इस्लाम की हयात व शौकत हुसैन से
इस्लाम की हयात व शौकत हुसैन से
बाकी जहां में आज शराफत हुसैन से
मेहदी अब्बास रिज़वी
जब अरब के समाज मे इंसान की कोई कीमत न थी, अमीर गरीब को जीने का हक़ नहीं देता था। गरीबी और भूख प्यास अमीरों की कैद में सिसक रही थी। औरतों को समाज मे सिर्फ उपभोग की सामग्री समझ जाता था। अमीर अपनी बेटियों को ज़िंदा दफन कर देते थे। गुलाम और कनीज़ की कोई आवाज़ न थी। ऐसे में अल्लाह ने अपने मुन्तख़ब खानदान में एक बच्चा पैदा किया जिस ने एक ऐसा इंक़लाब पैदा किया जो देखते देखते पूरे अरब में छा गया। वही बच्चा रसूले इस्लाम कहलाया, और उनका आंदोलन इस्लाम के नाम से दुनिया मे छाता चला गया।
इस्लामी समाज मे अच्छों के के साथ बुरे किरदार भी शामिल हो गए। इसी लिए दो नज़रियात सामने आए। एक रिसालत के वफ़ादार और एक हुकूमत का तरफ़दार।
इसी नज़रियात का टकराव कर्बला में हुआ, और दीन के नाम पर दीन को मिटाने वालों ने यज़ीद इब्ने मुआविया को अपना ख़लीफ़ा चुन लिया। यज़ीद को इस्लाम से कुछ लेना देना नहीं था ,वह बाप की छोड़ी हुई हुकूमत पर क़ाबिज़ था, मगर उसकी ग़ैर इस्लामी हरकतों को इस्लाम बनाने के लिए किसी ऐसे की ज़रुरत थी जो उसको जायज़ ठहरा दे। उस वक़्त सिर्फ़ इमाम हुसैन ही थे जो यह काम कर सकते थे तो उसने इमाम हुसैन पर दबाव बनाया। यज़ीद कहता था कि कोई क़ुरआन नहीं आया हुसैन न सिर्फ़ क़ुरआन के मुहाफ़िज़ थे बल्कि ख़ुद बोलते क़ुरआन थे, यज़ीद कहता था कोई नबी नहीं आया, हुसैन आगोशे पैग़म्बर में पले थे, यज़ीद कहता था कि कोई फ़रिश्ता नहीं आया, फ़रिश्तों का हुसैन के घर रोज़ आना जाना था, वह हुसैन के नाना के पास वही लाते थे, उनका झूला झुलाते थे, उनकी माँ की चक्कियां चलाते थे। यज़ीद इस्लाम को मिटा कर अपने बुज़ुर्गों की ग़ैर इंसानी हरकतों को इस्लाम के नाम पर रायज करना चाहता था तो हुसैन अपने नाना के इस्लाम और रिसालत को ताकायमत बचाने वाले थे। इस तरह दो फ़िर्के आमने सामने थे, एक इस्लाम के नाम पर इस्लाम को मिटा कर दहशतगर्दी को क़ायम करने वाला और एक इस्लाम को बचाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाला। और यही कर्बला के तपते हुए मैदान में आमने सामने थे।
बेशक इमाम हुसैन ने तीन दिन की भूख और प्यास में जो क़ुरबानी दी उसने इस्लाम को ज़िन्दगी बख़्श दी और यज़ीद ने इस्लाम के नाम पर दहशतगर्दी की बुनियाद डाल दी। आज जो मुसलमानों में दहशतगर्द दिखाई दे रहे हैं वह उसी यज़ीद के मानने वाले हैं क्योंकि यज़ीद दुनियां का सबसे बड़ा दहशतगर्द था। यह यज़ीदी हैं, न कि अल्लाह और रसूल को मानने वाले।
आज हम सब उसी तारीखी हक़ीक़त को याद मना रहे हैं। तीन दिनों से मुसलमानों ने अपने नबी के निवासे और उनकी ख़ानदान पर पानी बंद कर दिया था ख़ैमों में पानी के8 जगह सिर्फ प्यासों की शिद्दत बची है , बच्चे प्यास से तड़प रहे थे, मगर मुस्लमान खुश थे कि हम ने नबी के बच्चों को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी, थोड़ा सोचिये इराक़ के उस तपते रेगिस्तान में तीन दिनों की प्यास में छोटे छोटे बच्चों का क्या हाल हुआ होगा, पर वह अल्लाह का काम कर रहे थे इसी लिए छः माह के बच्चे को जब प्यास की हालत में तीर लगा तो वह मुस्कुरा कर दुनिया से चला गया, अली असग़र का यह मुस्कुराना उस दौर के मुसलमानों के गाल पर तमाचा था, आज तक मुस्लमान उस दाग़ को दामन से नहीं छुड़ा पाया, नबी की उम्मत ने नबी के निवास को क़त्ल कर बता दिया कि जो हुसैन वाले हैं वही सच्चे मुसलमान हैं और जो ज़ुल्म करते रहे वह और इन की नस्लें दहशतगर्द हैं। ज़ालिम कभी भी इज़्ज़त नहीं पा सकता, वह हर दौर में ज़लील ही रहता है।