नई दिल्ली: एक रिसर्च रिपोर्ट में अनुमानलगाया गया है कि दुनिया भर में गरीबों की संख्या बढ़कर एक अरब से ज्यादा हो सकती है। महामारी के चलते दुनिया में गरीब होने वाले 39.5 करोड़ नए लोग दक्षिण एशिया के होंगे। महामारी के कारण गरीबी से सबसे ज्यादा इसी क्षेत्र पर असर पड़ने का अंदेशा है।

किंग जॉर्ज कॉलेज, लंदन और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनीवर्सिटी ने यूनाइटेड नेशंस यूनीवर्सिटी वर्ल्ड इंस्टीट्यूट फॉर डवलपमेंट इकोनोमिक्स रिसर्च के साथ मिलकर यह रिसर्च किया है। रिसर्च पर प्रकाशित पेपर में कहा गया है कि मध्य आय वर्ग वाले विकासशील देशों में गरीबी ज्यादा बढ़ने की आशंका है। ग्लोबल स्तर पर गरीबों के अनुपात में भी भारी बदलाव आने वाला है। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया फिर से ग्लोबल स्तर पर गरीबी के केंद्र बन सकते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे गरीब लोगों के लिए आय में नुकसान के तौर पर आर्थिक क्षति 50 करोड़ डॉलर प्रति दिन तक पहुंच सकती है। गरीबी की भयावहता भी अत्यधिक बढ़ सकती है। वैश्विक स्तर पर 1.90 डॉलर न्यूनतम दैनिक आय की गरीबी रेखा के आधार पर आय में 20 फीसदी गिरावट आने से 39.5 करोड़ लोग नए गरीब होंगे। इनमें से आधे लोग भारत सहित दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया में होंगे। उप सहारा अफ्रीका में 30 फीसदी यानी 11.9 करोड़ नए गरीब होंगे। गरीबी के मामले में भारत की काफी हिस्सेदारी रही है।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार महामारी के चलते लाखों बच्चे बाल श्रमिक बनने को मजबूर हो सकते हैं। भारत, ब्राजील और मेक्सिको में बाल श्रमिकों की संख्या सबसेज ज्यादा बढ़ने की आशंका है। बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में पिछले 20 साल में हुई प्रगति इस महामारी के चलते गायब हो जाएगी। कोविड-19 और बाल श्रम पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की रिपोर्ट के अनुसार इस संकट के चलते 20 साल में पहली बार बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ने वाली है।

बाल दिवस पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले से ही बाल श्रमिक के तौर पर काम करने वाले बच्चों को ज्यादा समय काम करना पड़ सकता है, उनकी कार्य दशाएं और खराब हो सकती हैं या फिर उनसे और खराब काम कराया जा सकता है। इससे उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा पर बुरा असर पड़ेगा। आम घरों में बच्चे सबसे आसानी से उपलब्ध श्रमिक होते हैं। जब भी परिवार को ज्यादा वित्तीय मदद की आवश्यकता होती है, वे बच्चों को काम के लिए भेज जाते हैं।