उधर पता कर बड़ी हैरत व्यक्त की थीं।पहले लोग नेतागीरी को पैसे कमाने का ज़रिया नहीं समझते थे सिर्फ़ समाज सेवा ही उद्देश्य रहता था।जनपद सहारनपुर की सियासत में बड़ा नाम रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. क़ाज़ी रसीद मसूद जी को भी चौधरी चरण सिंह जी के क़रीब ले जाने वाले नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी ही थे जिसको स्व क़ाज़ी रसीद मसूद जी ने खुद स्वीकार किया था 1984 के विधानसभा चुनाव का समय था जिस समय मैं ख़ुद वहाँ मौजूद था एक टिकट को लेकर स्व. क़ाज़ी रसीद मसूद जी से बात बिगड़ गई नेताजी भायला गाँव के मजिस्ट्रेट बाबू मंगत सिंह जी के पुत्र राजेंद्र पाल सिंह एडवोकेट को देवबन्द से चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन क़ाज़ी रसीद मसूद जी किसी और को लड़ाना चाहते थे इस लिए नेताजी के नाम को नज़रअंदाज़ कर दिया गया था इससे खिन्न होकर नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी ने बीकेडी को अलविदा कह दिया था यह सब होने के बाद स्व क़ाज़ी रसीद मसूद जी नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी को मनाने के लिए उनके आवास पर आए और उनकी मान मनौव्वल करनी की कोशिश की लगभग उनके आवास पर तीन घंटे रहे यही वह समय था जब नेताजी ने क़ाज़ी रसीद मसूद जी को कहा था कि आपको चौधरी चरण सिंह जी के पास ले जाने वाला मैं ही तो था जिसको क़ाज़ी रसीद मसूद जी ने भरी बैठक में स्वीकार किया था ऐसे भले लोग होते थे आज नेताओं में यह सब नहीं मिलता ख़ैर नेताजी ने स्व क़ाज़ी रसीद मसूद जी को साफ़ इंकार कर दिया कि अब वापसी का सवाल ही पैदा नहीं होता है काफ़ी जद्दोजहद करने के बाद क़ाज़ी जी निराश होकर वापिस चले गए थे।इसकी भनक लगते ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विधायक ठाकुर महावीर सिंह जडोदाजट ने नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी को कांग्रेस में शामिल होने के लिए बातचीत की जिसे नेताजी ने स्वीकार कर लिया और कांग्रेस में शामिल हो गए थे और आख़िर तक कांग्रेस में ही रहे।नेताजी अपने उसूलों के पक्के थे इसके लिए चाहे क़ुर्बानी कुछ भी देनी पड़े वह पीछे नहीं हटते थे।उनके सर्किल में मौजूद लोगों ने नेताजी का भरपूर फ़ायदा उठाया इसका उन्होंने कभी गुणगान नहीं किया और एक ख़ासियत थी नेताजी में आपस में लड़ाने का कोई काम नहीं करते थे प्यार मोहब्बत से रहने की हिदायत देते थे अगर कोई नाराज़ हो जाता था और वह आना छोड़ देता था तो वह उनके बारे में कभी कुछ नहीं कहते थे अगर कोई और ज़िक्र भी करता तो यही कहते थे कि कोई बात नहीं है वह अब भी हमारा ही है इस बात को उनके बैठने वालों सहित उनके बच्चे भी ग़लत मानते थे लेकिन इससे उनकी आदत में कोई बदलाव नहीं आता था और आख़िर में वहीं सही होते नाराज़ चल रहा व्यक्ति फिर आ जाता था रही बात उनके बच्चों की उनकी इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि वह उनके सामने कुछ कह सके आख़री टाईम तक उनकी औलाद ने उनका यह सम्मान बाक़ी रखा।जब कोई उनके सामने उनका दोस्त उनकी ज़िम्मेदारियों को गिनाया करता था तो इस पर उनका कहना होता था कि यह काम मेरा नहीं अल्लाह का जिसने यह जिम्मदारियां दी है वहीं पूरी भी कराएगा इसके लिए मैं ग़लत तरीक़ों को अख़्तियार करूँ यह मुझे मंज़ूर नहीं है अल्लाह सब कर देगा इसका मुझे यक़ीन है और यहीं हुआ भी और हो भी रहा है और आगे भी ऐसा ही होगा उनकी औलाद को भी यही यक़ीन है अल्लाह उनके यक़ीन को क़ायम रखे इमानदारी के रास्ते चलते उनकी और उनकी औलाद की ज़िम्मेदारियों को पूरी करने कराने की तौफ़ीक़ अता करे।दौराने ज़िंदगी नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी कहते थे कि नेकी कर दरिया में डाल आज इस तरह के नेताओं की ओर इंसानों की ज़रूरत है इनके न होने की वजह से समाज में बुराइयों ने पैर पसार लिए हैं समाज सेवा भाव अब नेताओं में मौजूद नहीं है।चलते चलते आख़िर में यह भी बताना उचित होगा कि उनकी 80 साल की ज़िंदगी में 60-65 साल लखनऊ में गुज़ार दिए वहाँ रहकर भी लोगों की खिदमत को अंजाम दिया करते थे काम करने और कराने का उनका जज़्बा उन्हें बड़ा बनाता था।ख़ैर नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी जैसे अमर होने वाली शख़्सियत हैं वह कभी नहीं मरते वह अमर होते हैं जो हमेशा याद किए जाते रहे हैं और किए जाते रहेंगे।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक चिंतक है।