विविध

एम जे अकबर की नई किताब अंग्रेज़ साहिबों, ज़मींदारों के ज़ुल्म और भारतीयों के बदले की दास्तान

मोहम्मद अनस

प्रसिध पत्रकार लेखक एम जे० अकबर की नयी किताब, डुलैली साहेब एंड बलेक ज़मींदार : रेस एंड रिवेंज इन ब्रिटिश इंडिया बाज़ार में आ गयी हैं. ये किताब भारत में मुग़लों के समय में मौजूद साम्प्रदायिक सौहार्द और सुखद व्यंग को बहुत ही कलात्मक ढंग से उकेरती है। किताब का पहला अध्याय इसी तथ्य को समझाता है की किस तरह मुग़ल शासक अकबर के दौर में हिंदू मुस्लिम एकता अपने चरम पर थी। यह सौहार्द केवल सामाजिक नहीं था, अपितु सांस्कृतिक भी था ।लोगों को व्यंग करने और अपनी पद्धति के अनुसार जीवन जीने के स्वतंत्रता थी। जितनी स्वतंत्रता मौलवी को प्राप्त थी, उतनी ही सवतंत्रता के साथ एक पुजारी भी अपने धर्म के कार्यों को कर सकता था। राजा के दरबार में गम्भीर बातों को भी व्यंगात्मक शैली में कहने का चलन था। एम जे० अकबर इस बात को इस तरह कहते हैं की राजा क़ानून से ऊपर तो हो सकता था किंतु व्यंग का निशाना वो भी बनता था और इस बात का आनंद भी लेता था।

ये किताब मूलतया भारतीयों के ओपनिवेशिक अंग्रेजों के साथ सम्बन्धों पर आधारित है। इस किताब ने मुख्य तौर पर व्यवसाइयों , प्रशासकों , यात्रियों , तथा अंग्रेज फ़ौजी अफ़सरों द्वारा लिखी गयी सामग्री को अपना श्रोत बनाया है । इस किताब में अकबर साहेब ने छोटी छोटी कहानियों , इतिहास के संदर्भों को अपने मूल्यांकन के साथ एक ऐसी कहानी प्रस्तुत की है कि अंग्रेज हमेशा अपनी रंगवादी श्रेष्‍ठता को साबित करते थे जिसके उलट भारतीय लोग उनसे घृणा करते थे तथा बदले की भावना रखते थे। जब कभी भी किसी भी भारतीय को अंग्रेज़ों से बदला लेने का अवसर मिलता था तो वो चुकता नहीं था । एम जे० अकबर इस बात का उदाहरण इस प्रकार देते हैं की जब किसी धोबी को कोई अंग्रेज अफ़सर अपने कपड़े धोने के लिए देता था तो वह या तो कपड़े फाड़ देता था या कपड़े का कोई बटन तोड़ दिया करता था। ठीक इसी प्रकार दूसरे व्यवसाय के लोग भी अपना बदला अंग्रेज़ों और उनके सहायक ज़मींदारों से लेते थे।

डुलौली साहेब किनको कहते थे ?
किताब बताती है की डुलैली शब्द देवलाली शहर का एक बिगड़ा हुआ नाम है ये महाराष्ट्र के नासिक शहर में फ़ौज का एक ट्रैंज़िट कैम्प था । ये मुंबई से लगभग सौ मील की दूरी पर है।अंग्रेज़ों के ज़माने में जब कोई अंग्रेज अफ़सर अपनी ड्यूटी पूरी करके वापस इंग्लैंड जाता था तो उसे कुछ दिन के लिए इस कैम्प में भेजा जाता था। ऐसे अफ़सर अक्सर बहुत ज़्यादा शराब पीते थे या मच्छरों के काटने की वजह से बुख़ार में पड़ जाते थे एवंम उल ज़लुल हरकतें करते थे। इसी तरह के अफ़सरों को डुलैली साहेब कहा जाता था।

ब्लैक ज़मींदार कौन थे ?
जैसे जैसे अंग्रेज़ों ने भारत के शहरों में अपने पैर जमाये और टैक्स जमा करने का अधिकार प्राप्त किया तो उन्हों ने बहुत सारे प्रभावी भारतीयों को अपने लिये टैक्स जमा करने का दायित्व सौंपा। ये भारतीय अंग्रेज़ों की तरह ही क्रूर थे और भारतीयों पर नाना प्रकार के जुल्म ढा कर भारतीयों से जबरन टैक्स वसूलते थे।ऐसे ही ज़मींदारों को ब्लैक ज़मींदार कहा जाता था। एम जे० अकबर की किताब के अनुसार कलकत्ता के गोविन्दराम मित्रा जो 1720 से 1726 तक डिप्टी कलेक्टर रहे इंडिया के पहले ब्लैक ज़मींदार थे।

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