लोकसभा में कृषि सुधार से जुड़े तीन विधेयकों के पेश होने के बाद से ही देशभर में किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। मोदी सरकार भी कोरोनाकाल के दौरान ही इस विधेयक को कानून बनवाना चाहती है। गठबंधन के कुछ साथियों के नाराज होने के बावजूद भाजपा ने तीनों विधेयकों के पीछे अपनी ताकत झोंक दी है। हालांकि, इसमें आरएसएस से जुड़े किसान संगठन- भारतीय किसान संघ (BKS) ही केंद्र के खिलाफ खड़ा हो गया है। BKS के महासचिव बद्री नारायण चौधरी ने कहा है कि यह विधेयक उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाला है और इससे किसानों का जीवन और मुश्किल होने वाला है।

एक इंटरव्यू में चौधरी ने कहा कि भारतीय किसान संघ किसी सुधार के विरोध में नहीं है। पर इन विधेयकों पर किसानों की असल चिंताएं हैं। उन्होंने बताया कि अब जिसके पास भी पैन कार्ड है, वही व्यापारी बन कर सीधा किसान से डील कर सकता है। सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिससे यह तय हो सके कि जब उसका उत्पाद खरीदा जाएगा, उसी वक्त उसे पेमेंट हो जाएगा या फिर सरकार उसके पेमेंट की गारंटर बनेगी।

चौधरी ने बताया कि देश के 80 फीसदी किसान छोटे या मध्यम वर्ग के हैं। इसलिए एक भारत-एक बाजार का नारा उनके लिए काम नहीं करता। यह या तो बड़े उद्योगों या बड़े किसानों के लिए ही काम करता है। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार पिछले दो बजट से 22 हजार नई मंडियों की बात कर रही है, आखिर वे कहां हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कृषि और खाद्य मंत्रालयों को नौकरशाह चला रहे हैं, जिन्हें जमीनी हकीकत का कोई अंदाजा नहीं है।

बीकेएस के महासचिव ने बताया कि मौजूदा फॉर्मेट में यह विधेयक किसानों की मदद नहीं करेगा। देशभर के 50 हजार किसान पीएम को चिट्ठी लिखकर कह चुके हैं कि वे इस कानून को मौजूदा रूप में नहीं चाहते। किसान संघ की कुछ इकाइयों ने ग्राम स्तर पर इसके खिलाफ प्रस्ताव भी पास किए हैं। हमने आरएसएस से जुड़े अन्य संगठनों और भाजपा के बड़े नेताओं से भी इस बारे में बात की है।