मुंबई: कोरोना वायरस के चलते पहले दो लॉकडाउन में 34 हजार करोड़ रुपये की मासिक मजदूरी का नुकसान हुआ है| यह खुलासा इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (Indira Gandhi Institute of Development Research) में छपी स्टडी में किया गया है स्टडी में बताया गया है कि 25 मार्च से 14 अप्रैल तक के पहले लॉकडाउन में 11.6 करोड़ मजदूरों की नौकरी गई जबकि 15 अप्रैल से 3 मई तक के दूसरे लॉकडाउन में 7.9 करोड़ मजदूरों ने नौकरी गंवाई।

स्टडी से ये बात सामने आई है कि शुरुआती दो लॉकडाउन में जिन मजदूरों की नौकरी गई, वह उन राज्यों से थे, जहां पर कोरोना मरीजों की संख्या सबसे अधिक है। 40 फीसदी मजदूर कोरोना मामलों के टॉप-5 राज्यों में से हैं। वहीं नौकरी गंवाने वाले 70 फीसदी मजदूर टॉप-10 राज्यों में से हैं। स्टडी के मुताबिक राज्य सोशल डिस्टेंसिंग को फॉलो करते रहेंगे, जिससे लेबर सप्लाई पर असर पड़ेगा।

स्टडी के अनुसार सबसे अधिक इनफॉर्मल मजदूरों (informal labours) को परेशानी हुई है। पहले लॉकडाउन में जिन 11.6 करोड़ मजदूरों की नौकरी गई, उनमें से करीब 10.4 करोड़ मजदूर इनफॉर्मल थे। इसमें से 7.9 करोड़ इनफॉर्मल मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे थे।

स्टडी से एक और बात सामने आई है कि शहरी इलाकों में काम करने वाले मजदूरों पर लॉकडाउन का अधिक प्रभाव पड़ा है, बजाय गांव में काम करने वाले मजदूरों के। इसकी वजह ये है कि ग्रामीण इलाकों में प्रतिबंध काफी कम थे, क्योंकि वहां से ही खाने-पीने की जरूरी चीजें देशभर में फैलनी थीं। पहले लॉकडाउन में शहरी इलाकों के 42 फीसदी मजदूरों की नौकरी गई, जबकि ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 16 फीसदी मजदूरों को नौकरी जाने की दिक्कत का सामना करना पड़ा। लॉकडाउन 2 में शहरी इलाकों में 34 फीसदी मजदूरों ने नौकरी गंवाई, जबकि ग्रामीण इलाकों में 8 फीसदी मजदूरों की नौकरी गई।