नई दिल्ली: असम के नए राज्य समन्वयक हितेश देव शर्मा द्वारा एन.आर.सी. को लेकर जारी की गई एक विवादित अधिसूचना के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी की ओर से सोमवार को दाखिल की गई याचिका सुप्रीमकोर्ट ने स्वीकार कर ली, याचिका वकील आन-रिकार्ड फुज़ैल अय्यूबी द्वारा दाखिल की गई है, जिसमें अदालत से यह अनुरोध किया गया है कि इस प्रकार की अधिसूचना जारी करके वास्तव में राज्य समन्वयक ने अदालत की ओर से समय-समय पर दिये गए निर्देशों और निर्णयों का खुला उल्लंघन किया है इसलिए राज्य समन्वयक के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकद्दमा चलाया जाना चाहिए। याचिका में यह भी कहा गया है कि एन.आर.सी. की पूरा प्रक्रिया सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में पूर्ण हुई है, इसलिए ऐसा करके मिस्टर हितेश देव शर्मा सुप्रीमकोर्ट की अब तक की सभी उपलब्धियों पर पानी फेर देना चाहते हैं, जमीअत उलमा-ए-हिंद के वकीलों ने यह दलील दी कि 23 जुलाई 2019 को अपने एक अहम फैसले में अदालत एन.आर.सी. में शामिल नामों के पुनःसत्यापन की याचिका खारिज कर चुकी है, इसी तरह 7 अगस्त 2019 को अदालत ने उस समय के राज्य समन्वयक मिस्टर प्रतीक हजीला और रजिस्ट्रार आफ इंडिया के एक अखबारी इंटरव्यू देने पर तीव्र रोष प्रकट किया था और उन्हें यह निर्देश दिया था कि वो भविष्य में अदालत की अनुमति के बिना प्रैस से कोई बात नहीं करेंगे, फाजिल जजों ने इन दोनों को संबोधित करते हुए यह भी कहा था कि आप लोग सुप्रीमकोर्ट के निर्देशों पर ही एन.आर.सी. का काम देख रहे हैं, इसलिए आप लोग जो कुछ कहेंगे उसे अदालत की इच्छा या राय समझा जाएगा। अतः ऐसा करके आप लोग अदालत की अवमानना कर रहे हैं, इस पर इन दोनों ने अदालत को विश्वास दिलाया था कि भविष्य में वो ऐसी गलती नहीं करेंगे, जमीअत उलमा-ए-हिंद के वकीलों ने इन दोनों फैसलों को आधार बना कर यह सवाल उठाया है कि जब अदालत पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि अब कोई पुनःसत्यापन नहीं होगा तो राज्य समन्वयक ने किस की अनुमति से पुनःसत्यापन का काम किया? स्पष्ट हो कि यह अधिसूचना एन.आर.सी. से उन लोगों को निकाल बाहर करने के लिए जारी की गई है जो संदिग्ध हैं या डी-वोटर हैं या फिर फाॅरन ट्रिब्यूनल ने जिनके बारे में कोई फैसला नहीं किया है, अधिसूचना में सभी डिस्ट्रिक्ट में रजिस्ट्रार आफ सिटीजन रजिस्ट्रेशन से स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वो न केवल ऐसे लोगों बल्कि उनके अपरिवार वालों (पूर्वजों) के नाम भी एन.आर.सी. से हटा दे, वकीलों ने सवाल किया कि क्या राज्य समन्वयक ने अदालत को विश्वास में लेकर पुनःसत्यापन करवाया है? अगर नहीं तो क्या ऐसा करके उन्होंने अदालत की अवमानना नहीं की? यही नहीं 13 अगस्त 2019 को अपने एक फैसले में अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि वो बच्चा जो 2004 से पहले पैदा हुआ है अगर उसके माता-पिता में से किसी एक का नाम एन.आर.सी. में शामिल होगा तो उसे भारतीय समझा जाएगा, उपरोक्त याचिका इस फैसले के भी सरासर खिलाफ है क्योंकि इसमें कहा गया है कि जो लोग संदिग्ध हैं, डी-वोटर हैं या फिर फाॅरन ट्रिब्यूनल में जिनके मामले विचाराधीन हैं वो सब विदेशी हैं, इसलिए न केवल उनका बल्कि उनके परिवार वालों का नाम भी एन.आर.सी. से हटा दिया जाए, वकीलों ने दलील दी कि इस आधार पर राज्य समन्वयक के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला बनता है, अदालत ने इस पर चर्चा के लिए अभी कोई तारीख निर्धारित नहीं की है, लेकिन जमीअत उलमा-ए-हिंद के वकील चर्चा के लिए सामग्री और सबूत जमा कर रहे हैं।
जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे वकीलों ने पूरी तैयारी के साथ याचिका दाखिल की है जिसमें अहम नुक्तों की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित कराने की कोशिश की गई है, उन्होंने कहा कि पहली ही नजर में लगता है कि नए राज्य समन्वयक ने इस मामले में न केवल अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है बल्कि अपने इस कदम से माननीय अदालत की अवमानना भी की है, अपनी जगह यह सवाल बहुत अहम है कि आखिर उन्होंने किस के इशारे या आदेश पर ऐसा किया? मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि एन.आर.सी. की पूरी पक्रिया की सुप्रीमकोर्ट स्वयं निगरानी कर रही है, यहां तक कि रजिस्ट्रार आॅफ इंडिया और उस समय के राज्य समन्वयक ने जब एक अंग्रेज़ी के अखबार से बातचीत की थी तो इस पर अदालत ने उनको कड़ी फटकार लर्गइा थी और कहा था कि वो आगे अदालत के संज्ञान में लाए बिना कोई काम नहीं करेगी, अदालत दुबारा एन.आर.सी. कराने या पुनःसत्यापन की जरूरत को पहले ही खारिज कर चुकी है, ऐसे में यह सवाल बहुत अहम है कि अब जबकि एन.आर.सी. की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और इससे बाहर रहे लगभग 19 लाख लोगों का मसला बाकी रह गया है, राज्य समन्वयक ने अपने तौर पर पुनःसत्यापन करवा कर इस प्रकार का आदेश क्यों जारी किया? आखिर कोई न कोई बात ज़रूर है जो इस उद्दश्य के पीछे छिपा है, मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद धर्म से ऊपर उठकर केवल मानवता के आधार पर असम नागरिकता मामले को लेकर शरू ही से कानूनी संषर्घ कर रही है क्योंकि वो समझती है कि यह एक ऐसी मानवीय समस्या है जिसमें एक छोटी सी गलती से पूरे परिवार का जीवन तबाह हो सकता हैं और इस स्थ्तिि में हमारे देश में एक बड़ा मानवीय संकट भी पैदा हो सकता है, उन्होंने कहा कि जब गोहाटी हाईकोर्ट ने पंचायत सर्टीफिकेट को नागरिकता का सबूत मानने से इनकार कर दिया था तो असम की लगभग 48 लाख विवाहित महिलाओं के जीवन पर प्रश्नचिंह लग गया था, इस फैसले से लगभग 25 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिंदू महिलाओं की नागरिकता छिन जाने का संकट पैदा हो गया था, ऐसे समय में यह जमीअत उलमा-ए-हिंद थी जो इस अहम मुद्दे को सुप्रीमकोर्ट लेकर गई थी, सुप्रीमकोर्ट ने जमीअत उलमा-ए-हिंद के पक्ष को स्वीकार करके पंचायत सर्टीफीकेट को नागरिकता का सबूत मान लिया, उन्होंने कहा कि इस फैसले के बाद मैंने अपनी एक प्रतिक्रिया में कहा था कि मेरे पूरे संगठनात्मक जीवन में इससे पहले मुझे इतनी प्रसन्नता कभी नहीं महसूस हुई जितनी की आज हो रही है। किसी का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि कुछ लोग इस मुद्दे को शुरू ही से धर्म के चश्मे से देखते आए हैं लेकिन हम इस मुद्दे को मानवता की नजर से देखते हैं, यही कारण है कि हम अदालतों में नागरिकता को लेकर असम के तमाम नागरिकों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्होंने अंत में कहा कि इस प्रकार के हर मामले में अदालत से हमें न्याय मिला है इसलिए इस मामले में भी हम आशा करते हैं कि अदालत का जो भी फैसला आएगा वो असम के सभी नागरिकों के व्यापक हित में होगा।
एक बालिका की हालत गंभीर, मेडिकल कालेज रेफरबाबा अहमद शाह की मजार पर गुरूवार से…
ब्यूरो चीफ फहीम सिद्दीकी बाराबंकी। जिला बार एसोसिएशन के वार्षिक चुनाव की मतगणना शांतिपूर्ण माहौल…
लखनऊ ।उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फरेंसिक साइन्स लखनऊ ने आज संस्थान को और अधिक…
(आलेख : शमसुल इस्लाम) भारत में राष्ट्रविरोधी, अमानवीय एवं धार्मिक रूप से कट्टर नागरिकता संशोधन…
लखनऊ।डाबर की ओर से इंस्टेन्ट एनर्जी ड्रिंक डाबर ग्लुकोज़ ने युवाओं में खेल प्रतिभा को…
आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र लखनऊ:…