ज़रा सोचें दुनिया में कौन सा वह इस्लामी देश है जहां आर्थिक, राजनीतिक, तथा आतंरिक व अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में स्थिरता पायी जाती हो?

अगर आप दुनिया का नक्शा उठा कर एक एक इस्लामी देश पर ध्यान देंगे तो हर देश में आतंरिक या बाहरी समस्या ज़रूर मिलेगी, बस एक देश इस से अपवाद है।

वह एकमात्र इस्लामी देश जहां लगभग किसी भी प्रकार की राजनीतिक, आर्थिक और देशी विदेशी समस्या नहीं है, क़ज़ाक़िस्तान, एकमात्र वह देश है किसी बड़ी समस्या में ग्रस्त नहीं है। यह वही देश हैं जिसकी राजधानी को इस्लामी देशों के विवादों को सुलझाने का केन्द्र समझा जाने लगा है और जहां सीरिया के बारे में शांति वार्ता के लिए भी चुना गया। इन वार्ताओं को आस्ताना वार्ता कहा जाता है हालांकि क़ज़ाक़िस्तान की राजधानी का नाम नूर सुल्तान नज़रबायोफ की सम्मान में आस्ताना के बजाए नूर सुल्तान रख दिया गया है।

हालिया कई सदियों के दौरान युरोप की यही कोशिश रही है कि दुनिया भर के विवादों के लिए शांति वार्ता, किसी युरोपीय देश में हो लेकिन इसके बावजूद सीरिया शांति वार्ता के लिए क़ज़ाक़िस्तान की राजधानी का चयन एक तरह से कई सदियों से जारी युरोप के एकाधिकार का अंत था यही वजह है कि आज भी युरोप, सीरिया की शांति वार्ता में तरह तरह से रोड़े अटका रहा है। सवाल यह है कि क़ज़ाक़िस्तान के लिए दहकते जलते इस्लामी जगत में निष्पक्ष रहना सरल था?

क़ज़ाक़िस्तान किसी समय पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा था और अब स्वाधीनता के बाद, रूस, चीन, किर्गिस्तान और ताजेकिस्तान तथा कैस्पियन सागर से उसकी सीमाएं मिलती हैं

क़ज़ाक़िस्तान की की खास भौगोलिक स्थिति की वजह से अमरीकियों ने हमेशा से इस देश में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की है लेकिन अमरीकियों की इतनी कोशिशों के बावजूद क़ज़ाक़िस्तान अपनी निष्पक्षता को सुरक्षित रखते हुए अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय विवादों से दूर रहने में सफल रहा और इस तरह से वह अमरीकी नीतियों में फंसने से बच गया।

इसी तरह इस बात पर भी ध्यान रहे कि वीगर और चेचन मुसलमानों के इस्लामवादी आंदोलनों और इसी तरह क़ज़ाक़िस्तान के आस-पास तालिबान, अलक़ायदा और दाइश जैसे संगठनों की गतिविधियों की वजह से इस बात की आशंका थी कि क़ज़ाक़िस्तान में भी कट्टरपंथी सलफी आंदोलन चल जाए लेकिन हमने देखा कि नज़रबायोफ इस देश को क्षेत्रीय खींचतान और विवादों से दूर रखने में सफल रहे।

हालांकि क़ानून के अनुसार इस देश पर नज़रबायोफ की सत्ता के जारी रहने की राह में कोई रुकावट नहीं थी लेकिन उन्हें अपनी अधिक आयु की वजह से सत्ता संसद के हवाले कर दी जिसके बाद चुनाव हुए और सत्ता क़ासिम जोमार्त तोक़ायोफ को मिली।

सब से रोचक बात यह है कि इस्लामी देशों की नहीं पूरी दुनिया के लगभग सभी देशों के विपरीत, क़ज़ाक़िस्तान में आने वाली नयी सरकार, पुरानी सरकार की न केवल यह कि बुराई नहीं करती बल्कि पिछले नेताओं और राष्ट्रपति का काफी सम्मान भी करती है।

क़ज़ाक़िस्तान पर कम्यूनिस्टों का राज था लेकिन सोवियत संघ के बिखरने के बाद बेहद कम समय में इस इस्लामी देश ने भांति भांति की जातियों और समुदायों के साथ जिस तरह से सामाजिक सौहार्द की रक्षा की उसका सीधा फायदा पूरे देश को हुआ और आज इस देश का हर नागरिक शांति व सुरक्षा के साथ रहता है और आज इस देश को इस्लामी देशों के लिए एक आदर्श समझा जाता है लेकिन क्या इस्लामी जगत के अन्य देश, क़ज़ाक़िस्तान को आदर्श बना कर, देश को विवादों से दूर रख कर अपने नागरिकों के लिए शांत व सुरक्षित समाज नहीं बना सकते?

साभार– स्पूतनिक न्यूज़ एजेन्सी, रूस