नई दिल्ली
जुमा की नमाज़ में खुत्बे में देश के कई प्रमुख मस्जिदों के इमामों ने भारतीय मुस्लमानों के मौजूदा मसाइल और उनका हल के उनवान पर ख़िताब करते हुए कहा कि आज मुसलमान तमाम तरह के मसाइल में उलझा हुआ है, इसी वजह से किसी भी मैदान में हम तरक़्क़ी नहीं कर पा रहे हैं। इस की कई वजूहात हैं। सबसे पहली वजह ये है कि हम शिक्षा और रोजगार में पीछे है। आज हम को दीनी और असरी (मॉडर्न) दोनों तरह की तालीम पर ध्यान देना होगा।

मुस्लमानों के तरक़्क़ी के दौर का अध्ययन करेंगे तो आपको मालूम होगा कि हमारी क़ौमी तरक़्क़ी में तालीम का बहुत अहम रोल रहा है। अगर भारत की बात करें तो आज़ादी से पहले तक हमारा तालीमी मयार अच्छा था। यही वजह है कि उस वक़्त तक हम तरक्की याफता थे और मज़बूत भी मगर आज़ादी के बाद कई कारणों के पेश-ए-नज़र हम तालीम में पिछड़े हैं।

इसी तरह सियासी नज़रिया का अभाव भी एक अहम मसला है। किसी भी जमहूरी मुल्क में बहैसीयत क़ौम अपना वजूद बाक़ी रखने के लिए सियासी हिस्सादारी कितनी अहम है ये बात समझना चाहिए है। इस मुल्क के सबसे दबे कुचले तबक़े ने सियासी ताकत हासिल की और ख़ुद को महफ़ूज़ कर लिया लेकिन वहीं हमने आज़ादी के बाद अपनी सियासी वजूद को तकरीबन खत्म कर दिया, इसमे उन तथाकथित सेकुलर दलों का बड़ा रोल रहा है जो डराकर मुस्लिम वोटों का एक मुश्त वोट लेती आई हैं।

एक सबसे बड़ा मसला मुसलमानों का फुज़ूलखर्ची है। अगर हम अपने मुआशरा पर नज़र डालें तो पता चलेगा कि सबसे ज़्यादा फुज़ूलखर्ची हम करते हुए नज़र आएँगे। जब कि मुसलमानों को क़ुरान-ए-पाक में साफ़ तौर पर फुज़ूलखर्ची से रोका गया है। और फुज़ूलखर्ची करने वाले को शैतान का भाई कहा गया है.

अगर हम अपनी फ़ुज़ूल ख़र्चियों को क़ाबू करें और वही पैसा क़ौम के बच्चों की तालीम-ओ-तर्बीयत और मुख़्तलिफ़ शोबों में काम करने की तैयारीयों में खर्च करें तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी क़ौम ना सिर्फ ख़ुशहाल बल्कि महफ़ूज़ भी होगी.

इमामों में जयपुर में मौलाना सय्यद मुहम्मद क़ादरी, अमन शहीद जामा मस्जिद हमीरपुर में इमाम कारी तनवीर अहमद, जामा मस्जिद राजपुर भागलपुर में मौलाना मुहम्मद अबरार, नागपुर में मौलाना मुस्तफा रज़ा, दिल्ली के शास्त्री पार्क के क़ादरी मस्जिद में मुफ्ती अशफ़ाक हुसैन ने भी जुमा में खुतबे के दौरान उपरोक्त बातो पर ज़ोर दिया.