लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ।संघ देश में बहुसंख्यक के दिलोदिमाग़ में मुसलमानों के प्रति लगभग सौ साल से ज़हरीली एवं नफ़रतों के बीज बोता आ रहा है अब ज़हरीली खेती की फसल पूरे उफ़ान पर है लेकिन वही संघ अब उसके परिणामों से भयभीत लगता है या ड्रामा कर रहा है। सांप्रदायिकता की इस आग में हिन्दू-मुस्लिमों में चली आ रही प्यार मोहब्बत की चिता बनकर स्वाहा हो गईं है उसी आग से निकल रही चिंगारियाँ दूरदृष्टि रखने वाले विद्वानों को नज़र आ रही है ऐसा न हो इसको लेकर सभी विद्वान गौर फ़िक्र करते रहते है लेकिन जब इस माहौल को बनाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी उस रास्ते की ओर देखने लगे या चलने की बात करने लगे जैसा सेकुलरिज्म विचारधारा के विद्वान मानते हैं हालाँकि संघ के इस रूख पर सेकुलरिज्म के विद्वान यक़ीन करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहना है कि मुसलमान भारत में सर्वाधिक सुखी एवं सुरक्षित हैं यह बात उन्होंने एक वर्ष पूर्व कहीं थी अब हाल ही में वह एक कदम आगे बढ़ते हुए कहते है कि यदि मुसलमान कहीं संतुष्ट हैं तो वह केवल भारत में है संघ प्रमुख मोहन भागवत यहीं नहीं रूके उन्होंने कहा कि यदि दुनियाँ में ऐसा कोई देश है जिसमें वह विदेशी धर्म जिसके मानने वालों ने वहाँ शासन किया हो उसका धर्म अब वहाँ फल फूल रहा हो तो वह भारत है।संघ प्रमुख मोहन भागवत आगे कहते है कि भारत का संविधान यह नहीं कहता कि यहाँ सिर्फ़ हिन्दू रह सकता है या यहाँ सिर्फ़ हिन्दुओं की भावनाओं का या बातों का ही ध्यान रखा जाएगा और यदि आपको भारत में रहना तो हिन्दुओं को बड़ा स्वीकार करना होगा, हमने उन्हें रहने के लिए जगह दी है।हिन्दुस्तान की यह संस्कृति नहीं है इसी संस्कृति का नाम हिन्दू है।हालाँकि उन्होंने उस इतिहास का हवाला भी दिया जिसे वह मानते ही नही उसी का हवाला देते हुए कहा कि अकबर के विरुद्ध लड़े गए युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना में मुसलमान भी शामिल थे इस सच को झूटलाया नहीं जा सकता है।जब भी हिन्दुस्तान की संस्कृति पर किसी ने हमला किया तब सभी धर्मों के मानने वालों ने एक होकर मुक़ाबला किया है।जब यह सच है तो फिर संघ और संघियों के द्वारा बरसों से देश की संस्कृति को क्यों ज़हरीली बनायी या आज भी काम किया जा रहा हैं पिछले कई दशकों से हिन्दुस्तान के मुसलमानों के विरुद्ध संघियों के द्वारा देश के बहुसंख्यकों में ज़हर फैलाने की साज़िश रची गई या रचीं जा रही हैं जिसकी वजह से मुसलमानों की स्थिति में लगातार गिरावट आ रही हैं जिसके लिए संघ का दुष्प्रचार ज़िम्मेदार हैं राम मंदिर आंदोलन के दौरान निकाली गई यात्रा ,गौमांस के नाम पर लिंचिंग , लव जेहाद के नाम पर दी गई या दी जा रही धमकियाँ और घर वापसी जैसी संघ व संघियों की मनगढ़ंत कहानियाँ ज़िम्मेदार हैं।एंटी CAA ,NPR और संभावित NRC का विरोध करने वालों को हिन्दुस्तान विरोधी क़रार दे देना और सरकार द्वारा भी ऐसी भाषा बोलने लगे , लगे हाथ अफसर भी इसी तरह का रवैया अख़्तियार करने लगे उनके साथ सौतेला व्यवहार करने के साथ यह तक कहने लगे कि सुधर जाओ नही तो पाकिस्तान भेज दिए जाओगे मुसलमानों को आतंकित करने की भरपूर्व कोशिशें की गईं।इन सब हालातों पर नज़र दौड़ाने वाले विद्वान संघ की इस तरह की कोशिशों को ड्रामा क़रार देते है उनका कहना है कि यह संघ और संघियों के हाथी दाँत है इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।यह बात अलग है मुसलमान देश की बेहतरी के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं करना भी चाहिए यह देश हमारा है हमारा ही रहेगा चाहे कोई कुछ भी कर ले इससे विचलित नही होना चाहिए।मुसलमानों के सबसे पुराने और बड़े संगठन जमीअत उलमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं अभी हाल ही में दारूल उलूम देवबन्द के सदर मुदर्रिस नियुक्त किए गए हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी ने सुलहें हुदैबिया का हवाला देकर संघ प्रमुख मोहन भागवत से संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय पर मुलाक़ात की थी दोनों के बीच काफ़ी लंबी वार्ता हुईं थी जबकि इस्लामिक हल्क़ों में इस मुलाक़ात पर काफ़ी तीखी प्रतिक्रिया हुईं थी इस्लामिक विद्वानों का तर्क था कि संघ और मुस्लिम विद्वानों के बीच बातचीत तो होनी चाहिए लेकिन वह गुप्त नहीं सार्वजनिक रूप से होनी चाहिए।दोनों तरफ़ से इस मुलाक़ात को गोपनीय रखा गया था बस कुछ तस्वीरें मौलाना की संघ कार्यालय से बाहर निकलते हुए वायरल हुईं थी जिसके बाद मीडिया ने हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी से सवाल किए तब उन्होंने कहा था हाँ मुलाक़ात हुईं है लेकिन क्या इस पर वह कुछ ज़्यादा नही बता पाए थे दोनों के बीच क्या बातचीत हुईं किन मुद्दों पर हुईं यह सार्वजनिक नहीं की गईं थी।हमारे बहुत ही भरोसेमंद सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक़ दशहरे के क़रीब या उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत देश दुनियाँ में अपनी पहचान इस्लामिक नगरी के रूप रखने वाले दारूल उलूम देवबन्द का दौरा कर सकते है जहाँ उनकी मुलाक़ात इस्लामिक विद्वानों से होने की संभावना व्यक्त की जा रही है।हिन्दुस्तान में ही नही दुनियाँ में दारूल उलूम देवबन्द इस्लामिक जगत का सबसे बड़ा मरकज़ माना जाता है साथ आज़ादी की लड़ाई में भी दारूल उलूम देवबन्द का अहम योगदान है मोहन भागवत का दारूल उलूम देवबन्द के दौरें पर जाना अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है।समझा जाता है कि इस दौरें पर आने के बाद वह देवबन्द जगत की महान हस्तियों से मुलाक़ात कर देश के विभिन्न विषयों पर इस्लामिक विद्वानों से विचार-विमर्श करेंगे।हालाँकि अभी तक इस प्रोग्राम की कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गईं है और ना ही करने या होने की कोई संभावना लग रही है लेकिन हमारे भरोसे के सूत्रों का कहना है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत का दशहरे के पहले या बाद में आना लगभग फ़ाइनल है जैसे दारूल उलूम देवबन्द के सदर मुदर्रिस एवं जमीअत उलमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी अचानक संघ के दिल्ली स्थित कार्यालय पर पहुँच गए थे इसी तरह देवबन्द भी एक रोज़ सुर्ख़ियों में आए कि अचानक संघ प्रमुख मोहन भागवत पहुँचे देवबन्द और की मुलाक़ात देवबन्द दारूल उलूम देवबन्द के मोहतमिम सहित अन्य इस्लामिक विद्वानों से।आज के हिसाब से संघ प्रमुख मोहन भागवत का देवबन्द जाना बहुत बड़ी बात होगी।ग़ौरतलब हो कि दारूल उलूम देवबन्द के प्रबंधन में किए गए परिवर्तन के पीछे कहीं मोहन भागवत का देवबन्द दौरा तो नही क्योंकि दोनों जमीअत के अध्यक्षों को दारूल उलूम में प्रमुख पदों पर बैठाना और कोई शोरगुल ना होना जबकि दोनों के बीच काफ़ी उठापटक चलती रहती थी यह भी विचारणीय है।कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इस्लामिक विद्वानों के बीच टेबल टोंक होना ड्रामा ही सही लेकिन बहुत बड़ी ख़बर है।
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